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मोहम्मद अरशद मदनी बोले, सड़क से नहीं हटेंगे प्रदर्शनकारी, अमित शाह चाहें तो...

जमीयत उलेमा ए हिंद के सदर मोहम्मद अरशद मदनी ने दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) पर कहा कि सड़क से किसी भी सूरत पर प्रदर्शनकारी नहीं हटेंगे. यह 50 करोड़ लोगों के मुस्तकबिल का सवाल है.

Updated on: 27 Feb 2020, 06:39 PM

नई दिल्ली:

जमीयत उलेमा ए हिंद के सदर मोहम्मद अरशद मदनी (Arshad Madni) ने दिल्ली हिंसा पर कहा कि सड़क से किसी भी सूरत पर प्रदर्शनकारी नहीं हटेंगे. यह 50 करोड़ लोगों के मुस्तकबिल का सवाल है. जब अरशद मदनी से यह पूछा गया कि अगर जगह-जगह शाहीनबाग जैसे हालात बनेंगे तो लोगों की आवाजाही का लोकतांत्रिक तरीके से कैसे निपटारा होगा. अन्ना हजारे का आंदोलन भी रामलीला मैदान में लड़ा गया था, तो क्या प्रदर्शनकारियों को सड़क से नहीं हटना चाहिए? इस पर मदनी साहब ने जवाब दिया कि यह 30 करोड़ दलितों और 20 करोड़ मुसलमानों के भविष्य का सवाल है, लिहाजा जब तक सरकार की तरफ से स्पष्टीकरण नहीं आएगा, तब तक प्रदर्शनकारियों को सड़क से नहीं हटना चाहिए.

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ताहिर हुसैन का किया बचाव
आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन का बचाव करते हुए मदनी बोले कि जिस घर में पेट्रोल बम और एसिड मिले हैं, उस घर में हुसैन खुद नहीं रहते थे, लिहाजा वहां कोई भी शख्स कुछ भी सामान रख सकता है. इससे सीधा ताहिर हुसैन को जोड़ना ठीक नहीं ,फिर भी अगर पक्के सबूत मिलते हैं तो चाहे वह किसी भी धर्म का हो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए.

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दिल्ली पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप
अरशद मदनी ने दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि हमारे पास तस्वीरें हैं, वीडियो है, कि कैसे पुलिस वाले लोगों को घसीट रहे हैं. पुलिस वाले जुल्म कर रहे हैं. पुलिस वालों की वजह से ही दंगा इतना लंबा चला, क्योंकि अगर दिल्ली पुलिस चाहती तो पहले ही दिन दंगे पर काबू किया जा सकता था. कर्फ्यू का ऐलान करने के बाद पुलिस बल गायब हो गया.

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अमित शाह की चुटकी से निकल सकता है रास्ता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह अगर चाहें तो यह प्रदर्शन खत्म हो सकता है. सरकार को बस एक चुटकी बजाने की देरी है. सरकार चाहे तो स्थिति सामान्य और शांत हो सकती है, अमित शाह को सामने आना चाहिए.

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प्रदर्शन खत्म कराने वाली ताकतों की वजह से भड़का दंगा
दिल्ली में हुई हिंसा के पीछे उन ताकतों का हाथ है जो नहीं चाहते थे कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन चलता रहे उन्हीं की शह पर हिंसा और दंगे भड़के हैं. सरकार चाहती तो पहले ही दिन स्थिति सामान्य हो सकती थी.