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1917 में जिस नीम के पेड़ के नीचे गांधी जी ने सुनी थी किसानों की पीड़ा, वो आज...

पूर्वी चम्पारण का ऐतिहासिक नीम का पेड़, जो चम्पारण सत्याग्रह का इकलौता जीता जागता सबूत था, अब वह नहीं रहा.

Updated on: 14 Dec 2019, 01:58 PM

मोतिहारी:

पूर्वी चम्पारण का ऐतिहासिक नीम का पेड़, जो चम्पारण सत्याग्रह का इकलौता जीता जागता सबूत था, अब वह नहीं रहा. हम उसी नीम के पेड़ की बात कर रहे हैं, जहां से देश की आजादी का बिगुल मोहन दास करमचंद गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ फूंका था और आंदोलन ने देश की आजादी की नींव रखी थी. अब यह इतिहास के पन्नों तक सीमित हो गया. 1917 में इस नीम के पेड़ के नीचे महात्मा गांधी ने किसानों की थी पीड़ा सुनी थी. अंग्रेजों की क्रूरता की दास्तां को किसानों ने गांधी जी को सुनाया था और चम्पारण सत्याग्रह का जीता जागता उदाहरण नीम का पेड़ अब सूख गया है. यह पेड़ अधिकारियों और राजनेताओं की उपेक्षा और उदासीन रवैये के कारण आज पूरी तरह से मृत हो चुका है.

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स्थानीय नागरिकों ने इस पेड़ की महत्ता को बताते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि सौन्दर्यीकरण के नाम पर बने चबूतरे के कारण पेड़ का अस्तित्व खत्म हुआ है. स्थानीय लोग इसके लिए सिर्फ और सिर्फ अधिकारियों को जिम्मेवार बताते हैं, क्योंकि पेड़ की सूखने की खबर जिलाधिकारी से लेकर वन विभाग को दी गई थी. साथ ही राज्य सरकार के आलाधिकारी से गुहार लगाई गई, लेकिन किसी ने भी इस ओर देखना भी पसंद नहीं किया और अब एक ऐतिहासिक हरा भरा पेड़ सुख कर कांटा बन गया है.

स्थानीय लोगों ने पेड को बचाने का प्रयास किया, लेकिन सरकारी राशि से बने चबूतरा को तोड़ने की हिम्मत किसी ने नहीं जुटाई. स्थानीय लोगों की सूचना पर वन विभाग के अधिकारी गए, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. वन विभाग के अधिकारी अफसोस जाहिर करते हुए बताते हैं कि सौदर्यीकरण के नाम पर पेड़ की जड़ों को चबूतरे में कैद कर चाईलस और मार्बल के पत्थरों से दबा दिया गया, जिससे पेड सूख गया है.

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महापुरुषों की कृति को संवारने के लिए सरकार ऐतिहासिक स्थलों का सौदर्यीकरण करती है. इस सौदर्यीकरण के दौर में पुराने स्थलों को नया रुप दिया जा रहा है. कुछ ऐसा ही हुआ इस ऐतिहासिक नीम के पेड़ के साथ. पेड़ के गुण और दोष की जानकारी से दूर अधिकारियों ने पेड़ की जड़ों को बंद करा दिया और ऊपर से टाईल्स और मार्बल को लगाकर सुन्दर बनाने का प्रयास किया, जो पेड के लिए खतरनाक साबित हुआ. ऐतिहासिक स्थलों का सौदर्यीकरण जरूरी है, लेकिन जानकारों के सहारे सौदर्यीकरण कराने से सुंदर और स्वरुप में बदलाव नहीं होगा, जिससे ऐतिहासिकता जागृत रहेगी.