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सरकार के पास पूरे देश में NRC लागू करने की संसाधन क्षमता नहीं, जानिए किसने कही ये बात

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में ''सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गर्वनेंस'' की प्रोफेसर और पुस्तक ''सिटिजनशिप एंड इट्स डिसकंटेंट्स: ऐन इंडियन हिस्ट्री'' की लेखिका नीरजा गोपाल जयाल से खास बातचीत.

Updated on: 29 Dec 2019, 01:49 PM

highlights

  • नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी के खिलाफ प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में इन दिनों विवाद और सियासी घमासान चल रहा है.
  • वहीं ज्यादातर भारत के इलाकों में इन नियमों पर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है, लोग सड़कों पर उतरकर आ गए है. 
  • इसी प्रश्नोत्तर में जानने की कोशिश करेंगे की इस सिस्टम को लागू करने में केंद्र सरकार को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. 

दिल्ली:

नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act-CAA) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (National Register of Citizens) के खिलाफ प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में इन दिनों विवाद और सियासी घमासान चल रहा है. पेश हैं इस संबंध में सीएए और एनआरसी पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में ''सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गर्वनेंस'' की प्रोफेसर और पुस्तक ''सिटिजनशिप एंड इट्स डिसकंटेंट्स: ऐन इंडियन हिस्ट्री'' की लेखिका नीरजा गोपाल जयाल से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब दिए. इन जवाबों और सवालों से ये जाना जा सकता है कि भारत में एनआरसी लागू करने में सरकार को क्या क्या दिक्कतें आ सकती हैं.

सवाल 1: सीएए को असंवैधानिक बताकर इसका विरोध किया जा रहा है. आपकी क्या राय है?

जवाब : इस बात में दम है कि यह कानून असंवैधानिक है. इसकी वैधानिकता का बारे में न्यायालय फैसला करेगा. मेरा यह मानना है कि यह अनुच्छेद 14 के खिलाफ है. हमारे यहां नागरिकता से जुड़ी संवैधानिक व्यवस्था की मूलभावना में धर्मनिरपेक्षता है. यह उसके खिलाफ है. यही वजह है कि हम इसे असंवैधानिक मानते हैं.

सवाल 2: क्या किसी बड़े लोकतांत्रिक देश में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने की ऐसी कोई व्यवस्था है?

जवाब : मैंने अब तक ऐसे किसी बड़े लोकतंत्र के बारे में यह नहीं सुना कि वहां धर्म के आधार पर नागरिकता दी गयी हो या फिर सभी नागरिकों से अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा गया हो. 2006 में ब्रिटेन में राष्ट्रीय पहचान रजिस्टर से राष्ट्रीय पहचान पत्र को जोड़ने से जुड़े कानूनी प्रावधान का विरोध हुआ और 2011 में राष्ट्रीय पहचान रजिस्टर का डाटा नष्ट किया गया. हां, राजनीतिक शरण मांगने की स्थिति में लोग धर्म के आधार पर उत्पीड़न का हवाला देते हैं. लेकिन यह शरण के लिए होता है. किन्तु जब नागरिकता और राष्ट्रीयता देने की बात आती है तो बड़े लोकतांत्रिक देश धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करते.

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सवाल 3: सीएए का विरोध कर रहे लोग इसे ''मुस्लिम विरोधी'' बता रहे हैं और दूसरी तरफ सरकार कई बार कह चुकी है कि इससे देश के मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं होगा. आपका क्या कहना है?

जवाब : फिलहाल तो इससे देश के मुस्लिम नागरिकों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन एनआरसी लागू होने की स्थिति में जो लोग सूची से बाहर रहेंगे, उनमें से गैर मुस्लिम स्वतः इस कानून के तहत नागरिक हो जाएंगे. इस संदर्भ में यह कानून भेदभावपूर्ण है.

सवाल 4: एक सवाल एनआरसी पर होने वाले खर्च की कवायद को लेकर है. आपके मुताबिक, पूरे भारत में एनआरसी लागू होने पर कुल कितना खर्च होगा?

जवाब : असम में 3.3 करोड़ की आबादी पर एनआरसी में 1600 करोड़ रुपये का खर्च आया और इस काम में करीब 50 हजार लोगों को लगाया गया था. हमारे आकलन के अनुसार, पूरे देश के करीब 90 करोड़ मतदाताओं पर एनआरसी का खर्च लगभग 4.26 लाख करोड़ रुपये आएगा और इस काम के लिए 1.3 करोड़ से ज्यादा लोगों को तैनात करना पड़ेगा. इसलिए मेरा यह कहना है कि हमारी सरकार के पास संसाधन के संदर्भ में इतनी क्षमता नहीं है कि वह इसे पूरे देश में लागू कर पाए. उसके पास न तो वितीय संसाधन हैं और न ही प्रशासनिक संसाधन हैं.

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सवाल 5: सीएए और एनआरसी को लेकर चल रहे विवाद का समाधान क्या है?

जवाब : इस पर कानूनी निर्णय तो न्यायालय को करना है. लेकिन अगर सरकार इस कानून के भेदभावपूर्ण प्रावधान को हटा दे तो रास्ता खुद-ब-खुद निकल जायेगा.