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झारखंड में अभी से ही विधानसभा चुनावों की हो रही तैयारी, सभी पार्टियां कर रही हैं समीकरणों का जोड़ घटाना

इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में विपक्षी दल अभी तक हालांकि औपचारिक रूप से यह नहीं तय कर पाए हैं कि इस विधानसभा चुनाव में उनके बीच का तालमेल किस तरीके का होगा.

Updated on: 31 Oct 2019, 12:51 PM

highlights

  • झारखंड में विधानसभा चुनावों की हो रही तैयारियां. 
  • सभी पार्टियां कर रही समीकरण पर माथापच्ची. 
  • इस साल के अंत में राज्य में होने वाले हैं विधानसभा चुनाव. 

रांची:

झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Elections) की रणभेरी अभी भले ही नहीं बजी है, परंतु सभी राजनीतिक दल दांव-पेच अपनाकर अपनी ताकत बढ़ाने की जुगाड़ में हैं. विपक्षी दल (Opposition party) अपनी ताकत बढ़ाने को लेकर एक-दूसरे के साथ चलने को राजी हैं, परंतु दावेदारी और वफादारी दलों के बीच आड़े आ जा रही है. इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में विपक्षी दल अभी तक हालांकि औपचारिक रूप से यह नहीं तय कर पाए हैं कि इस विधानसभा चुनाव में उनके बीच का तालमेल किस तरीके का होगा.

हालांकि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) के बीच सहमति बनी थी, जिसमें तय किया गया था कि विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर ही मैदान में उतरा जाएगा.

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कांग्रेस (Congress, Jharkhand) के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव कहते हैं कि इस विधानसभा चुनाव में झामुमो बड़े भाई की भूमिका में रहेगा, यह बात लोकसभा चुनाव में ही तय कर ली गई थी. उन्होंने गठबंधन के संबंध में पूछे जाने पर कहा कि सबकुछ तय है, और जल्द ही विपक्षी दलों के महागठबंधन की घोषणा की जाएगी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य बीजेपी को सत्ता से हटाना है.

उरांव कहते हैं कि अभी सभी दलों से अलग-अलग बात हो रही है, और जब सभी हम लोग एक साथ बैठेंगे तो सब कुछ तय हो जाएगा.

सूत्रों का कहना है कि महागठबंधन का स्वरूप अभी तय नहीं है, परंतु झामुमो और कांग्रेस ने सीट बंटवारे को लेकर जो रूपरेखा तय की है, उसके मुताबिक झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों में झामुमो जहां 44 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं कांग्रेस 27 और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) तथा वामपंथी दलों को पांच-पांच सीटें देने की योजना है.

इस गुणा-भाग के बीच संभावना जताई जा रही है कि इस बार भी पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) गठबंधन में शामिल नहीं होगी.

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आलमगीर आलम हालांकि कहते हैं कि झाविमो अगर गठबंधन में शामिल होना चाहेगी तो उनका स्वागत है. उन्होंने कहा कि तय तो उनको करना है कि वे महागठबंधन में शमिल होंगे या नहीं. इस संबंध में पूछे जाने पर झाविमो के प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने एक मीडिया एजेंसी बात करते हुए कहा कि कोई भी निर्णय कार्यकर्ताओं से बातचीत के बाद ही लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि अगले पांच दिनों में नेता प्रखंड-प्रखंड में जाएंगे और कार्यकर्ताओं के साथ इस संबंध में बातचीत कर कोई निर्णय लिया जाएगा.

राजद के नेता भी पांच सीटों को लेकर संतुष्ट नहीं हैं. आईएएनएस द्वारा इस संबंध में जब राजद के प्रदेश अध्यक्ष अभय कुमार सिंह से बात की गई, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि राजद पांच-छह सीटों पर चुनाव लड़ने वाला नहीं है. उन्होंने कहा कि महागठबंधन की अभी बैठक ही नहीं हुई है, फिर सीट बंटवारे का प्रश्न ही कहां उठता है.

सूत्रों का कहना है कि विपक्षी महागठबंधन में सबसे बड़ी समस्या 'वफादारी' को लेकर है. एक नेता का दावा है कि किसी भी पार्टी को दूसरे पर भरोसा नहीं है. सभी अधिक से अधिक सीटों की जिद पर अड़े हैं. इन दलों के बीच इस बात की भी शंका की जा रही है कि जीतने के बाद बीजेपी से कौन-सी पार्टी समझौता कर सकती है.

कांग्रेस, राजद और वामपंथी दलों ने अब तक कभी भी बीजेपी से समझौता नहीं किया है, जबकि झामुमो सरकार गठन के लिए बीजेपी से दोस्ती कर चुकी है. जबकि झाविमो के विधायक तो अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए हैं.

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राजनीतिक समीक्षक और झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र कहते हैं कि झारखंड में विपक्षी दलों का अलग-अलग गठबंधन हो सकता है, परंतु 'महागठबंधन' की उम्मीद करना बेमानी है.

उन्होंने स्पष्ट कहा कि झाविमो के नेता मरांडी पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कभी भी नेता नहीं मान सकते और जिस महागठबंधन में झाविमो नहीं होगा, उसका क्या मतलब?

उन्होंने कहा कि झामुमो और कांग्रेस ने महागठबंधन को लेकर जो भी फॉर्मूला तय किया हो, परंतु सभी पार्टियां इसे मान लें, इसमें शक है. मिश्र कहते हैं कि दावेदारी पूरा करना आसान नहीं है.