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मध्य प्रदेश में बीजेपी को नए प्रदेशाध्यक्ष के लिए कठिन परीक्षा से पड़ सकता है गुजरना

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव दिसंबर माह के अंत में प्रस्तावित है. इसलिए प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव इससे पहले होना जरूरी माना जा रहा है.

Updated on: 11 Dec 2019, 05:41 PM

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मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को नए प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव के लिए कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ सकता है, क्योंकि डेढ़ दशक बाद राज्य में ऐसा मौका आया है, जब पार्टी सत्ता से बाहर है और कई लोग खुद अथवा अपने चहेते को यह जिम्मेदारी सौंपने की रणनीति बना रहे हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव दिसंबर माह के अंत में प्रस्तावित है. इसलिए प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव इससे पहले होना जरूरी माना जा रहा है. भाजपा में इस बार अध्यक्ष पद के लिए वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह के अलावा, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा, पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह, विश्वास सारंग और सांसद वी. डी. शर्मा बड़े दावेदारों में हैं. वहीं पर्दे के पीछे से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व प्रहलाद पटेल बड़ी भूमिका निभाते नजर आते हैं.

भाजपा के तमाम नेताओं ने मंडल अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष तक अपनी पसंद के लोगों को बनाने के लिए जोर लगाया. यही कारण रहा कि राज्य के भाजपा के 56 संगठनात्मक जिलों में से सिर्फ 32 जिलों के लिए ही अध्यक्षों का चुनाव हो पाया है. राजधानी भोपाल सहित तमाम प्रमुख जिलों के अध्यक्षों के नामों पर अंतिम मुहर नहीं लग पाई, क्योंकि बड़े नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पाई है.

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भाजपा के मीडिया प्रमुख लोकेंद्र पाराशर का कहना है, "प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव होना है, उसके लिए प्रक्रिया है. लोकतांत्रिक पद्घति से चुनाव होता है, उसके लिए पर्यवेक्षक भी आएंगे. फिलहाल चुनाव की तिथि की घोषणा नहीं हुई है. जैसे ही घोषणा होगी, प्रक्रिया शुरू हो जाएगी."

भाजपा में इस बार खींचतान की वजह है. राज्य में डेढ़ दशक बाद पहला ऐसा मौका है, जब पार्टी सत्ता में नहीं है. सभी बड़े नेता चाहते हैं कि राज्य में पार्टी सत्ता में नहीं है तो संगठन में उनकी पकड़ बनी रहे और इसी के चलते खींचतान बढ़ रही है.

राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्रा का मानना है, "भाजपा में इस बार का प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव पिछले चुनाव से अलग होगा, क्योंकि राज्य में अब भाजपा की सत्ता नहीं है. केंद्र में सत्ता होने से कई नेता मंत्री हैं, वहीं अन्य नेताओं के पास राजनीतिक तौर पर कोई काम नहीं है. लिहाजा जो नेता राज्य की राजनीति मे सक्रिय रहना चाहते हैं, वे इस पद पर अपने को काबिज कराने एड़ी चोटी का जोर लगाने से हिचकेंगे नहीं."

पार्टी सूत्रों के अनुसार, भाजपा का अध्यक्ष वही बनेगा, जिसे पार्टी नेतृत्व के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का समर्थन हासिल होगा. भाजपा की कोशिश है कि राज्य में पार्टी की कमान युवा और साफ -सुथरी छवि के व्यक्ति को सौंपी जाए, जिसका जनाधार हो. साथ ही वह कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरकर लडाई भी लड़ सके. अगर ऐसा हुआ तो पार्टी के तमाम दिग्गज दावेदारी से बाहर हो जाएंगे.


मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को नए प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव के लिए कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ सकता है, क्योंकि डेढ़ दशक बाद राज्य में ऐसा मौका आया है, जब पार्टी सत्ता से बाहर है और कई लोग खुद अथवा अपने चहेते को यह जिम्मेदारी सौंपने की रणनीति बना रहे हैं.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव दिसंबर माह के अंत में प्रस्तावित है. इसलिए प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव इससे पहले होना जरूरी माना जा रहा है. भाजपा में इस बार अध्यक्ष पद के लिए वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह के अलावा, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा, पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह, विश्वास सारंग और सांसद वी. डी. शर्मा बड़े दावेदारों में हैं. वहीं पर्दे के पीछे से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व प्रहलाद पटेल बड़ी भूमिका निभाते नजर आते हैं.
भाजपा के तमाम नेताओं ने मंडल अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष तक अपनी पसंद के लोगों को बनाने के लिए जोर लगाया. यही कारण रहा कि राज्य के भाजपा के 56 संगठनात्मक जिलों में से सिर्फ 32 जिलों के लिए ही अध्यक्षों का चुनाव हो पाया है. राजधानी भोपाल सहित तमाम प्रमुख जिलों के अध्यक्षों के नामों पर अंतिम मुहर नहीं लग पाई, क्योंकि बड़े नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पाई है.
भाजपा के मीडिया प्रमुख लोकेंद्र पाराशर का कहना है, "प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव होना है, उसके लिए प्रक्रिया है. लोकतांत्रिक पद्घति से चुनाव होता है, उसके लिए पर्यवेक्षक भी आएंगे. फिलहाल चुनाव की तिथि की घोषणा नहीं हुई है. जैसे ही घोषणा होगी, प्रक्रिया शुरू हो जाएगी."
भाजपा में इस बार खींचतान की वजह है. राज्य में डेढ़ दशक बाद पहला ऐसा मौका है, जब पार्टी सत्ता में नहीं है. सभी बड़े नेता चाहते हैं कि राज्य में पार्टी सत्ता में नहीं है तो संगठन में उनकी पकड़ बनी रहे और इसी के चलते खींचतान बढ़ रही है.
राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्रा का मानना है, "भाजपा में इस बार का प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव पिछले चुनाव से अलग होगा, क्योंकि राज्य में अब भाजपा की सत्ता नहीं है. केंद्र में सत्ता होने से कई नेता मंत्री हैं, वहीं अन्य नेताओं के पास राजनीतिक तौर पर कोई काम नहीं है. लिहाजा जो नेता राज्य की राजनीति मे सक्रिय रहना चाहते हैं, वे इस पद पर अपने को काबिज कराने एड़ी चोटी का जोर लगाने से हिचकेंगे नहीं."
पार्टी सूत्रों के अनुसार, भाजपा का अध्यक्ष वही बनेगा, जिसे पार्टी नेतृत्व के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का समर्थन हासिल होगा. भाजपा की कोशिश है कि राज्य में पार्टी की कमान युवा और साफ -सुथरी छवि के व्यक्ति को सौंपी जाए, जिसका जनाधार हो. साथ ही वह कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरकर लडाई भी लड़ सके. अगर ऐसा हुआ तो पार्टी के तमाम दिग्गज दावेदारी से बाहर हो जाएंगे.