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दिल्ली के एम्स में आग लगने से हुई भारी तबाही बच सकती थी अगर...

एम्स सूत्र बताते हैं कि इस अग्निकांड से अस्पताल परिसर की तमाम टेलीफोन लैंड लाइन ने भी काम करना बंद कर दिया है, जिसके चलते खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है

Updated on: 26 Aug 2019, 03:04 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली में स्थित सबसे बड़े अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान यानि एम्स में लगी भीषण आग में हुई बर्बादी को काफी हद तक रोका जा सकता था. जरुरत थी तो सिर्फ इसकी कि, अस्पताल प्रशासन और परिसर में चप्पे-चप्पे पर फैले प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी के गार्डस अलर्ट होते! दिल्ली दमकल विभाग के कर्मचारी तो पूरी ताकत झोंकने पर आमादा थे, मगर उन्हें यह सब कर गुजरने का मौका तलाशने में ही काफी वक्त बर्बाद हो गया. आईएएनएस से बातचीत करते हुए दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक विपिन कैंटल ने रविवार को इनमें से कई बिंदुओं का समर्थन किया है. आग की शुरुआत कब हुई इस सवाल का माकूल जबाब एम्स प्रशासन में अभी तक किसी के पास नहीं है. सिवाय इस संभावना को जताने की कि, आग शायद शार्ट सर्किट से लगी होगी!

विपिन कैंटल ने आईएएनएस को बताया कि, दिल्ली फायर कंट्रोल रुम को आग लगने की सूचना शाम करीब पांच से साढ़े पांच बजे के आसपास मिली. सूचना मिलते ही तत्काल 15 फायर टेंडर (आग बुझाने की गाड़ी) मौके पर रवाना कर दिये गये. रात करीब साढ़े ग्यारह बजे के आसपास आग पर पूरी तरह काबू पा लिया गया. जबकि पीसी ब्लॉक की पांच मंजिला इमारत (जिसमें आग लगी) में फैले धुंए और हल्की फुल्की सुलग रही आग को रविवार सुबह करीब सात बजे पूरी तरह शांत किया जा सका.

एम्स सूत्र बताते हैं कि इस अग्निकांड से अस्पताल परिसर की तमाम टेलीफोन लैंड लाइन ने भी काम करना बंद कर दिया है, जिसके चलते खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. दिल्ली दमकल सेवा के निदेशक विपिन कैंटल ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा कि, आग को काबू करने के लिए कुल 34 फायर टेंडर लगाने पड़े.

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कैंटल ने कहा, 'एम्स पहुंचते ही हमने अंदाजा लगा लिया था कि आग पीसी ब्लॉक की दूसरी मंजिल से भड़की है. इसी मंजिल पर प्रयोगशाला है. यहां एक आईसीयू भी है जिसमें कई मरीज वेंटीलेटर पर गंभीर हालत में थे. सबसे पहले उन्हें निकाला. उसके बाद और भी तमाम मरीजों को सबसे पहले बचाना दिल्ली दमकल की प्राथमिकता में रहा. इसमें हमें कामयाबी भी मिली, मगर काफी मशक्कत के बाद.'

आग बुझाने में क्या कुछ खास कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, यह पूछने पर कैंटल बोले, 'पीसी बिल्डिंग के पीछे की साइड में (जिसकी सेकेंड फ्लोर पर आग की शुरुआत हुई) भू-तल पर अस्पताल प्रशासन ने कुछ भारी-भरकम उच्च क्षमता वाले जनरेटर सेट स्थापित कर रखे हैं. दिल्ली फायर के कर्मचारियों को आग की शुरुआत होने वाली जगह यानि प्रयोगशाला में पहुंचने के लिए अपने हाईराइज प्लेटफार्म्स यहीं लगाने थे. लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके, अगर उसी जगह पर हाईराइज प्लेटफार्म्स वक्त रहते लग गये होते तो हम आग को शायद अन्य मंजिलों पर पहुंचने से रोक सकते थे. मजबूरी में हमें प्रभावित इमारत के सामने ले जाकर हाईराइज प्लेटफार्म्स खड़े करने पड़। जोकि जरुरत के हिसाब वाली जगह से काफी दूर थे.'

आईएएनएस सूत्रों के मुताबिक अभी तक यह माना जा रहा है कि आग शार्ट सर्किट से लगी है. जबकि दूसरी ओर अस्पताल की बंद प्रयोगशाला में आग लगने के कारणों के बारे में पूछे जाने पर दिल्ली दमकल सेवा निदेशक विपिन कैंटल ने कहा कि, 'यह जांच का विषय है. शार्ट सर्किट आग की एक वजह या कारण हो सकता है. मगर शार्ट सर्किट ही आग की वजह थी, यह मजबूत तरीके से कहना ठीक नहीं होगा.'

इसके पीछे उनका तर्क है कि, 'आग संस्थान की बंद प्रयोगशाला में लगी। शनिवार का दिन अवकाश का दिन था. ऐसे में फिलहाल बंद प्रयोगशाला के भीतर आग शार्ट सर्किट से लगने की बात कह देना मुनासिब नहीं है, क्योंकि आग की पहली चिंगारी बंद लैब के अंदर किसी ने उठती देखी ही नहीं है.'

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आईएएनएस के सूत्र बंद लैब में किसी ज्वलनशील पदार्थ से भी आग लगने की संभावनाओं पर फिलहाल पूर्ण विराम नहीं लगाते हैं.

दिल्ली दमकल सेवा निदेशक विपिन कैंटल इस बात को बार-बार दोहराते हैं कि, 'अस्पताल प्रशासन ने अगर अग्नि से प्रभावित हुई पांच मंजिला इमारत के पिछले हिस्से के भू-तल को भारी-भरकम जनरेटरों से न घेरा होता तो दिल्ली दमकल सेवा हर हाल में आग पांच मंजिला तक नहीं पहुंचने देती.' उनके मुताबिक आग में कोई हताहत नहीं हुआ. नुकसान के बारे में पूछने पर कैंटल ने कहा, 'पांच मंजिला इमारत में करीब पांच कमरों को आग ने चपेट में लिया. रिकॉर्ड और कीमती मशीनरी का नुकसान जरूर बहुत ज्यादा हुआ. नुकसान की कीमत और रिकॉर्ड खाक होने का आंकड़ा एम्स और पुलिस की जांच के बाद ही सही-सही पता चल पायेगा.'