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कुदरत के पास है कोरोना को हराने का इलाज, भारत ने ऐसे सीखा ये राज

कोरोना के मरीज और मौत के मामले में हिंदुस्तान अभी भी दुनिया के कई देशों से काफी बेहतर स्थिति में है और यही बात पूरी दुनिया को हैरान कर रही है. असल वजह है यहां की सामाजिक संस्कृति, सनातनी परंपराएं और प्रकृति के साथ जीने की प्रवृत्ति.

Updated on: 09 Apr 2020, 06:05 PM

नई दिल्ली:

जिस कोरोना वायरस (Coronavirus) से पूरी दुनिया त्राहिमाम् कर रही है, जो महामारी पूरी मानवता के लिए सबसे बड़ा संकट बन गई है, उससे लड़ने और रोकने के लिए अब पूरा विश्व भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है. ये महज एक संयोग नहीं है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत में इस महामारी पर अभी तक ब्रेक लगा हुआ है. एक तरफ जहां अमेरिका, स्पेन, इटली, जर्मनी और फ्रांस जैसे विकसित देशों में ये खतरनाक वायरस अब तक लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है, वहीं भारत जैसे विकासशील देश में ये आंकड़ा छह हजार पहुंचा है.

कोरोना को अब तक कहर बनने से रोकने में भारत का कुदरत से क्या कनेक्शन है, इससे जानने से पहले इन आंकड़ों पर गौर करें-

देश जनसंख्या कोरोना पॉजिटिव मौत 
अमेरिका  33 करोड़ 4.35 लाख 14,000
स्पेन  5 करोड़ 1.48 लाख  14,000
इटली   6 करोड़ 1.39 लाख  17,000
जर्मनी  8 करोड़  1.13 लाख  2,000
फ्रांस  7 करोड़  1.12 लाख  1,0000
भारत  135 करोड़  5734  166

सामाजिक संस्कृति, सनातनी परंपराएं और प्रकृति के साथ जीने की प्रवृत्ति में छुपा है राज

इन आंकड़ों से साफ है कि कोरोना के मरीज और मौत के मामले में हिंदुस्तान अभी भी दुनिया के कई देशों से काफी बेहतर स्थिति में है और यही बात पूरी दुनिया को हैरान कर रही है. सवाल है कि जब दुनिया के दर्जन भर से भी ज्यादा देशों में कोरोना वायरस थर्ड स्टेज में पहुंच चुका है तो भारत में अब तक इसकी रफ्तार इतनी सुस्त क्यों है. वो भी तब जबकि स्वास्थ्य सुविधाओं और संसाधनों के मामले में भारत इन देशों के मुकाबले काफी पीछे है. कुछ लोग इसे भारतीयों के मजबूत इम्यून सिस्टम से जोड़ कर देख रहे हैं, जो काफी हद तक सही भी है पर भारत में कोरोना के कम असर की असल वजह है यहां की सामाजिक संस्कृति, सनातनी परंपराएं और प्रकृति के साथ जीने की प्रवृत्ति.

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वसंत ऋतु में कई तरह की गंभीर बीमारियां होती है

भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना को भी बखूबी समझाती है. ब्रह्मांड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है. भारतीय व्रत और त्यौहार मनाने के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जरूर है. जिन्हें प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने व्यापक शोध के बाद प्रकृति के मुताबिक ऋतुओं के परिवर्तन और काल गणना के आधार पर बनाया था. यूं तो वसंत ऋतु को समस्त जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के लिए नवजीवन का प्रतीक माना जाता है. वसंत के मौसम मन-आंगन के लिए बहार लेकर आता है. नई ऊर्जा और उम्मीदों का संचार लाता है पर आयुर्वेद में वसंत ऋतु को कई गंभीर बीमारियों और रोगों का जनक माना गया है.

सर्दी, सूखी खांसी और अस्थमा का अटैक, बुखार, निमोनिया, फ्लू और खसरा का खतरा. त्वचा रोग, सीने और सिर में दर्द की शिकायत, गले का दर्द, साइनस, आमवात में सूजन बढ़ना बच्चों की बीमारी और कई संक्रामक रोगों का फैलाव इस मौसम में होता है.

जाहिर है कोरोना जैसे वायरस का कहर भी वसंत ऋतु में ही सामने आया और इसी तरह के खतरे को देखते हुए हमारे देश में सनातन काल से ही इस मौसम में आहार और विहार के संयम और संतुलन पर विशेष जोर दिया गया, साथ ही इस दौरान तन-मन की शुद्धता को भी बेहद जरूरी कहा गया.

9 दिन का उपवास आतंरिक शुद्धि करता है

सनातन सभ्यता में प्रकृति परिवर्तन की बेला को ही नववर्ष कहा गया है. इसी को ध्यान में रखते हुए नवरात्र के 9 दिन तय किए गए. दरअसल इस दौरान प्रकृति में कई ऐसे बड़े बदलाव होते हैं, जिनसे हमारे तन-मन और दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए सात्विक आहार-विहार और खास दिनचर्या बनाई गई. इसके तहत शरीर की बाहरी शुद्धि के लिए पवित्र वातावरण में पवित्र चीजों से संपर्क रखने के साथ आंतरिक शुद्धि के लिए शक्ति की आराधना और साधना की जाती है.

