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गुजरात है देश में कपड़ा उद्योग का हब, सिर्फ़ सूरत में मिलता है लाखों लोगों को रोजगार

गुजरात का समुचित आर्थिक विकास कपड़ा उद्योग पर बहुत हद तक निर्भर है, क्योंकि राज्य की 23% जीडीपी इसी क्षेत्र से आती है।

Updated on: 09 Dec 2017, 02:37 AM

highlights

  • गुजरात का 23% जीडीपी कपड़ा उद्योग और उससे जुड़े क्षेत्रों से ही आता है
  • देश में कपड़ा निर्यात के मामले में गुजरात की 12% हिस्सेदारी है
  • सूरत में रोजाना लगभग दो करोड़ मीटर कच्चे कपड़ों (ग्रे टेक्सटाइल) का उत्पादन होता है

नई दिल्ली:

आज गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 के पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य गुजरात तक़रीबन पिछले 2 महीने से राजनीतिक गढ़ बना हुआ है। राजनीति से इतर राज्य के आर्थिक विकास को समझना ज़रूरी है और इस आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा यहां का कपड़ा उद्योग है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के बाद कपड़ा उद्योग का सबसे बड़ा योगदान है। गुजरात देश भर में इस उद्योग का नेतृत्व करता हुआ राज्य है, क्योंकि देश में कपड़ा निर्यात के मामले में इसकी 12% हिस्सेदारी है।

गुजरात का समुचित आर्थिक विकास कपड़ा उद्योग पर बहुत हद तक निर्भर है, क्योंकि राज्य की 23% जीडीपी इसी क्षेत्र से आती है। बता दें कि गुजरात कपास (रूई) के उत्पादन में देश भर में पहले स्थान पर आता है। यहां की 16% उपजाऊ भूमि पर कपास की ही खेती होती है।

गुजरात में कपड़ा उद्योग का बड़ा हब अहमदाबाद और सूरत को माना जाता है। ये बड़े शहर हैं...
अहमदाबाद- सूती
सूरत- पॉलीस्टर
कच्छ- हाथ से प्रिंटेड
जेतपुर- डाइंग और प्रिंटिंग

भारत के 7वें सबसे बड़े मेट्रोपोलिटन शहर अहमदाबाद को 'मैनचेस्टर ऑफ़ इंडिया' कहा जाता है। इस शहर में कपड़ा उत्पादन और उससे संबंधित उद्योगों की लगभग 250 यूनिट हैं।

अहमदाबाद के कपड़ा उद्योग ने 1950 और 60 के दशक में एक लाख से भी ज़्यादा लोगों को रोजगार दिया था। उस वक़्त अहमदाबाद में औद्योगिक उत्पादन का दो तिहाई कपड़ा और उससे जुड़े उद्योगों से हासिल होता था।

वहीं 'राज्य का सिल्क सिटी' यानि सूरत कपड़ा उद्योग का सबसे बड़ा हब बन चुका है। शहर में साढ़े छह लाख तक सूत काटने की मशीनें (पावरलूम) हैं, जिससे चार लाख मीट्रिक टन सूत का उत्पादन होता है।

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इस उद्योग से 50,000 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार करने वाले सूरत और उसके आसपास में क़रीब 450 कपड़ा उत्पादन (डाइंग और प्रिंटिंग) की इकाइयां हैं। ये सभी इकाई कच्चे कपड़ों को अंतिम रूप देती (तैयार करती) है। शहर में रोजाना लगभग दो करोड़ मीटर कच्चे कपड़ों (ग्रे टेक्सटाइल) का उत्पादन होता है।

सूरत का सिर्फ़ पावरलूम सेक्टर 6 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है। वहीं प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) उद्योग 5 लाख लोगों को रोजगार दे रहा है। शहर में 150 के क़रीब होलसेल मार्केट हैं। बता दें कि सूरत राज्य से कपड़ा निर्यात का 40 फ़ीसदी हिस्सेदारी रखता है।

इसके अलावा लाखों लोग कपड़ा व्यापार, इसकी पैकिंग और यातायात जैसी चीज़ों से जुड़े हुए हैं। राज्य के शहरी क्षेत्रों में लगातार बड़े पैमाने कपड़ा उद्योग का विकास किया जा रहा है।

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जहां एक तरफ इन उद्योगों से गुजरात के कुछ शहरों ने चमक बिखेरी है, वहीं इसके कारण वायु और जल प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का दोहण और ज़मीन प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय समस्याएं भी बड़े रूप में निकलकर आई हैं। उद्योगों के विकास के साथ इससे निपटना भी कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया है।

इसी साल जुलाई में केंद्र सरकार द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने से कपड़ा व्यापारियों पर बड़ा असर पड़ा था। रूई और कपड़ों में जीएसटी की दरों को लेकर हज़ारों छोटे और बड़े व्यापारियों ने कई दिनों तक हड़ताल किया था।

सूरत में पाटीदार समुदाय के लोग बड़े पैमाने पर इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने जीएसटी लागू होने के समय आर्थिक नुकसान के लिए सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला था। इसलिए कांग्रेस पार्टी अपने चुनावी अभियान की शुरुआती दौर से ही पाटीदार आरक्षण और जीएसटी के प्रमुख मुद्दे को भुनाने की कोशिश करती रही।

ऐसे में बीजेपी का गढ़ और राज्य का आर्थिक हब सूरत में इस बार दोनों बड़ी पार्टियों की कड़ी टक्कर देखी जा सकती है।

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