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PK ने तोड़ी चुप्पी, कहा- 2014 के नीतीश कुमार मेरे लिए ज्यादा सम्मानीय, बनाएंगे पिछलग्गू मुक्त बिहार

2020 तक देश के कई राज्यों में उनकी चुनावी रणनीतिकार वाली भूमिका दिखी. जिसमें दिल्ली की इस बार की केजरीवाल सरकार भी है

Updated on: 18 Feb 2020, 10:04 PM

पटना:

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशान्त किशोर ने आखिर एक लम्बे वक़्त के बाद दिल की बात सामने रख ही दी. प्रधानमंत्री से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री और राजनीतिक दलों के रणनीतिकार पीके को अब राजनीति में दिलचस्पी बढ़ी है. अब इन्हें युवाओं में संभावना और अपने पुराने साथियों में कमी दिखने लगी है. 2014 में नरेंद्र मोदी के कारण चर्चा में आये प्रशांत किशोर 2015 में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते दिखे. 2020 तक देश के कई राज्यों में उनकी चुनावी रणनीतिकार वाली भूमिका दिखी. जिसमें दिल्ली की इस बार की केजरीवाल सरकार भी है.

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मगर इन सब के बीच उनका रिश्ता नीतीश कुमार और जदयू से बिगड़ते गया और वो दल से बाहर कर दिये गये. अब प्रशांत किशोर मंगलवार को जब न्यूज़ नेशन से बात की तो भड़ास निकली. उन्होंने ये बताया कि नीतीश कुमार से उनका राजनीतिक संबंध नहीं रहा है. उन्होंने कहा की 2014 से नीतीश कुमार ने मुझे बेटे जैसा रखा. पीके ने भी उन्हें पितातुल्य माना. उन्होंने जो भी फैसला लिया, चाहे मुझे पार्टी में रखने का या निकालने का. मैं उस पर कुछ नही कहूंगा. ये उनका एकाधिकार है. मैं आज भी सम्मान करता हूं. मगर मतभेद के दो कारण हैं.

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वे कहते हैं गांधी, जेपी, लोहिया को हम नहीं छोड़ सकते. फिर आप गोडसे के साथ खड़े लोगों के साथ क्यों हैं? दोनों बातें कैसे हो सकती हैं. गांधी गोडसे साथ में नहीं चल सकते. आपको बताना होगा कि आप किसके साथ हैं. पीके ने मतभेद का दूसरा कारण गठबंधन में positioning को लेकर बताया है. 2014 के नीतीश कुमार मेरे लिये ज्यादा सम्मानीय हैं. अब कोई गुजरात का नेता उन्हें depute करे, ये ठीक नही. नीतीश कुमार को बिहार की जनता ने बनाया है.

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देखना ये है कि इस गठबंधन के साथ रहने से बिहार का विकास हो रहा है. इतने compromise के बाद भी कुछ हुआ. बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा मिला. छोटी बात पटना यूनिवर्सिटी को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा तक नहीं मिला. गठबंधन क्यों, सिर्फ मुख्यमंत्री बनने के लिये. बिहार में बने रहने के लिये कुछ लोग मानते हैं भाजपा के साथ रहना जरूरी है. मैं ये नहीं मानता हू कि ऐसे पीके नयी तैयारी कर दी है. उन्होंने कहा कि मैं एक पोलिटिकल वर्कर के रूप में मरते दम तक बिहार की सेवा करता रहूंगा.

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मैं बिहार में चुनाव लड़ने लड़ाने के लिये नहीं बैठा हूं. मैं युवाओं को जोड़ना चाहता हूं. उनके सपनों से जुड़ना चाहता हूं और नयी दिशा देना चाहता हूं. मेरा प्रयास long term है. 20 तारीख से 'बात बिहार की' नाम से कार्यक्रम शुरू करूंगा. 8000 से अधिक पंचायतों में से एक हजार मुखिया चुने जायेंगे. जो लोग बिहार को अग्रणी भूमिका में देखना चाहते हैं. पीके ने बताया कि 2 लाख 93 हजार युवाओं को जोड़ा है और 20 मार्च तक 10 लाख तक युवा मेरे मुहीम से डिजिटली रजिस्टर हो कर जुड़ेंगे.

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ये दावा है कि तीन महीने में एक करोड़ लोग पीके से जुड़ जायेंगे. पीके ने ये भी कहा कि ये स्थिति तब बदलेगी, जब कोई सशक्त स्थायी नेतृत्व होगा.पिछ्लग्गू बनने से काम नहीं चलेगा. पिछ्लग्गू मुक्त नेतृत्व चाहिए. पीके की बातों ने सियासत में खलबली बढ़ा दी है. जदयू खफा भी दिख रही है. पार्टी के महासचिव आरसीपी सिंह ने 2020 चुनाव के लिये दी चुनौती. इन्होंने तो ये भी कहा कि किसी के सर्टिफिकेट की नीतीश कुमार को जरूरत नहीं. आरसीपी सिंह ने कहा कि किसी के जाने से फर्क नहीं पड़ता. अब एक बात तो तय है कि पीके ने सियासी गर्मी बढ़ा दी.