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झारखंड में मानव तस्कर की सक्रियता बढ़ी, महानगरों में बड़ी संख्या में बेची जा रही हैं लड़कियां

हर साल झारखंड से हजारों की संख्या में युवतियों को ले जाकर बड़े शहरों में बेच दिया जाता है या फिर वहां मौजूद प्लेसमेंट सेल एजेंसियों के हवाले कर देते है. इस मामले में कई दलालों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है लेकिन फिर भी ये गिरोह सक्रिय है.

Updated on: 08 Jul 2019, 02:49 PM

नई दिल्ली:

मानव तस्कर (Human trafficking) का गिरोह झारखंड में दिनों-दिन मजबूत होता जा रहा है. मानव तस्करी के कई मामलों पर कार्रवाई होने के बाद भी प्रशासन इस गिरोह पर पूरी तरह अपना शिकंजा नहीं कस पाई है. हर साल झारखंड से हजारों की संख्या में युवतियों को ले जाकर बड़े शहरों में बेच दिया जाता है या फिर वहां मौजूद प्लेसमेंट सेल एजेंसियों के हवाले कर देते है. इस मामले में कई दलालों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है लेकिन फिर भी ये गिरोह सक्रिय है. ये लोग गरीब घरों को लड़कियों को अपना निशाना सबसे ज्यादा बनाते हैं. खबरों के मुताबिक रांची के खूंटी और नामकुम में पिछले 3 से 4 सालों में करीब 100 से ज्यादा लड़किया गायब हुई हैं.

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खबरों के मुताबिक रांची के खूंटी और नामकुम में पिछले 3 से 4 सालों में करीब 100 से ज्यादा लड़किया गायब हुई हैं. हाल ही में रांची और खूंटी के संबंधित प्रखंडों की लड़कियों को शादी और नौकरी का झांसा देकर उन्हें मानव तस्करी में फंसाने वाले दलाल श्याम सुंदर को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. आरोपी अपनी पत्नी सानिया के साथ मिलकर लड़कियों को अपने चंगुल में फंसाता था, जो कि अभी फरार है. बताया जा रहा है कि यहां के कई गांवों में दर्जनों लड़कियां गायब हुई है, जिसके पीछे श्याम सुंदर का ही हाथ बताया जा रहा है.

वहीं बता दें कि मानव तस्करी के खिलाफ लोगों में जागरूकता फैलाने वाली संस्था आशा के पास लड़कियों के गायब होने के करीब 60 मामले दर्ज है. जिसमें 22 लड़कियों को इस चुंगुल से मुक्त करा लिया गया है. लड़कियों के लापता होने से संबंधित आठ प्राथमिकियां संबंधित थानों में हाल ही में दर्ज कराई गई हैं.

मानव तस्करी को लेकर भारत के साथ ही नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा पाकिस्तान स्थित अपने कार्यालयों से 47 सहयोगी संस्थाओं के माध्यम कार्यरत गैर सरकारी संगठन एक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लायटेशन (एटसेक) की झारखंड से संबंधित रिपोर्ट पेश की है जो कि काफी चौंकाने वाली है. 

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इस रिपोर्ट के मुताबिक, 9% लड़कियां दलाल, 37% सहेली/दोस्तों, 3% पारिवारिक दबाव और 51% परिवार के अन्य सदस्यों की बातों में आकर शहरों की तरफ रुख कर लेती है. जिसमें 10% लड़किया कभी घर वापस नहीं आ पाती है, वहीं इसमें  67 फीसदी लड़कियां 20 साल से कम उम्र की होती है.