झारखंड में 'क्रोइलर चिकन' से महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर
रांची के लोग इस चिकन को भी बड़े चाव से खा रहे हैं. झारखंड की राजधानी रांची के मुरहू की रहने वाली जीतनी देवी पिछले एक महीने में 1000 से ज्यादा क्रोइलर चिकन बेच चुकी हैं.
नई दिल्ली:
अब तक आपने देसी और फार्म (ब्रायलर) चिकन का स्वाद तो चखा होगा, लेकिन झारखंड की महिलाएं अब रांची की चिकन दुकानों में 'क्रोइलर चिकन' की आपूर्ति कर अच्छी कमाई कर रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं. रांची के लोग इस चिकन को भी बड़े चाव से खा रहे हैं. झारखंड की राजधानी रांची के मुरहू की रहने वाली जीतनी देवी पिछले एक महीने में 1000 से ज्यादा क्रोइलर चिकन बेच चुकी हैं. जीतनी कहती हैं कि इस व्यापार में फार्म (ब्रायलर) चिकन से कम मेहनत है और पूरी तरह फायदेमंद है, क्योंकि इसमें चूजे के मरने की शिकायत कम है.
इस व्यापार से जुड़े लोगों का मानना है कि इस तीसरी वेराइटी के चिकन के कई फायदे हैं. चिकन खाने के शौकीन लोग जो ब्रायलर चिकन के उत्पादन में उपयोग होने वाले अप्राकृतिक तरीकों के नुकसान से चिंतित हैं, वे क्रोइलर चिकन को खूब पसंद कर रहे हैं. ग्रामीण विकास विभाग की 'जोहार परियोजना' के तहत ग्रामीण महिलाएं क्रोइलर प्रजाति के चिकन को बढ़ावा दे रही हैं.
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कार्यक्रम प्रबंधक कुमार विकास ने मीडिया से कहते हैं कि यह प्रजाति 'केग्स फार्म' द्वारा विकसित की गई है. इस प्रजाति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह देसी मुर्गी की तरह ही प्राकृतिक तौर पर रहने वाली रंगीन नस्ल का है जो कि घर की रसोई के अपशिष्ट एवं कुछ रेडीमेड पौष्टिक आहार पर जिंदा रहती है.
उन्होंने कहा, "इस प्रजाति के आहार में किसी भी तरह के एंटीबायोटिक्स एवं ग्रोथ प्रमोटर्स की जरूरत नहीं पड़ती है. ये पूरी तरह प्राकृतिक एवं सुरक्षित चिकन है. इस प्रजाति में वसा की मात्रा भी बहुत कम पाई जाती है. इसके अत्यधिक सेवन से किसी तरह के नुकसान से भी बचा जा सकता है. क्रोइलर चिकन में प्रोटीन, कैल्शियम एवं विटामिन तुलनात्मक रूप से ज्यादा होता है और इसके पैर अपेक्षाकृत छोटे एवं मोटे होते हैं." उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत 'झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी' द्वारा क्रियान्वित जोहार परियोजना के उत्पादक समूह की महिलाएं क्रोइलर प्रजाति के चिकन को बढ़ावा देने का कार्य कर रही हैं.
इस कार्य के लिए गठित उत्पादक कंपनी के तहत कई मदर यूनिट लगाए गए हैं, जहां से कुछ बड़े हो चुके चूजों को ग्रामीण महिलाओं के छोटे-छोटे यूनिट में दे दिया जाता है. इन चूजों का विकास बहुत ही साफ-सुथरे माहौल में प्रशिक्षित ग्रामीण महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है, जिससे कम समय में चूजा बड़ा होकर बिक्री के लायक हो जाता है.
इन उत्पादक समूह की ग्रामीण महिलाओं को उचित कीमत मिले और अच्छी कमाई हो, इसी कड़ी में रांची के करीब 10 चिकन विक्रेताओं के साथ क्रोइलर चिकन बिक्री का करार किया गया है. इन दुकानों में क्रोइलर चिकन की अच्छी मांग भी दिख रही है. उत्पादन में वृद्धि होने के बाद और दुकानों तक क्रोइलर चिकन पहुंचाने की योजना है.
झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के अंतर्गत जोहार परियोजना के तहत वर्तमान में करीब 500 परिवार उत्पादक कंपनी के जरिए इस कार्य से जुड़े हुए हैं. वहीं आने वाले दिनों में करीब 30 हजार परिवारों को क्रोइलर चिकन पालन से जोड़ा जाना है. इस कार्य से जुड़ी मुरहु की शकुंतला कुमारी इस व्यापार से जुड़कर बहुत खुश हैं. वह कहती हैं कि पहले एक-एक पैसे के लिए घर के दूसरे लोगों पर आश्रित रहती थीं, लेकिन अब कम मेहनत में अच्छी आय हो रही है.
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