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निर्भया केसः सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की दोषी पवन की याचिका, नहींं माना नाबालिग होने का तर्क

निर्भया गैंग रेप मामले में दोषी पवन की उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है जिसमें उसने कहा था कि घटना के समय वह नाबालिग था. इस मामले में कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहले ही दलीलें दी जा चुकी हैं.

Updated on: 20 Jan 2020, 03:17 PM

नई दिल्ली:

निर्भया गैंग रेप मामले में दोषी पवन की उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है जिसमें उसने कहा था कि घटना के समय वह नाबालिग था. इस मामले में कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहले ही दलीलें दी जा चुकी हैं. ऐसे में अब इस मामले को दोबारा उठाने का कोई मतलब नहीं. दिल्ली के निर्भया गैंग रेप मामले में दोषी पवन की याचिका पर सुनवाई को दौरान कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की. 

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सुप्रीम कोर्ट सोमवार को दोषी पवन की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. पवन ने याचिका लगाई है कि घटना के समय वह नाबालिग था. पवन के वकील का कहना है कि दोषी के घटना के समय नाबालिग होने की बात को पुलिस और कोर्ट ने नजरअंदाज किया है. पवन के वकील ए पी सिंह ने दलील दी कि स्कूल सर्टिफिकेट के मुताबिक पवन की जन्मतिथि 8 अक्टूबर 1996 है. इस पर कोर्ट ने सवाल किया कि आपने ये सर्टिफिकेट 2017 में हासिल किया, उससे पहले आपको कोर्ट से दोषी करार दिया गया था. इस पर एपी सिंह ने कहा कि पुलिस ने जानबूझकर पवन के नाबालिग होने को रिकॉर्ड को छुपाया. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये सब दलील रिव्यु पिटीशन में रखी जा चुकी है. 

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एपी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया जिसके मुताबिक नाबलिग होने के दावे को किसी भी स्टेज पर उठाया जा सकता है. एपी सिंह ने कहा कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट से अपील, रिव्यु खारिज होने के बाद भी उठाया जा सकता है. इस पर जस्टिस भानुमति ने सवाल किया कि कितनी बार आप इस मामले को उठाएंगे. आप निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक ये दलील पहले ही दे चुके है फिर अब इसे उठाने का क्या मतलब है, फिर तो ये अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाएगा. एपी सिंह ने ट्रायल कोर्ट द्वारा नाबालिग होने के दावे खारिज होने के फैसले पर सवाल उठाये. इस पर कोर्ट ने कहा कि हम यहां फैसले को रिव्यु करने के लिए नहीं बैठे है, वो वक़्त जा चुका है.

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तुषार मेहता ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के उस हिस्से को पढ़ा जिसके मुताबिक तब दोषी की ओर से अपने जुवेनाइल न होने को लेकर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी. जन्म प्रमाण पत्र भी तब पेश किया गया था, वो भी अपने आप में एक सबूत है. उन्होंने कहा कि रिव्यू पिटीशन के दौरान कोर्ट पहले ही इस दलील को खारिज कर चुका है. तुषार मेहता ने कहा कि जुवेनाइल वाला मामला किसी भी स्टेज पर उठाया जा सकता है, पर बार बार इसे उठाने की इजाजत नहीं दी जा सकती.