ग्रामीणों ने आजमाई यह विधि और फिर 10 साल से सूखे पड़े हैंडपंप भी देने लगे पानी
वाटर लेवल घटने के कारण सूख चुके हैंडपंपों से एक बूंद पानी नहीं निकलता, लेकिन यही हैंडपंप धरती को लाखों लीटर पानी लौटा सकते हैं.
नई दिल्ली:
वाटर लेवल घटने के कारण सूख चुके हैंडपंपों से एक बूंद पानी नहीं निकलता, लेकिन यही हैंडपंप धरती को लाखों लीटर पानी लौटा सकते हैं. सुनकर अचंभा होगा, लेकिन मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के आदिवासी विकासखण्ड कराहल के चार गांवों में 11 सूखे हैंडपंप और 2 कुएं जमीन के अंदर बारिश और गांव से उपयोग के बाद निकलने वाले दूषित पानी को फिल्टर करके जमीन के अंदर पहुंचा रहे हैं. इसके परिणाम यह आए कि गांव में जो हैडपंप व कुएं सूखे पड़े थे, उन्होंने पानी देना शुरू कर दिया.
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दरअसल, आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए काम करने वाले श्योपुर के गांधी सेवा आश्रम ने जर्मनी की संस्था जीआईजेड एवं हैदराबाद एफप्रो संस्था के साथ मिलकर 2016 में यह प्रयोग कराहल के डाबली, अजनोई, झरेर और बनार गांव में किया. यह गांव इसलिए चुने गए, क्योंकि यहां के अधिकांश हैडपंप सूख चुके थे. इन गांवों में अंधाधुंध बोर इस तरह हुए कि दो बीघा खेत में 5-5 बोर थे, जिन्होंने जमीन के अंदर का पानी खींच लिया और गांव के पूरे बोर सूख गए. 2016 में हुए इस प्रयोग का असर यह हुआ कि बारिश के सीजन के बाद अजनोई, डाबली, झरेर और बनार गांव की बस्तियों के आसपास के वह सूखे हैंडपंप पानी देने लगे, जो 7 से 10 साल से सूखे पड़े थे.
सूखे हैंडपंप को पानी रिचार्ज की यूनिट बनाने में करीब 45 हजार रुपये का खर्च आया है, लेकिन इसका फायदा बहुत बड़ा है. यह खराब हैंडपंप एक साल में साढे तीन से चार लाख लीटर पानी जमीन के अंदर पहुंचाएगा. गौरलतब है कि सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार एक सामान्य हैंडपंप से हर साल 3 लाख 60 हजार लीटर तक पानी निकाला जाता है. यानी खराब हैंडपंप उतना ही पानी जमीन में वापस भेजेगा, जितना पानी एक सही हैंडपंप जमीन से खींच रहा है.
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इस पद्धति को इंजेक्शन पद्धति कहा जाता है. जर्मनी की संस्था श्योपुर से पहले इसका सफल प्रयोग गुजराज व राजस्थान के सूखे इलाकों में कर चुकी है. इस पद्धति के तहत हैंडपंप के चारों ओर करीब 10 फीट गहरा गड्ढा खुदावाया है. हैंडपंप के केसिंग पाइप में जगह-जगह एक से डेढ़ इंच व्यास के 1200 से 1500 छेद किए गए हैं. पाइप के जरिए जो पानी जमीन में स्वच्छ पीने योग्य पानी जाएगा. इसके लिए गढ्डे में फिल्टर प्लांट भी बनाया है. इस फिल्टर प्लांट में बोल्डर, गिट्टी, रेता और कोयले जैसी देसी चीजें परत दर परत जमाई गई हैं. इनसे छनने के बाद ही बारिश का पानी हैंडपंप के छेदयुक्त पाइप तक पहुंचेगा। पाइप पर भी जालीदार फिल्टर लगाया जाएगा. इतनी प्रक्रियाओ से गुजरने के बाद ही बारिश का पानी जमीन के अंदर जा पाएगा. इसके तहत फिल्टर पानी को जमीन के अंदर पहुंचाया जाता है. एक सूखा हैंडपंप इतना पानी जमीन को लौटाता है, जिनता दूसरा हैडपंप जमीन से खींच लेता है.
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