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वीर सावरकर ने जब गांधी से कहा- मांस-मदिरा का करो सेवन, वर्ना अंग्रेजों से कैसे लड़ोगे

वीर सावरकर ने गांधीजी का हल्का-फुल्का मजाक उड़ाते हुए कहा था, 'कोई कैसे बिना गोश्त खाए अंग्रेज़ों की ताक़त (British Colony) को चुनौती दे सकता है?'

Updated on: 17 Oct 2019, 09:37 PM

highlights

  • अपनी पहली मुलाकात में सावरकर ने गांधीजी को दी थी मांस खाने की सलाह.
  • कभी-कभार शराब पीने वाले सावरकर को 'जिन्टान' व्हिस्की खासतौर पर पसंद थी.
  • अतिवादी विचारों के बावजूद निजी ज़िदगी में सावरकर अच्छी चीज़ों के शौकीन थे.

New Delhi:

एक मराठी ब्राह्मण (Marathi Brahmin) परिवार में 28 मई, 1883 को जन्मे विनायक दामोदर वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) का नाम हिंदुत्व (Hindutva) की स्पष्ट व्याख्या करने के लिए हमेशा याद रखा जाएगा. भले ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) विरोधी राजनीति के फेर में हिंदुत्व को संकीर्णता के साथ प्रस्तुत किया जा रहा हो, लेकिन उसका व्यापक संदर्भ और अर्थ अद्भुत है. राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित होकर किशोरावस्था में ही उन्होंने 'मित्र मेला' (Mitra Mela) नाम का संगठन खड़ा किया था, जिसका मकसद राष्ट्रीय और क्रांतिकारी विचारों का प्रचार प्रसार करना था. एक समय हिटलर से प्रभावित रहे सावरकर ने अंग्रेजों से अपनी आजादी के फेर में दशहरे पर विदेशी उत्पादों की होली तक जलाई थी.

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लंदन में अंग्रेजों की खिलाफ मंच
लंदन के ग्रे इन (Gray's Inn College) कॉलेज से कानून (Law) की पढ़ाई करने के दौरान वह इंडिया हाउस में रहा करते थे, जो उन दिनों छात्र राजनीति का गढ़ थी. वहीं उन्होंने 'फ्री इंडिया सोसाइटी' का गठन किया, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ युवाओं का मंच था. इसी इंडिया हाउस (India House) से एक किस्सा जुड़ा हुआ है, जो महात्मा गांधी से सावरकर की पहली मुलाकात का जरिया था. उन्हीं महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) से जिनकी हत्या के दाग वीर सावरकर के दामन पर भी पड़े थे. इस दाग ने सावरकर की जीवन भर की तपस्या पर पानी फेर दिया था. आजादी के लंबे अर्से बाद तक इस पर चर्चा करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा सका. बीजेपी के अभ्युदय के बाद सावरकर के योगदान की चर्चा शुरू हुई और बात उन्हें भारत रत्न (Bharat Ratna) देने तक पहुंची.

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सावरकर और गांधी की मुलाकात
पहले बात करते हैं अक्टूबर 1906 में लंदन (London) की एक शाम की, जिसका जिक्र नीलांजन मुखोपाध्याय ने अपनी बहुचर्चित किताब 'द आरएसएस-आइकॉन्स ऑफ़ द इंडियन राइट' में किया है. वह लिखते हैं उस समय गांधी महात्मा नहीं हुए थे. सिर्फ मोहनदास करमचंद गांधी थे. उस वक्त तक गांधीजी की कर्म भूमि भारत नहीं बनी थी और वह दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ समर्थन मांगने लंदन पहुंचे थे. ऐसे में उन्हें सावरकर और उनके काम के बारे में पता चला तो वह उनसे मिलने जा पहुंचे. किताब के मुताबिक यह प्रसंग सावरकर के अंग्रेज शासन के खिलाफ प्रतिबद्धता को ही जाहिर करता है.

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गांधीजी को दी थी मांस खाने की सलाह
इस प्रसंग के मुताबिक उस शाम इंडिया हाउस के अपने कमरे में खाने के लिए झींगे (Prawn) तल रहे थे. उन्होंने एक गुजराती वैश्य को अपने यहां खाने पर बुलाया था, जो दक्षिण अफ्रीका से अंग्रेजों के खिलाफ अपने आंदोलन के लिए सहयोग (Support) जुटाने लंदन पहुंचा था. गांधीजी कमरे पर पहुंचे और सावरकर से उनकी बातचीत शुरू हुई. गांधी ने सावरकर को सलाह देते हुए कहा कि अंग्रेजों के खिलाफ उनकी रणनीति जरूरत से ज्यादा आक्रामक है. इस पर सावरकर ने उनसे पहले खाना खाने का आग्रह किया. इस पर गांधीजी ने यह कहते हुए माफी मांग ली कि वे मांस-मदिरा (Non Vegetarian) का सेवन नहीं करते. इस पर सावरकर ने गांधीजी का हल्का-फुल्का मजाक उड़ाते हुए कहा था, 'कोई कैसे बिना गोश्त खाए अंग्रेज़ों की ताक़त (British Colony) को चुनौती दे सकता है?' उस रात गांधी सावरकर के कमरे से अपने सत्याग्रह आंदोलन के लिए उनका समर्थन लिए बगैर ख़ाली पेट बाहर निकले थे.

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आइसक्रीम और चॉकलेट समेत व्हिस्की के शौकीन
खैर, क्रांतिकारी या कहें कि अतिवादी विचारों के बावजूद निजी ज़िदगी में सावरकर अच्छी चीज़ों के शौकीन थे. उन्हें अलफ़ांसो आम (Alfanso Mango), आइसक्रीम (Icecream) और चॉकलेट्स (Chocolates) पसंद थी. कभी-कभार शराब पीने वाले सावरकर को 'जिन्टान' ब्रांड की व्हिस्की खासतौर पर पसंद थी. नाश्ते में सावरकर दो उबले अंडे खाते थे और दिन में कई कप चाय पीते थे. उन्हें मसालेदार खाना पसंद था, ख़ासतौर से मछली. सावरकर हमेशा एक जैसी पोशाक पहनते थे. गोल काली टोपी, धोती या पैंट, कोट, कोट की जेब में एक छोटा हथियार, इत्र की एक शीशी, एक हाथ में छाता और दूसरे हाथ में मुड़ा हुआ अख़बार!

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सिगरेट और सिगार नहीं आई रास
उनके जीवनीकार आशुतोष देशमुख के मुताबिक सावरकर 5 फ़ीट 2 इंच लंबे थे. अंडमान की जेल में रहने के बाद वह गंजे हो गए थे. उन्हें तंबाकू सूंघने की आदत पड़ गई थी. अंडमान की जेल कोठरी (Prison Cell) में वह तंबाकू की जगह जेल की दीवारों पर लिखा चूना खुरच कर सूंघा करते थे, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा. हालांकि इससे उनकी नाक खुल जाती थी. उन्होंने सिगरेट (Cigarette) और सिगार (Cigar) पीने की भी कोशिश की, लेकिन वह उन्हें रास नहीं आई.