बाल दिवस पर भी घरों में कैद रहे बच्चे, परिजनों, स्कूलों और समाजसेवियों ने जताई नाराजगी
दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बृहस्पतिवार को बढ़ते-बढ़ते दोपहर ढाई बजे तक 463 पर पहुंच गया जो सुबह साढ़े नौ बजे रिकॉर्ड किये गए एक्यूआई से तीन अंक अधिक था.
दिल्ली:
दिल्ली-एनसीआर में कुछ समय पहले तक आज के दिन यानि बाल दिवस पर स्कूलों में पिकनिक, खेल और मौज-मस्ती से जुड़े अन्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में बढ़ते वायु प्रदूषण ने बाल दिवस का मजा किरकिरा कर दिया है. इस साल देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन यानि बाल दिवस पूरी तरह अलग रहा. बृहस्पतिवार को शहर में न केवल दोपहर के समय बल्कि देर शाम को भी धुंध की मोटी चादर और अंधेरा सा छाया रहा. इस दौरान वायु गुणवत्ता 'गंभीर' श्रेणी में रही और अधिकारियों को स्कूल बंद रखने पड़े ताकि बच्चे खतरनाक वातावरण की चपेट में न आएं.
बुधवार रात पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने राष्ट्रीय राजधानी और इससे सटे शहरों में दो दिन तक स्कूल बंद रखने का निर्देश दिया था. एक ओर जहां बच्चे घरों में बंद रहे वहीं दूसरी ओर परिजनों, छात्रों और स्कूल अधिकारियों ने इस बात को लेकर गुस्सा प्रकट प्रकट करते हुए भविष्य को लेकर चिंताएं जाहिर कीं और पूछा कि इन प्रदूषकों को तितर-बितर करने के लिये क्या कुछ किया सकता है. दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बृहस्पतिवार को बढ़ते-बढ़ते दोपहर ढाई बजे तक 463 पर पहुंच गया जो सुबह साढ़े नौ बजे रिकॉर्ड किये गए एक्यूआई से तीन अंक अधिक था. कई छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे अपने लिए स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने के उपाय करने का आग्रह किया. एक छात्र इशांत महंत ने कहा, "अब से पहले मैं फुटबॉल खेला करता था, लेकिन अब मैं सिर्फ टीवी ही देख सकता हूं. मैं बाहर नहीं जा सकता क्योंकि जहरीली हवा सांसों के साथ अंदर जा रही है."
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कई छात्रों ने अपने हाथ से लिखे पत्रों की प्रतियां हैशटैग "बच्चों के मन की बात" के साथ ट्विटर पर पोस्ट कीं. एक अन्य छात्र ने कहा, "इस गंभीर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार और प्रभावित राज्यों की सरकारों को ठोस निर्देश देने की जरूरत है. हमें अपने प्रिय प्रधानमंत्री पर विश्वास है जो निश्चित रूप से इस संबंध में ठोस निर्णय लेंगे." आर्किटेक्ट प्रियंका तनेजा ने परिजनों की चिंताएं व्यक्त करते हुए अपनी नाराजगी जाहिर की. उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, "बच्चों को घर के अंदर रहने के लिए मजबूर किया जाता है, स्कूल बंद कर दिए जाते हैं, एयर प्यूरीफायर लगाए जा रहे हैं लेकिन इनमें से कोई भी समस्या का समाधान नहीं है. जहरीली हवा के खतरे को सीमित करने के प्रयास करने के अलावा भी कुछ करने की जरूरत है."
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एक अन्य अभिभावक नेहा भारद्वाज ने कहा कि उनका बेटा बाल दिवस के लिए नेहरू के रूप में तैयार होने को लेकर उत्साहित था, लेकिन स्कूल बंद होने से वह वाकई निराश है. नेहा ने कहा, "मेरे पास उसे घर पर तैयार कर उसकी खुशी के लिए तस्वीरें खींचने के अलावा कोई तरीका नहीं था." वहीं, श्रीराम स्कूल ने ट्वीट कर अपना गुस्सा जाहिर किया. स्कूल ने लिखा, "14 नवंबर 2019. यह अंधकार दिवस है. शायद हमारे इतिहास के सबसे अंधकारमय दिनों में से एक, जहां बच्चों को घरों में कैद होने को मजबूर किया जा रहा है क्योंकि हम एक समाज के रूप में, शहर के रूप में, राष्ट्र के रूप में विफल हो चुके हैं. हम उन्हें अधिकारों का सबसे बुनियादी आधार स्वच्छ हवा प्रदान करने में विफल रहे हैं."
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नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने ट्वीट किया, "बाल दिवस मनाने के लिए पेरू से यहां आया. लेकिन अफसोस! मेरे बच्चे स्वच्छ हवा में सांस लेने के लिए तड़प रहे हैं. उनकी खुशियां उनके हाथों के बने पोस्टर, तख्तियां, गुब्बारों कहीं खो गई हैं. वे खामोश हैं. अगर हम अपने बच्चों को नहीं मना सकते तो हमें और कुछ मनाने का क्या अधिकार है?"
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