हवन से विषाणुओं का विनाश

सनातन काल से देश में यज्ञ की परंपरा रही है. कई सालों तक लोग इसे महज एक कर्मकांड मानते रहे लेकिन आधुनिक शोध और अध्ययन से पता चला है कि अग्निहोत्र यज्ञ मानव स्वास्थ्य के साथ ही वायु, धरती और जल में होने वाले विकारों को दूर कर सकारात्मक बदलाव लाता है. खासकर आम की लकड़ी से हवन करने पर फॉर्मिक एल्डिहाइड नाम की गैस निकलती है जो खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है, साथ ही वातावरण को भी शुद्ध करती है.

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राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने इसपर रिसर्च किया. उन्होंने कमरे में एक किलो आम की लकड़ी और आधा किलो हवन सामग्री जलाई, एक घंटे में कमरे में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर 94% तक कम हो गया कमरे से धुआं निकलने के 24 घंटे बाद भी सामान्य से 96% जीवाणु कम. मतलब ये कि लॉकडाउन के दौरान अगर घर के अंदर विधिवत तरीके से यज्ञ और हवन किया जाए तो न सिर्फ कोरोना वायरस से बचाव हो सकता है बल्कि पर्यावरण का प्रदूषण भी काफी हद तक कम होगा.

सोशल डिस्टैंसिंग का सनातन सच

कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद आज पूरी दुनिया सोशल डिस्टैंसिंग पर जोर दे रही है और अभिवादन के लिए एक दूसरे से हाथ मिलाने या गले मिलने से परहेज करने पर जोर दे रही है पर भारत की सनातन सभ्यता में सदियों से सोशल डिस्टैंसिंग का दस्तूर चला आ रहा है.

ऋग्वेद में नमस्कार को देवता कहा गया है, क्योंकि नमस्कार में देह ऊर्जा या विकार का संक्रमण दूसरे को नहीं होता. दरअसल हमारी सनातन व्यवस्था कहती है कि हम सभी प्रकृति के अंग हैं और प्रकृति अराजक नहीं है. पृथ्वी समेत सभी ग्रह प्रकृति के नियम के मुताबिक ही गतिशील हैं. अग्नि की लपटें ऊपर की ओर उठती हैं तो जल का प्रवाह नीचे की ओर होता है. भारतीय चिंतन में मनुष्य का शरीर अन्न से पोषण पाता है और अन्न या फल-सब्जियां सब प्रकृति की देन है.

शाकाहार से दूर होता हर विकार

चीन ने चमगादड़ को आहार बनाया तो कोरोना का कहर टूट पड़ा जिसके बाद पूरी दुनिया शाकाहार को अपनाने पर जोर दे रही है. खासकर कुत्ते, बिल्ली, चमगादड़ और सांप जैसे जीव तो किसी भी सूरत में इंसानों का आहार नहीं हो सकते. दुनिया इस सच को अब समझ रही है पर हमारे वेद-पुराणों और शास्त्रों समेत हर धार्मिक और प्राचीन ग्रंथ में शाकाहार को सर्वोत्त्तम माना गया है, इसके तहत मोटे अनाज में जौ, गेंहू, ज्वार, बाजरा, मक्का को शुद्ध माना गया. दालों में मूंग, मसूर, अरहर, चना को इस्तेमाल सेहत के लिए अच्छा माना गया है. सब्जी में मूली, घीया, गाजर, बथुआ, सरसों, मेथी, पालक, धनिया, अदरक बेहतर है स्वास्थ्य के लिए.

अब वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि नॉनवेज खाने से शरीर की अंदरुनी ताकत कम हो जाती है, ऐसे में कोरोना वायरस से संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है. जबकि हमारे खान-पान की संस्कृति में शुरू से ही शाकाहार पर जोर दिया गया.

हल्दी हितकारी, नीम गुणकारी

कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत होना जरूरी है और इसके लिए हल्दी, गिलोय और नीम जैसी कुदरती चीजों के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है. पर हमारे समाज में तो प्राचीन काल से ही ये परंपरा चली आ रही है. नीम के बारे में चरक संहिता में कहा गया है कि अगर चैत्र मास में नीम के पत्तों का लगातार एक महीने तक सेवन किया जाए तो ये पूरे साल सैकड़ों बीमारियों को दूर रखने में कारगर है.हल्दी को सबसे शुभ और शुद्ध माना गया.दूध में इस्तेमाल से प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होता है.

इम्यून सिस्टम जिसे प्रतरिक्ष प्रणाली कहते हैं. ये हमारे शरीर में बाहर से आने वाले कीटाणुओं का मुकाबला करता है. ये उन कीटाणुओं से लड़ने के लिए शरीर को अंदर से मजबूत बनाता है और उन कीटाणुओं को नष्ट करने का काम करता है.

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स्नान-ध्यान परंपरा से बीमारी का संक्रमण कम हो जाता है

इसके अलावा स्नान-ध्यान की परंपरा भी हमारे समाज में सदियों से चली आ रही है. जिसका अर्थ है सुबह सूर्योदय से पहले जगकर शौच वगैरह के बाद पहले स्नान. फिर ध्यान और उसके बाद भोजन ग्रहण करना इससे तन-मन स्वच्छ रहता है और किसी तरह की बीमारी के संक्रमण का खतरा भी काफी कम हो जाता है.

हालांकि आधुनिक जीवन शैली में खासकर शहरी समाज के लोग इस स्वस्थ परंपरा से दूर होते जा रहे हैं पर अभी भी गांवों में बसने वाला समाज इस सनातनी परंपरा के काफी नजदीक है. इसीलिए कोरोना के ज्यादातर मरीज शहरी इलाकों में ही सामने आए हैं. मतलब साफ है.. कि अगर हम अपने प्राचीन ज्ञान और ध्यान को अपनी दिनचर्या में शामिल करें तो ऐसी महामारी को पूरी तरह मात दे सकते .