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प्रशासन की अनदेखी के बिना संभव नहीं था मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड

इसी साहू रोड पर पुलिस गस्ती दल साहू परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही और तीन बजे भोर में एक नौजवान सीतू साहू को घर के अंदर से निकलवाकर शराब पीने के आरोप में हवालात के हवाले कर दिया और दूसरी तरफ विचलित करने वाले बालिका कांड को अपराधी बेधड़क अंजाम देते रहे।

Updated on: 15 Aug 2018, 11:02 AM

नई दिल्ली:

मुजफ्फरपुर के साहू रोड स्थित बालिका गृह में जब विचलित करने वाला यह कांड फलफूल रहा था, तब पुलिस गश्ती दल क्या कर रही थी? कहां से उसे आदेश मिला कि वह बालिका गृह और उसमें रहने वाली 7 से 14 वर्ष की मासूम, अबोध बच्चियों पर नजर रखने के बजाय शराब पीने वाले को ढूंढने में लगी रही।

इसी साहू रोड पर पुलिस गस्ती दल साहू परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही और तीन बजे भोर में एक नौजवान सीतू साहू को घर के अंदर से निकलवाकर शराब पीने के आरोप में हवालात के हवाले कर दिया और दूसरी तरफ विचलित करने वाले बालिका कांड को अपराधी बेधड़क अंजाम देते रहे।

बेसहारा, मासूम, सेक्स से अज्ञान छोटी-छोटी उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म, उत्पीड़न और शारीरिक शोषण जैसी घटना वाला यह बालिका गृह किसी सुदूरवर्ती इलाके में नहीं था जो पुलिस प्रशासन की नजर से ओझल हो। यह बालिका गृह शहर के बीचों-बीच साहू रोड पर है जिसके चारों तरफ बाजार, दुकानें हैं, चहल-पहल वाला इलाका है।

देर रात में इसी बालिका गृह में नन्ही-नन्ही बच्चियों की चीख-पुकार पड़ोसियों तक पहुंचती थी। मध्यरात्रि में बच्चियों को बाहर के होटलों, अय्याशों के अड्डों तक पहुंचाया जाता था और 'पुलिस पेट्रोलिंग टीम' को कुछ न दिखाए पड़ता था और न कुछ सुनाई, तभी तो बच्चियों की चीख-पुकार सुनने वाले पड़ोसियों ने भी पुलिस को सूचना देने की जहमत नहीं उठाई।

दरअसल, समूचे बिहार में पुलिस को सरकार ने नशाबंदी कानून को सख्ती से लागू कराने में लगा रखा है। ऐसे में इस तरह के जघन्य अपराध की रोकथाम के लिए पुलिस को फुरसत कहां। शराब पीने वाले बवाल तो नहीं काटे, उन्हें पुलिस पकड़कर वसूली करती या फिर जेल भेज देती, बल्कि पकड़े-गए शराब को छककर पीकर पुलिस वाले ही बवाल काटने से नहीं चुके।

इस जघन्य और विचलित कर देने वाले कृत्य के मुखिया बृजेश ठाकुर और उनका सेवा संकल्प और विकास समिति (एनजीओ) के पदाधिकारियों की गिरफ्तारी और उन पर कार्रवाई हुई। लेकिन वैसे लोग आज भी चैन से सो रहे हैं, जिन्होंने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई, जिसके चलते ऐसे घृणित कृत्य पनपते रहे।

बहरहाल, मुजफ्फरपुर सिर्फ जिला मुख्यालय ही नहीं, यह कमिश्नरी मुख्यालय भी है और यहां पुलिस महकमे के आईजी तक पदस्थापित हैं तो वहीं कमिश्नर साहब भी बजाप्ता बिराजमान हैं। कलेक्टर और एसएसपी साहब तो हैं ही। इतना बड़ा प्रशासनिक अमला और उनके मातहतों के होते हुए भी ऐसे जघन्य कांड फलता-फूलता रहा। अब सवाल उठता है कि इतने बड़े प्रशासनिक व्यवस्था की आखिर विवशता क्या थी?