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दिल्ली में सम-विषम फॉर्मूले की फिर दस्तक, बीते पांच सालों में पड़ा मामूली अंतर

इस बात पर भी चर्चा होती रही कि सम-विषम फॉर्मूले से दिल्ली की हवा पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. इसके लिए एक बड़ी वजह दिल्ली-हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सर्दी के मौसम में जलाई जाने वाली पराली भी है.

Updated on: 13 Sep 2019, 01:37 PM

highlights

वायु प्रदूषण के लिहाज से दिल्ली के अक्टूबर-नवंबर माह खासे अहम.
सम-विषम योजना से प्रदूषम कम होने से इतर भी हैं फायदे.
अन्य देशों में भी अपनाए जाते हैं तरह-तरह के उपाय.

नई दिल्ली:

सर्दियों के मौसम में दिल्ली और एनसीआर में बढ़ने वाले वायु प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरकार एक बार फिर से गाड़ियों को लेकर सम-विषम पॉलिसी लागू कर रही है. 4 से 15 नवंबर के बीच राजधानी में सम-विषम नंबरों के आधार पर वाहनों के सड़कों पर उतरने की व्यवस्था लागू होगी. इस सम-विषम योजना के तहत 4, 6, 8, 10 और 12 और 14 नवंबर को सम नंबर वाली गाड़ियां चलेंगी, जबकि 5, 7, 9, 11, 13 और 15 नंवबर को विषम नंबर वाली गाड़ियां दिल्ली में चलेंगी.

कम प्रदूषण के अलावा कई और हैं फायदें
यह योजना सर्दियों के मौसम में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने सत्ता संभालने के बाद ही शुरू की थी. हालांकि शुरुआती सालों में इस बात पर भी चर्चा होती रही कि सम-विषम फॉर्मूले से दिल्ली की हवा पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. इसके लिए एक बड़ी वजह दिल्ली-हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सर्दी के मौसम में जलाई जाने वाली पराली भी है. हालांकि बाद में सामने आया कि सम-विषम फॉर्मूले से प्रदूषण कम करने से इतर भी कई फायदे दिल्ली की यातायात व्यवस्था को मिले हैं.

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अक्टूबर से नवंबर खासा चुनौतीपूर्ण
गौरतलब है कि दिल्ली के लिए अक्टूबर के अंत से नवंबर का पूरा महीने प्रदूषण के लिहाज से खासा चुनौतीपूर्ण होता है. बदलते मौसम और हवाओं की दिशा से प्रदूषण तत्व समेत पराली के जलाने से दिल्ली की आब-ओ-हवा हद दर्जे की जहरीली हो जाती है. इससे बचने के लिए सम-विषम फॉर्मूले समेत मास्क काफी मददगार साबित होते हैं. इस दौरान दिल्ली की हवा के बीते पांच साल के आंकड़े बताते हैं कि सम-विषम फॉर्मूले से दिल्ली की हवा में घुले प्रदूषक तत्वों के स्तर में कुछ हद तक कमी आई है. (देखें चार्ट)

सम-विषम का विरोध भी है
दिल्ली सरकार ने योजना के शुरुआती दिनों से ही इसे कामयाब क़रार दे दिया था. यह अलग बात है कि इसके विरोध में दिल्ली हाईकोर्ट समेत सुप्रीम कोर्ट तक में याचिकाएं दायर की गई. इसके जवाब में दिल्ली सरकार ने आंकड़ों का हवाला देकर बताया कि कुल प्रदूषण में वाहनों का योगदान 20 प्रतिशत है. इस 20 प्रतिशत में डीज़ल वाली गाड़ियों का योगदान 60 से 90 प्रतिशत है. इसका मतलब यह निकला कि पेट्रोल वाली गाड़ियों से केवल 10 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है.

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पीएम में 25 फीसदी आई कमी
हालांकि 2015 से शुरू हुई सम-विषम योजना के निर्णायक परिणाम अब दिखाई दे रहे हैं. वाहनों से पैदा होने वाले पीएम 2.5 प्रदूषण में 25 प्रतिशत से अधिक कमी आई है. हालांकि धूल और गर्द से होने वाले प्रदूषण पीएम 10 में ख़ास कमी नहीं आई है. सम-विषम फ़ॉर्मूला केवल वाहनों से पैदा हुए विषैले प्रदूषण पर क़ाबू पाने के लिए लागू किया गया था.

सम-विषम योजना के अन्य फायदे

  • सम-विषम लागू होने से सड़क पर गाड़ियों की संख्या लगभग आधी रह जाती है. ऐसे में ईंधन की बचत होती है.
  • सड़कों पर गाड़ियों की संख्या आधी होते ही ट्रैफिक जाम से छुटकारा मिलता है.
  • अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में लगभग 16 लाख निजी गाड़ियां हैं, जिनमें से आधे पर ऑड-ईवन लागू है.
  • ऑड-ईवन लागू होने पर लोग या तो मेट्रो से या कार पूल के द्वारा दफ्तरों में जाते हैं.
  • इससे जहां सड़कों पर भीड़ कम होती है, वहीं लोगों की जेब पर भी ईंधन की बचत से असर पड़ता है.
  • सड़कों पर गाड़ियां कम होंगी तो कार्बन उत्सर्जन कम होगा, तो उससे प्रदूषण पर फर्क पड़ेगा. भले ही मामूली स्तर पर.
  • फॉर्मूले के तहत सीएनजी की ज्यादा गाड़ियां सड़कों पर होगी, जिससे प्रदूषण से राहत मिलेगी.

