बुंदेलखंड में मैदान में बदलते तालाब, संख्या 10 हजार से घटकर 2 हजार से भी कम
देश और दुनिया में बुंदेलखंड की कभी पहचान जल संरक्षण वाले क्षेत्र की हुआ करती थी, मगर अब स्थितियां बदली हुई हैं.
नई दिल्ली:
मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के छतरपुर से झांसी की ओर जाने वाले मार्ग पर अलीपुरा के पास का मैदान में बदल चुका तालाब बुंदेलखंड के हालात को बयां करने वाला है. तालाब की मिट्टी पूरी तरह शुष्क है और हवाओं के साथ उड़ता गुबार यहां के डरावने हालात की गवाही दे रहा है. पानी की समस्या गंभीर रूप ले चली है, मगर चुनावी मौसम में भी यह समस्या राजनीतिक दलों के लिए मुद्दा नहीं बन पाई है.
देश और दुनिया में बुंदेलखंड (Bundelkhand) की कभी पहचान जल संरक्षण वाले क्षेत्र की हुआ करती थी, मगर अब स्थितियां बदली हुई हैं. अब इस क्षेत्र को सूखा, पलायन, गरीबी और भुखमरी के तौर पर पहचाना जाता है. उत्तर प्रदेश के सात जिले और मध्य प्रदेश के सात जिलों को मिलाकर बने इस इलाके के इस दौर में सबसे बड़ी समस्या जल संकट है. साल में मुश्किल से छह महीने ऐसे होते हैं, जब यहां के लोग पानी की समस्या से अपने को दूर पाते हैं, बाकी समय उनका इस संकट से जूझते हुए गुजर जाता है.
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बुंदेलखंड सेवा संस्थान के मंत्री वासुदेव सिंह बताते हैं कि गर्मी बढ़ने के साथ पानी का संकट गहराने लगा है. आबादी वाले इलाकों के अधिकांश तालाब तो जलविहीन हो चुके हैं, मगर जंगलों के बीच के तालाबों मे अब भी पानी है, मगर यह ज्यादा दिन के लिए नहीं है. कई हिस्सों में तो लोगों को पानी हासिल करने के लिए कई-कई किलो मीटर का रास्ता तय करना पड़ता है.
मध्यप्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह व पन्ना में पानी का संकट गंभीर रूप ले चला है. राज्य के वाणिज्य कर मंत्री ब्रजेंद्र सिंह राठौर ने बुंदेलखंड के तालाबों के बुरे हाल के लिए पूर्ववर्ती बीजेपी की सरकार को जिम्मेदार ठहराया. राठौर का कहना है कि कांग्रेस की केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज में राशि दी, मगर उसका लाभ यहां के लोगों को नहीं मिला. टीकमगढ़ में 500 और इतने ही तालाब छतरपुर जिले में है, इनकी स्थिति अच्छी नहीं है. लिहाजा, नदियों को तालाब से जोड़ा जाए तो यहां की स्थिति में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. राज्य सरकार तालाबों के हालात सुधारने पर काम करेगी.
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जलपुरुष के नाम से पहचाने जाने वाले राजेंद्र सिंह भी बुंदेलखंड की पानी संकट को लेकर कई बार चिंता जता चुके हैं. उनका कहना है कि बुंदेलखंड में पानी रोकने के पर्याप्त इंतजाम नहीं है, जिसका नतीजा है कि 800 मिलीमीटर वर्षा के बाद भी यह इलाका सूखा रहता है. इसलिए जरूरी है कि तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए, नदियां के आसपास से अतिक्रमण हटे, पानी का प्रवाह ठीक रहे. इसके लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा. इस क्षेत्र के तालाब ही नहीं नदियां भी गुम हो गई है, जिसके चलते जल संकट साल-दर-साल गहराता जा रहा है.
बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और मध्य प्रदेश के सात-सात जिले आते हैं. लगभग हर हिस्से में पानी का संकट है. एक अनुमान के मुताबिक, इस क्षेत्र में 10,000 से ज्यादा तालाब हुआ करते थे. वर्तमान में हालात यह है कि इन तालाबों की संख्या दो हजार के आसपास भी नहीं बची है. मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने तालाबों के सीमांकन और चिन्हीकरण की बात कही थी, मगर आगे नहीं बढ़ी और सरकार भी चली गई.
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