Asian Games 2018: ध्वजवाहक होने के चलते मुझपर पदक जीतने का ज्यादा दबाव था: नीरज चोपड़ा
इस साल राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में लगातार दो स्वर्ण पदक जीत चुके भारत के भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा ने कहा है कि जकार्ता में देश का ध्वजवाहक होने के चलते उन पर पदक जीतने का ज्यादा दबाव था.
नई दिल्ली:
इस साल राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में लगातार दो स्वर्ण पदक जीत चुके भारत के भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा ने कहा है कि जकार्ता में देश का ध्वजवाहक होने के चलते उन पर पदक जीतने का ज्यादा दबाव था.
नीरज ने जकार्ता एशियाई खेलों में अपने 88.06 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया था. एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद उन्होंने चेक गणराज्य में आईएएएफ कांटिनेंटल कप में हिस्सा लिया.
नीरज ने स्वदेश लौटने के बाद यहां स्पोर्ट्स एनेर्जी ड्रींक गेटोरेड कंपनी की ओर से आयोजित सम्मान समारोह के दौरान आईएएनएस से कहा, "सभी खिलाड़ियों का सपना होता है कि उसके देश का राष्ट्रगान विदेशों में गूंजे. मेरा भी सपना था और यह सपना तभी पूरा हुआ जब मैंने वहां अपने देश के लिए पदक जीता. इसके साथ-साथ मैं एशियाई खेलों में अपने देश का ध्वजवाहक था और इस कारण मेरे ऊपर पदक जीतने का ज्यादा दबाव था."
हरियाणा के पानीपत जिले के रहने वाले नीरज एशियाई खेलों में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट हैं. इससे पहले गुरतेज सिंह ने 1982 के एशियाई खेलों में भारत के लिए इस स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था.
और पढ़ें: ओडिशा: नक्सल प्रभावित इलाके का यह खिलाड़ी देश के लिए लाया गोल्ड मेडल
उन्होंने कहा, "जब हम मैदान में उतरते हैं जो हमें ऐसा लगता है कि हम एक दूसरी दुनिया में आ गए हैं. ट्रेनिंग तो सभी खिलाड़ी करते हैं. लेकिन हर किसी का अपना-अपना दिन होता है. इन सब बातों के अलावा देश के लिए पदक जीतने का एक जुनून भी होता है और यही जुनून आपको सफलता दिलाती है."
20 साल के युवा एथलीट एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों के अलावा एशियाई चैम्पियनशिप (2017), दक्षिण एशियाई खेलों (2016) और विश्व जूनियर चैम्पियनशिप (2016) में स्वर्ण पदक अपने नाम कर चुके हैं.
अब तक के सफर के बारे में पूछे जाने पर नीरज ने कहा, "मैंने 2011 में यह खेल खेलना शुरू किया और इसके साल बाद ही मैंने अंडर-16 का राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम कर दिया था. नेशनल रिकॉर्ड बनाने के बाद मुझे राष्ट्रीय कैंप के लिए चुना गया. जब मैं पिछले दिनों को याद करता हूं तो बस यही सोचता हूं कि आज मैं जो कुछ भी हूं उसके बारे में मैंने कभी सोचा नहीं था."
उन्होंने करियर के शुरुआती चुनौतियों को याद करते हुए कहा, "गांव में मैदान नहीं होने के कारण ट्रेनिंग के लिए मुझे 15-16 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. लेकिन इस दौरान मेरे परिवार वालों ने मेरी काफी मदद की. इन सब के अलावा मुझे खुद पर विश्वास था और मैं सच्चे मन से ट्रेनिंग करता था. आज उसी ईमानदारी की मेहनत का नतीजा है कि मैं यहां हूं."
नीरज चेक गणराज्य के ओस्ट्रावा में हुए कांटिनेंटल कप में पदक जीतने से चूक गए. टूर्नामेंट में वह पहले ही राउंड में बाहर हो गए और कुल छठे स्थान पर रहे.
और पढ़ेंः SAFF Football Cup: मालदीव को 2-0 से हराकर सेमीफाइनल में पहुंचा भारत
कांटिनेंटल कप के बारे में उन्होंने कहा, "नए नियम होने के कारण इसमें अच्छे मुकाबले देखने को मिले. यह दिमाग का खेल ज्यादा है लेकिन इससे मुझे कुछ नया सीखने को मिला है."
उन्होंने कहा, "पहले दो प्रयास में मैंने 80-79 मीटर का थ्रो किया और तीसरे प्रयास में 85 मीटर का किया. लेकिन तीसरा थ्रो फाउल हो गया था. इस वजह से मैं इसमें चूक गया. हालांकि मैं इन गलतियों से सीख रहा हूं और आगे इसमें सुधार करूंगा."
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Good Friday 2024: क्यों मनाया जाता है गुड फ्राइडे, जानें प्रभु यीशु के बलिदान की कहानी
-
Sheetala Ashtami 2024: कब है 2024 में शीतला अष्टमी? जानें पूजा कि विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व
-
Chaitra Navaratri 2024: भारत ही नहीं, दुनिया के इन देशों में भी है माता के शक्तिपीठ
-
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य के अनुसार देश का शासक कैसा होना चाहिए, जानें