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Mangal Pandey: आजादी का बिगुल बजाने वाले 1857 क्रांति के जनक मंगल पांडेय को आज ही के दिन हुई थी फांसी, जानें उनका पूरा सफर

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को हुआ था. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था.

Updated on: 08 Apr 2020, 10:30 AM

नई दिल्ली:

mangal pandey martyr 8th apri : भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आज का दिन बेहद खास है. आज ही के दिन यानी 8 अप्रैल को भारत माता के वीर सपूत मंगल पांडे को फांसी की सजा मिली थी. मंगल पांडे देश की आजादी का बिगुल बजाया था. 1857 क्रांति का जनक मंगल पांडे को फांसी पर लटका दिया था. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को हुआ था. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था.

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22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए

ब्राह्मण होने के बावजूद भी मंगल पांडेय 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए. मंगल पांडेय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे. भारत के स्वाधीनता संग्राम में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनके सम्मान में भारत सरकार ने 1984 में एक डाक टिकट जारी किया था.

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1857 का विद्रोह

विद्रोह की शुरुआत एक बंदूक की वजह से हुई. बंदूक को भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था. कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी, जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी. सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है. 21 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पांडेय जो दुगवा रहीमपुर(फैजाबाद) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेंट बाग पर हमला कर उसे घायल कर दिया था.

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8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी

जनरल ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया. सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेंट ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया. मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिए कहा, लेकिन किसी के ना मानने पर उन्होंने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया. परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुए. 6 अप्रैल 1557 को मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी.