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झारखंड में चुनाव बाद आखिर गठबंधन के करीब आए बाबूलाल मरांडी!

झारखंड विधानसभा चुनाव के पूर्व विपक्षी दलों के गठबंधन से दूर रहकर अकेले चुनाव लड़ने के बाद अब झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) की नजदीकियां गठबंधन से बढ़ने लगी हैं.

Updated on: 28 Dec 2019, 08:32 AM

रांची:

झारखंड विधानसभा चुनाव के पूर्व विपक्षी दलों के गठबंधन से दूर रहकर अकेले चुनाव लड़ने के बाद अब झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) की नजदीकियां गठबंधन से बढ़ने लगी हैं. दीगर बात है कि गठबंधन के नेता हेमंत सोरेन इन नजदीकियों को कितना तरजीह देते हैं. लोकसभा चुनाव के बाद से ही महागठबंधन की कवायद में जुटे झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने चुनाव से ठीक पहले महागठबंधन से दूरी बना ली. अच्छे दिन की आस में उन्होंने सभी 81 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी भी उतारा, परंतु परिणाम अपेक्षित नहीं रहा.

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लोकसभा चुनाव में मात खाने के बाद झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी हालांकि विधानसभा चुनाव में धनवार से अपनी प्रतिष्ठा बचाने में सफल रहे. इसके अलावा उनकी पार्टी से प्रदीप यादव (पोड़ैयाहाट) और बंधु तिर्की (मांडर) ने भी जीत हासिल की. विधानसभा चुनाव में गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद मरांडी ने सोरेन से मुलाकात की और बिना शर्त गठबंधन सरकार को समर्थन देने की घोषणा कर दी. लोगों का कहना है कि चुनाव के दौरान मरांडी इस बात को भलीभाति जान गए हैं कि झारखंड के मतदाताओं को 'एकला चलो' की नीति पच नहीं रही है. यही कारण है कि भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी रही आजसू सत्ता से दूर हो गई. अगर भाजपा और आजसू में तालमेल हो जाता तो चुनाव परिणाम अलग होता.

झारखंड की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले संपूर्णानंद भारती कहते हैं कि मरांडी की उम्मीद सात से दस सीट पर जीत हासिल करने की रही होगी और इसीलिए उन्होंने चुनाव पूर्व दोनों भाजपा और गठबंधन से दूरी बना ली थी. वह चुनाव बाद दोनों के लिए दरवाजा खुला रखना चाहते थे. लेकिन जब भाजपा सत्ता से दूर रह गई तो गठबंधन के साथ आने के अलावा मरांडी के पास कोई चारा नहीं था. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में मात्र तीन सीटों पर जीत दर्ज करने के कारण राजनीति में झाविमो अलग-थलग पड़ गया है. उसने एक नई रणनीति के तहत हेमंत सोरेन की सरकार को बिना शर्त समर्थन देने में भलाई समझी. अब यह झामुमो नीत गठबंधन सरकार पर निर्भर है कि वह झाविमो को किस नजरिए से देखती है, उसे किस हद तक तवज्जो देती है.

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झाविमो के एक नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, 'अगर आज झाविमो चुनाव के पूर्व गठबंधन में होता तो न केवल ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर लेता, बल्कि मंत्रिमंडल में भी शामिल होता. आज स्थिति है कि मंत्रिमंडल में शामिल होगा या नहीं यह हेमंत सोरेन पर निर्भर है. मरांडी के 'एकला चलो' नीति से कार्यकर्ता भी नाराज थे.' कहा तो यह भी जा रहा है कि मरांडी ने हेमंत सोरेन को समर्थन कर अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने की कोशिश की है.

उल्लेखनीय है कि भाजपा से अलग होकर बाबूलाल मरांडी ने 2006 में जब अलग पार्टी झाविमो का गठन किया, तब रवींद्र राय, समरेश सिंह सरीखे कई दर्जन भाजपाई उनके साथ हो लिए थे. बाद में उनका कुनबा बिखरता चला गया. 2014 के चुनाव बाद झाविमो के जिन छह विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया था, उनका भी यही आरोप था. बहरहाल, 'वन मैन शो' की छवि बना चुके मरांडी ने राजद, कांग्रेस और राजद गठबंधन सरकार को समर्थन देकर न केवल कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने का प्रयास किया है, बल्कि अन्य राजनीतिक पार्टियों के साथ चलने के संकेत भी दिए हैं.