logo-image

झारखंड : सरकारें बदलती रहीं, पर नक्सलवाद बना रहा चुनौती

बिहार से अलग निकलकर झारखंड राज्य बने तो करीब दो दशक गुजर गए. इस दौरान कई सरकारें आई और कई सरकारें चली गईं, कई मुख्यमंत्री बने और कई मुख्यमंत्री सत्ता से दूर हुए, लेकिन नक्सलवाद की समस्या तब भी थी और आज भी है.

Updated on: 03 Jan 2020, 01:59 PM

लखनऊ:

बिहार से अलग निकलकर झारखंड राज्य बने तो करीब दो दशक गुजर गए. इस दौरान कई सरकारें आई और कई सरकारें चली गईं, कई मुख्यमंत्री बने और कई मुख्यमंत्री सत्ता से दूर हुए, लेकिन नक्सलवाद की समस्या तब भी थी और आज भी है. सभी सरकारें इसे चुनौती के रूप में लेते हुए खत्म करने का वादा जरूर करती रहीं.

कई राजनीतिक दल नक्सलवाद को खत्म करने के वादे के साथ सत्ता तक पहुंच भी गए, लेकिन लोगों के लिए यह समस्या आज भी बनी हुई है. एकबार फिर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की सरकार बनी है और इसके सामने में चुनौती नक्सलवाद की समस्या है.

झारखंड में नक्सल की समस्या का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि झारखंड में झामुमो नेता हेमंत सोरेन की अगुवाई में जिस दिन सरकार बनने जा रही थी, एक प्रकार से चुनौती देते हुए प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नक्सलियों ने अड़की थाना क्षेत्र के सेल्दा में विस्फोटकों के जरिए सामुदायिक भवन को उड़ा दिया था.

झारखंड में नई सरकार बनते ही एकबार फिर से नक्सल अभियान तेज करने की कवायद शुरू हो गई है. झारखंड के पुलिस महानिदेशक कमल नयन चौबे भी कहते हैं कि सरकार ने चुनौती के रूप में नक्सलवाद को लिया है और चुनौती के रूप में इससे निपटेगी.

पुलिस मुख्यालय में दर्ज आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले वर्ष यानी 2019 में नक्सली संगठनों ने झारखंड के 15 जिलों में 133 नक्सली वारदातों को अंजाम दिया है, जबकि नौ जिले ऐसे भी हैं, जहां नक्सली वारदातों की पुष्टि नहीं हुई है.

झारखंड में कई नक्सली संगठन हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत है. सबसे ज्यादा भाकपा माओवादी ने जहां 67 नक्सली घटनाओं को अंजाम दिया है, वहीं तृतीय प्रस्तुति कमिटी (टीपीसी) 27, पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) ने 22, झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी) 13 तथा चार घटनाएं छोटे संगठनों की संलिप्तता सामने आई हैं.

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि पिछले वर्ष राज्य में नक्सली और पुलिस के बीच मुठभेड़ की 36 घटनाएं हुईं, जिसमें 24 नक्सलियों को मार गिराया गया. हालांकि इसमें आम लोगों को भी नुकसान उठाना पड़ा. नक्सलियों द्वारा पिछले साल अलग-अलग जिलों में 22 लोगों की हत्या की गई, जबकि आगजनी की 26, अपहरण की दो, विस्फोट की 13 घटनाओं को अंजाम दिया गया. नक्सलियों ने इस दौरान पुलिस टीम पर चार बार हमले भी किए.

पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि नक्सलियों के सफाए को लेकर रणनीतियां बनती रहती हैं. पिछली सरकार ने भी नक्सलियों के खिलाफ कई रणनीतियां बनाई थीं. पिछले एक साल में 12 नक्सलियों ने आत्ममर्पण किया. पिछली सरकार भी नक्सलियों को समाप्त करने के दावा करती रही, लेकिन नक्सली घटनाओं को अंजाम देकर अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराते रहे.

एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि पुलिस हो या नक्सली, दोनों एक-दूसरे के खिलाफ रणनीतियां बनाते हैं और एक-दूसरे के लिए चुनौती भी समय-समय पर बनते रहते हैं.

उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने आक्रामक नीति बनाते हुए अब मोटरसाइकिल दस्ता बनाया है. ये कई स्थानों पर मोटरसाइकिल से पहुंचकर घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. अब पुलिस इसके खिलाफ रणनीति बनाएगी. झारखंड में नक्सली बच्चों और महिलाओं का भी इस्तेमाल करते रहे हैं.

उन्होंने दावा किया कि झारखंड में नक्सली घटनाओं में कमी आई है, इस बात को कोई नकार नहीं सकता, लेकिन जरूरत है यहां के बेरोजगार युवकों को रोजगार देने की, बच्चों और अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने की, क्योंकि कोई भी व्यक्ति हाथ में बंदूक नहीं उठाना चाहता.