तो क्या टूट रहा है मोदी-शाह (Modi-Shah) की रणनीति का अजेय होने का तिलिस्म?
2014 के बाद से एक-दो राज्यों को छोड़ दिया जाए तो पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) की रणनीति अचूक मानी जाती थी, लेकिन महाराष्ट्र जैसे बड़े और प्रभावी राज्य को लेकर बीजेपी की रणनीति अब तक फेल ही साबित होती दिख रही है.
नई दिल्ली:
जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) से अनुच्छेद 370 (Article 370) के खात्मे के बाद अमूमन सभी राजनीतिक विश्लेषक यही मानकर चल रहे थे कि महाराष्ट्र (Maharashtra) और हरियाणा (Haryana) के विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) में बीजेपी (BJP) को कोई चुनौती नहीं मिलने वाली और आसानी से उसकी फतह हो जाएगी. लेकिन हुआ ठीक उल्टा. हरियाणा में दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) की जननायक जनता पार्टी (JJP) से चुनाव के बाद गठबंधन कर सरकार बनानी पड़ी. वहीं महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य से पार्टी सत्ता से बेदखल हो गई. 2014 के बाद से एक-दो राज्यों को छोड़ दिया जाए तो पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) की रणनीति अचूक मानी जाती थी. कई राज्यों में तो बीजेपी ने तब भी सरकार बना ली, जब उसके पास बहुमत नहीं था, लेकिन महाराष्ट्र जैसे बड़े और प्रभावी राज्य को लेकर बीजेपी की रणनीति अब तक फेल ही साबित होती दिख रही है. हालांकि कुछ राजनीतिक जानकार महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी की रणनीति को दीर्घकालिक मानकर चल रहे हैं.
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फिलहाल, बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना का साथ छूट गया है. शिवसेना एनडीए बनने से पहले से बीजेपी के साथ थी. हालांकि 2014 का चुनाव दोनों पार्टियों ने अकेले लड़ा था, लेकिन बाद में फिर दोनों साथ आ गए और 2019 का चुनाव साथ लड़ा. अब चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर रार के बीच दोनों का साथ फिर छूट गया है. बीजेपी के लिए यह गंभीर झटका माना जा रहा है. कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी ने अपने सबसे पुराने सहयोगी के साथ विवाद को सुलझाने में वह परिपक्वता नहीं दिखाई, जो एक बड़े भाई होने के नाते दिखाना चाहिए था. अब महाराष्ट्र को ध्यान में रखते हुए यह माना जाने लगा है कि मोदी-शाह की रणनीति अब अजेय नहीं रही और उसकी भी काट निकाली जा सकती है.
चुनाव परिणामों के बाद खबर आ रही थी कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह शिवसेना से विवाद सुलझाने को लेकर मुंबई की यात्रा कर सकते हैं. हालांकि बाद में अमित शाह ने मुंबई का दौरा रद्द कर दिया और महाराष्ट्र बीजेपी की राजनीति को देवेंद्र फडनवीस के हाल पर छोड़ दिया. देवेंद्र फडनवीस ने उद्धव ठाकरे को फोन किया भी. वो भी एक बार नहीं, बल्कि तीन-तीन बार, लेकिन उद्धव ठाकरे देवेंद्र फडनवीस से इतने चिढ़े हुए थे कि उन्होंने बात तक नहीं की. यहां तक की महाराष्ट्र के मराठा समाज के प्रभावी नेता संभाजी भिड़े बीजेपी की ओर से गलतफहमियां दूर करने के लिए मातोश्री पहुंचे, लेकिन उद्धव ठाकरे नहीं मिले. कुछ बिजनेसमैन के जरिए भी उद्धव ठाकरे से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उद्धव ने उनसे राजनीति पर बात न करने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया.
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शिवसेना मुख्यमंत्री पद को लेकर अड़ी रही, जो बीजेपी को नागवार गुजरा. परिणामस्वरूप गठबंधन टूट गया. मोदी सरकार से शिवसेना कोटे से एक मात्र मंत्री अरविंद सावंत ने इस्तीफा दे दिया और साथ ही कहा- मेरा इस्तीफा देना ही यह सबूत है कि शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन अब टूट गया है.
एनडीए के सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना से गठबंधन टूटने का प्रभाव महाराष्ट्र तक ही सीमित रहेगा, ऐसा नहीं है. आने वाले समय में बिहार जैसे राज्यों में इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा और गठबंधन के सहयोगी बीजेपी पर अधिक दबाव बनाएंगे. अपने अधिकारों और प्रभावों को लेकर सचेत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसका फायदा उठाना चाहेंगे और सीट बंटवारे को लेकर बिहार में बात बिगड़ भी सकती है.
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राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी की रणनीति के असफल होने से यह संदेश गया है कि बीजेपी का जो अश्वमेघ घोड़ा दौड़ रहा था, उसे रोक लिया गया है. शिवसेना के हटने से एनडीए में बड़ी दरार पड़ गई है, जो आने वाले समय में और चौड़ी हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
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