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अब केंद्र करेगा नक्सल हिंसा से विस्थापित आदिवासियों की घर वापसी का रास्ता तय

दक्षिण बस्तर में 2005-06 में नक्सली हिंसा और इसके विरोध में उठे सलवा जुड़ूम आंदोलन के दौरान पड़ोसी राज्यों में विस्थापित हुए आदिवासियों का मामला केंद्र सरकार तक पहुंच गया है.

Updated on: 17 May 2019, 10:52 AM

नई दिल्ली:

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दक्षिण बस्तर में 2005-06 में नक्सली हिंसा और इसके विरोध में उठे सलवा जुड़ूम आंदोलन के दौरान पड़ोसी राज्यों में विस्थापित हुए आदिवासियों का मामला केंद्र सरकार तक पहुंच गया है. विस्थापितों की छत्तीसगढ़ में वापसी की कोशिशों में लगी एक संस्था ने 623 विस्थापित आदिवासी परिवारों की सूची केंद्रीय आदिम जाति कल्याण (ट्राइबल) मंत्रालय को सौंपी है. इसके बाद केंद्र सरकार ने सूची में शामिल परिवारों की पहचान करने, उन्होंने किन परिस्थितियों में पलायन किया, क्या वे वापस बस्तर जाना चाहते हैं, आदि तथ्यों की जांच करने को कहा है. आदिवासियों (Tribals) को वनाधिकार कानून के तहत वापस उनके मूल गांवों में लाने की कोशिश की जाएगी.

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बस्तर (Bastar) के तीन जिलों दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर में सलवा जुड़ूम आंदोलन का प्रभाव रहा. सुकमा और बीजापुर जिलों की सीमा तेलंगाना से जुड़ी है. जुड़ूम के दौरान नक्सलियों ने बदला लेने के लिए आदिवासियों पर हमले किए. कोंटा इलाके के दरभागुड़ा में जुड़ूम समर्थकों से भरा ट्रक उड़ा दिया था. एर्राबोर समेत अन्य जुड़ूम कैंपों पर हमले किए.

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जुड़ूम समर्थक भी इस दौरान अंदरूनी गांवों में जाकर ग्रामीणों को परेशान करते थे. दो पाटों के बीच फंसे आदिवासियों ने तब बॉर्डर पार आंध्र और तेलंगाना (Telangana) के जंगलों में शरण ली. पड़ोसी राज्यों में बस्तर के कितने विस्थापित हैं, इसका सही आंकड़ा न छत्तीसगढ़ के पास है न तेलंगाना और आंध्र सरकार के पास. केंद्रीय ट्राइबल मंत्रालय के इस मामले में दखल से अब विस्थापितों की घर वापसी का रास्ता तय हो सकता है.

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