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छत्तीसगढ़ का ग्राम समृद्धि मॉडल बना देश के लिए आकर्षण, जानें क्या है खास

ये अभियान देश के अन्य हिस्सों में चर्चा का विषय बन गया है. यही कारण है कि विभिन्न राज्यों के प्रशासनिक अधिकारी इस अभियान (मॉडल) को जानने और अध्ययन करने के लिए यहां पहुंचने लगे हैं.

Updated on: 17 Oct 2019, 12:18 PM

highlights

  • छत्तीगसढ़ (Chhattisgarh) के गांव को समृद्घ बनाने के लिए चलाया जा रहा.
  •  ये अभियान देश के अन्य हिस्सों में चर्चा का विषय बन गया है. 
  • अब लोग इस मॉडल को जानने और अध्ययन करने के लिए यहां पहुंचने लगे हैं.

रायपुर:

छत्तीगसढ़ (Chhattisgarh) के गांव को समृद्घ बनाने के लिए चलाया जा रहा. ये अभियान देश के अन्य हिस्सों में चर्चा का विषय बन गया है. यही कारण है कि विभिन्न राज्यों के प्रशासनिक अधिकारी इस अभियान (मॉडल) को जानने और अध्ययन करने के लिए यहां पहुंचने लगे हैं.

मुख्यमंत्री मंत्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) के सलाहकार प्रदीप शर्मा का कहना है कि नरवा (नाला), गरूवा (जानवर), घुरवा(घूरा) बाडी (घर के पिछवाड़े की साग-सब्जी के लिए उपलब्ध जमीन) किसी भी गांव और परिवार की समृद्घि का सूचक हुआ करता था, मगर वक्त गुजरने के साथ इस पर ग्रहण छाने लगा. इसी के चलते गांवों में गरीबी आने लगी. वर्तमान सरकार एक बार फिर इन्हें समृद्घ बनाने की दिशा में बढ़ रही है. कोई भी गांव और परिवार इन चार मामलों में सक्षम होता है तो उसकी समृद्घि का संदेश मिलता है.

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छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Assembly Elections) से पहले कांग्रेस (Congress) ने नारा दिया था-'छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा, गरूवा, घुरवा बाडी ऐला बचाना है संगवारी' और सत्ता में आने के बाद इस पर अमल भी शुरू कर दिया गया. अब समृद्घि के प्रतीक इन चारों पहचानों को बचाने का अभियान तेज किया गया है. ग्राम पंचायत स्तर पर गोठान बनाए जा रहे हैं, जहां जानवरों को चारा-पानी का इंतजाम किया जा रहा है. साथ ही स्वरोजगार के जरिए गोबर के विभिन्न उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं.

प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि एक तरफ जहां आवारा पशुओं को आसारा दिया जा रहा है, वहीं पानी के बेहतर इंतजाम के प्रयास हो रहे हैं, किसानों को फसल का उचित दाम दिया जा रहा है. खाद, बीज उपलब्ध कराया जा रहा है कि इसके चलते गांव की तस्वीर बदलने की संभावना बनने लगी है.

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छत्तीसगढ़ के गांव में आ रहे बदलाव की चर्चा देश के अन्य हिस्सों में है. यही कारण है कि तमाम अधिकारी यहां जमीनी हकीकत को जानने पहुंचने लगे हैं. इसी क्रम में पिछले दिनों देश के 14 राज्यों -तमिलनाडु, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, झारखण्ड, गुजरात, केरल, मणिपुर, मेघालय, मध्यप्रदेश, असम, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक तथा ओडिशा राज्य के कुल 22 भारतीय वन सेवा के उच्च अधिकारी यहां आए. इन्होंने राज्य वन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान में दो दिन का प्रशिक्षण भी लिया. उन्हें दो दिवसीय कार्याशाला में वानिकी संबंधी महत्वपूर्ण तकनीकी सत्रों के साथ-साथ प्रदेश में वानिकी के क्षेत्र में किए जा रहे. नवाचारों तथा छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी योजना "छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा (नाला), गरूवा (जानवर), घुरवा(घूरा) बाडी (खेती की जमीन) ऐला बचाना है संगवारी" का अध्ययन भी कराया गया.

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मनरेगा के आयुक्त एवं सचिव टी़ सी़ महावर ने इस योजना का जिक्र करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में सतत विकास के लिए एक अभिनव परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है, जिससे न केवल स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं संवर्धन सुनिश्चित होगा, बल्कि उन पर आधारित कार्यो से स्थानीय जनता को आजीविका के साधन भी उपलब्ध होंगे. आज संपूर्ण देश में इस योजना को समझने-सीखने एवं अपने-अपने क्षेत्रों में क्रियान्वित करने की आवश्यकता है.

सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनाव से पहले दिए गए नारे का ग्रामीणों से प्रतिक्रिया मिली. गांव वाले इस नारे के चलते यह मानने लगे थे कि भूपेश बघेल किसान का बेटा है और वह गांव व खेती-किसानी को करीब से जानता है. इसका असर चुनावी नतीजों में नजर आया. यही कारण है कि बघेल चुनाव से पहले दिए गए नारे को अमलीजामा पहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.