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दिल्ली का एक्यूआई स्तर बहुत ज्यादा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) का स्तर 100 तक सामान्य है, हालांकि दिल्ली का एक्यूआई आमतौर पर 300 से 400 के बीच रहता है. हालांकि सर्दियों में इसका स्तर 440 तक पहुंचजाना कोई बड़ी बात नहीं है. दिल्ली-एनसीआर, यूपी और आसपास के विभिन्न इलाकों में जहरीली धुंध छाने से गैस चैंबर जैसी स्थिति बन जाती है. भारत के अलावा कई अन्य देश भी प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं. इन देशों में प्रदूषण से निपटने के कई तरीके अपनाए गए हैं जिनसे उन्हें कुछ सफलता भी हासिल हुई है.

अन्य देशों में प्रदूषण कम करने के उपाय
चीन: पानी छिड़कने से लेकर एंटी स्मॉग पुलिस तक
साल 2014 में चीन के कई शहरों में धुंध छा गई थी और प्रदूषण का स्तर पॉल्यूशन कैपिटल कहलाने वाले बीजिंग में भी बहुत ऊँचा पाया गया था. इसके बाद चीन ने प्रदूषण से निपटने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास शुरू कर दिए. यहां मल्टी-फंक्शन डस्ट सेप्रेशन ट्रक का इस्तेमाल किया गया. इसके ऊपर एक विशाल वॉटर कैनन लगा होता है जिससे 200 फीट ऊपर से पानी का छिड़काव होता है. पानी का छिड़काव इसलिए किया गया ताकि धूल नीचे बैठ जाए. इसके अलावा, चीन ने वेंटिलेटर कॉरिडोर बनाने से लेकर एंटी स्मॉग पुलिस तक बनाने का फैसला किया. ये पुलिस जगह-जगह जाकर प्रदूषण फैलाने वाले कारणों जैसे सड़क पर कचरा फेंकने और जलाने पर नज़र रखती है. चीन में कोयले की खपत को भी कम करने के प्रयास किए गए हैं जो वहां प्रदूषण बढ़ने के मुख्य कारणों में से एक था.

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पेरिस: कारों पर नियंत्रण
फ्रांस की राजधानी पेरिस में हफ्ते के अंत में कार चलाने पर पाबंदी लगा दी गई थी. वहां भी ऑड-ईवन तरीका अपनाया गया. साथ ही ऐसे दिनों में जब प्रदूषण बढ़ने की संभावना हो तो सार्वजनिक वाहनों को मुफ्त किया गया और वाहन साझा करने के लिए कार्यक्रम चलाए गए. वाहनों को सिर्फ 20 किमी. प्रति घंटे की गति से चलाने का आदेश दिया गया. इस पर नज़र रखने के लिए 750 पुलिसकर्मी लगाए गए.

जर्मनी: सार्वजनिक परिवहन बेहतर करने पर ज़ोर
जर्मनी के फ्रीबर्ग में प्रदूषण कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने पर ज़ोर दिया गया. यहां ट्राम नेटवर्क को बढ़ाया गया. यह नेटवर्क इस तरह बढ़ाया गया कि यह बस रूट को भी जोड़ सके और ज्यादा आबादी उस रूट के तहत आ जाए. साथ ही यहां सस्ती और कुशल परिवहन व्यवस्था पर जोर दिया गया. बिना कार के रहने पर लोगों को सस्ते घर, मुफ्त सार्वजनिक वाहन और साइकिलों के लिए जगह दी गई.

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ब्राजील: 'मौत की घाटी'
ब्राजील एक शहर क्यूबाटाउ को 'मौत की घाटी' कहा जाता था. यहां प्रदूषण इतना ज़्यादा था कि अम्लीय बारिश से लोगों का बदन तक जल जाता था, लेकिन, उद्योगों पर चिमनी फिल्टर्स लगाने के लिए दबाव डालने के बाद शहर में 90 प्रतिशत तक प्रदूषण में कमी आ गई. यहां हवा की गुणवत्ता पर निगरानी के बेहतर तरीके अपनाए गए.

स्विटज़रलैंड: कम की गईं पार्किंग
स्विट्ज़रलैंड के शहर ज्यूरिख़ में प्रदूषण से निपटने के लिए पार्किंग की जगहें कम की गईं ताकि पार्किंग न मिलने के कारण लोग कम से कम कार का इस्तेमाल करें. इस कारण प्रदूषण और ट्रैफिक जाम से निजात पाने में कुछ हद तक सफलता मिली थी.