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जब झारखंड के भावी CM हेमंत सोरेन को करना पड़ा था इन चुनौतियों का सामना

झारखंड के भावी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को राजनीतिक मैदान में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. दुमका रही राजनीतिक कर्मभूमि में हेमंत को विधायक से मुख्यमंत्री तक के सफर में चुनावी मैदान में दो बार शिकस्त झेलनी पड़ी.

Updated on: 27 Dec 2019, 03:03 PM

रांची:

झारखंड के भावी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को राजनीतिक मैदान में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. दुमका रही राजनीतिक कर्मभूमि में हेमंत को विधायक से मुख्यमंत्री तक के सफर में चुनावी मैदान में दो बार शिकस्त झेलनी पड़ी. खुद पार्टी में वरिष्ठ विधायक स्टीफन मरांडी से हार गए थे, लेकिन हार के बाद सबक लेते हुए हेमंत अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जनता के बीच स्थानीय मुद्दे को लेकर डटे रहे और यही वजह है कि पहली बार स्टीफन और लोइस को हराकर विधायक से सीएम तक की मुकाम हासिल की.

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झारखंड के भावी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जन्म 10 अगस्त 1975 को रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड नेमरा गांव में हुआ था. पिता दिसोम गुरु शिबू सोरेन और माता रूपी सोरेन किस्कू के आंचल की छांव में पले बढ़ें. हेमंत के तीन भाई और एक बहन है. बड़े भाई दुर्गा सोरेन (अब दिवंगत), छोटे भाई बसंत सोरेन, एक बहन अंजली सोरेन, पत्नी कल्पना जो रांची में प्ले स्कूल चलाती हैं. उनके दो बच्चे निखिल और अंश हैं. उच्च शिक्षा अध्ययन के लिए हेमंत का दाखिला बिहार के पटना हाईस्कूल में कराया गया, जहां से उन्होंने ने 12वीं तक की शिक्षा पूरी की.

मां रुपी सोरेन किस्कू अपने द्वितीय पुत्र हेमंत को इंजीनियर बनना चाहती थीं. इस कारण झारखंड ही नहीं समूचे देश में प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान बीआई टी मेसरा में मैकेनिकल कोर्स में दाखिला कराया गया. लेकिन1996 से 2000 तक पिता के विवादों से उलझने एवं विभिन्न पारिवारिक कारणों से हेमंत इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. हालांकि 2003 में वो झामुमो छात्र मोर्चा के अध्यक्ष बने. हेमंत ने 2005 में विधानसभा चुनाव में झामुमो के टिकट पर दुमका से प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारे और अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. वे पहला चुनाव झामुमो से बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतारे स्टीफन मरांडी से हार गए.

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इससे पहले बड़े भाई दुर्गा सोरेन (अब दिवंगत) पूर्व से ही जामा से विधायक थे. 21 मई 2009 में बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मृत्यु हो गई. 24 जून 2009 से राज्यसभा के सांसद चुने गए. लेकिन दिसंबर 2009 में सम्पन्न विधानसभा चुनाव में हेमंत ने कांग्रेस के स्टीफन मरांडी को हरा दिया. 4 जनवरी 2010 को उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. 10 सितंबर 2010 में वे अर्जुन मुंडा मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री बने. इस बीच भाजपा और झामुमो के बीच संबंध में खटास आ जाने के कारण हेमंत ने अर्जुन मुंडा मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. जिससे मुंडा की सरकार गिर गई. इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. लेकिन कुछ ही महीने बाद 13 जुलाई 2013 को कांग्रेस, झामुमोऔर राजद के समर्थन से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी. जो 28 दिसंबर 2014 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहे.

करीब 14 महीनों तक झारखंड के सीएम रहे हेमंत सोरेन ने अपने छोटे से कार्यकाल में दुमका सहित कई जिलों में कई महत्वपूर्ण कार्य किए. दुमका में रिंग रोड, स्वास्थ्य, शिक्षा और वर्षों से मसानजोर डैम के पानी से जूझ रहे किसानों के लिए कैनाल का रास्ता बनाया. हालांकि 2014 के विधानसभा चुनाव में दुमका और बरहेट से चुनाव लड़ा. बरहेट से जीत तो हासिल की, लेकिन दुमका में लोइस मराण्डी से 5226 मतों से हार गए थे. हार के बाद सबक लेते हुए हेमंत ने जनता के बीच सरकार के नाकामियों को गिनाया और इसी का परिणाम है कि 2019 में दुमका और बरहेट जीतने के साथ झामुमो ने राज्य में 18 से बढ़कर 30 सीट पर जीत का परचम लहरा दिया. इस जीत में हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन लक्ष्मण की तरह भाई का साथ देकर चुनावी मैदान में विजय का सेहरा पहनाया. यही नही उनकी भाभी जामा की विधायक सीता सोरेन को भी इस चुनावी मैदान में जीत दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.