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बिहार के सीमांचल में लेखक फणीश्वर नाथ रेणु परिवार का होता है राजनीतिक इस्तेमाल- दक्षिणेश्वर प्रसाद राय

रेणु के परिजनों को मलाल है कि उनका राजनीति में इस्तेमाल तो खूब हुआ, लेकिन हक अदा नहीं मिला

Updated on: 22 Feb 2019, 03:21 PM

नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) की अभी भले ही घोषणा नहीं हुई है लेकिन देशभर में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. ऐसे में अपनी बढ़त बनाने के लिए समीकरण बनाने में जुटे राजनीतिक दलों की गतिविधियां बिहार में तेज हो गई हैं. प्रदेश के सीमांचल क्षेत्र की बात की जाए तो यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां राजनीति और साहित्य के बीच संबंध जोड़े जाते रहे हैं. बिहार के अररिया जिला स्थित हिंदी के महान लेखक फणीश्वर नाथ रेणु के गांव औराही हिंगना पहुंचने के बाद साहित्य का 'पॉलिटिकल कनेक्शन' महसूस होता है. रेणु के परिजनों को मलाल है कि उनका राजनीति में इस्तेमाल तो खूब हुआ, लेकिन हक अदा नहीं मिला. सीमांचल में लोकसभा चुनाव को लेकर इन दिनों लोग अब खुलकर चर्चा करने लगे हैं.

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पूर्णिया, किशनगंज, अररिया सहित पूरे इलाके पर हर दल की नजर है. सीमांचल के सबसे पिछड़े जिले में शुमार अररिया जिला 'मैला आंचल' और 'परती परिकथा' जैसी कालजयी कृतियों के रचनाकार फणीश्वरनाथ रेणु के गृह जिले के रूप में जाना जाता है. रेणु का गांव औराही हिंगना इसी जिले में है. साहित्य से जुड़ा यह परिवार अब सियासी हो चुका है. मगर, रेणु परिवार की पीड़ा कुछ अलग ही है. रेणु के तीन बेटों में से सबसे छोटे दक्षिणेश्वर प्रसाद राय ने मीडिया को बताया कि रेणु परिवार का राजनीति में खूब इस्तेमाल होता रहा है. उन्होंने कहा, 'सभी दलों को रेणु से मोह है, लेकिन जब भी सक्रिय राजनीति और टिकट की बात चलती है तो इस परिवार को राजनीतिक दल भूल जाते हैं.'

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उल्लेखनीय है कि रेणु के बड़े बेटे पद्म पराग राय 'वेणु' 2010 से 2015 तक फारबिसगंज से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक रह चुके हैं. वर्तमान समय में जनता दल (युनाइटेड) में हैं. वर्ष 2015 में भाजपा ने वेणु को टिकट नहीं दिया, तो वे JD(U) में चले गए. एकबार फिर जब नीतीश कुमार लौटकर राजग में आ गए हैं तब रेणु का परिवार भी स्वत: ही खुद को राजग गठबंधन का हिस्सा मानता है. पूर्व विधायक पद्मपराग राय वेणु बताते हैं, 'उनसे मिलने बीजेपी से लेकर जद (यू) तक के नेता आते हैं. उन्होंने कहा, 'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 5 बार हमारे घर आ चुके हैं. उनका स्नेह मिलता है, वे हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं.'

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रेणु के छोटे बेटे दक्षिणेश्वर राय बेबाक अंदाज में कहते हैं कि आखिर रेणु परिवार का गुनाह क्या था कि चुनाव से पहले रेणु के बड़े बेटे का टिकट काट दिया जाता है? उन्होंने कहा, 'बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय जी गांव आकर पद्मपराग राय वेणु से मिलते हैं. भूपेंद्र यादव भी पहुंचते हैं, सब हमारी बात करते हैं.' वे कहते हैं कि राय ने तो तब स्पष्ट कहा था कि पिछली बार पार्टी स्तर पर कुछ कमियां रह गई थी.

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गौरतलब है कि फणीश्वरनाथ रेणु का संबंध कभी भी दक्षिणपंथी पार्टी से नहीं रहा. वे समाजवादी विचारधारा को मानने वाले थे. उन्होंने वर्ष 1972 में फारबिसगंज विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार से उन्हें हारना पड़ा था. सीमांचल की राजनीति को नजदीक से जानने वाले पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि रेणु परिवार का राजनीति से भावनात्मक जुड़ाव है, जो चुनाव में भावनात्मक मुद्दा बन जाता है. वे कहते हैं कि इस परिवार का राजनीति में इस्तेमाल तो किया ही गया है. वह यह भी कहते हैं कि सियासत में यह परिवार अपनी प्रबल दावेदारी पेश नहीं कर सकी है.

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उन्होंने हालांकि यह भी कहा, 'रेणु का नाम इस परिवार के लिए एक 'वटवृक्ष' के समान रहा है, जिसका छांव तो मिलता है परंतु उन्हें भी सियासत के लिए एक बड़ी पार्टी की तलाश रहती है.' वैसे, रेणु के परिवार के सदस्य कहते हैं कि साहित्य से राजनीति में जाना एक बड़ी बात है. राजनीति में कई जोड़तोड़ होते हैं, जिसे समझ पाना मुश्किल है. दक्षिणेश्वर राय कहते हैं कि नेता इस परिवार के सदस्यों से आकर साहित्य से राजनीति तक की बातें करते हैं और सोशल मीडिया में उसकी तस्वीर भी पोस्ट कर देते हैं, परंतु उसके बाद फिर भूल जाते हैं. वे कहते हैं, 'पिछली बार तो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाकायदा बाबूजी की तस्वीर लेकर गए थे कि प्रदेश कार्यालय में रेणुजी की पुण्यतिथि मनाई जानेवाली थी, लेकिन शायद नहीं मनाई गई, क्योंकि इस परिवार को फिर कोई सूचना ही नहीं दी गई.'