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लैंडर 'विक्रम' (Lander Vikram) का पराक्रम नहीं हुआ है कम; खड़ा होगा अपने पैरों पर, जानें कैसे

अब नए सिरे से उम्मीद जगी है कि लैंडर विक्रम न सिर्फ अपने पैरों पर वापस खड़ा हो सकता है, बल्कि वह सारे काम अंजाम दे सकता है जिसके लिए उसे बनाया गया है.

Updated on: 09 Sep 2019, 01:28 PM

highlights

  • इसरो कमांड देकर चंद्रमा की सतह पर पीठ के बल गिरे विक्रम को खड़ा करेगा.
  • अगले 12 दिन हैं अहम. इन्हीं में बेहोशी तोड़ होश में आना होगा विक्रम को.
  • लैंडर विक्रम तगड़ा झटका सहने में भी है सक्षम. यही बढ़ा रही उम्मीदें.

नई दिल्ली:

Chandrayaan 2: शुक्रवार-शनिवार की दरम्यिानी रात जब ऐन मौके लैंडर विक्रम (Lander Vikram) का इसरो के कंट्रोल रूम से संपर्क टूटा, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), इसरो (ISRO) प्रमुख पी सिवन के साथ-साथ पूरा देश सकते में आ गया. हालांकि ना तो पीएम मोदी (PM Modi) समेत इसरो के वैज्ञानिकों और ना ही देशवासियों ने निराशा का प्रदर्शन किया. अब जब सोमवार को ऑर्बिटर ने लैंडर विक्रम की थर्मल इमेज जारी की, तो उम्मीद और आशा की नई लहर दौड़ गई. अब नए सिरे से उम्मीद जगी है कि लैंडर विक्रम न सिर्फ अपने पैरों पर वापस खड़ा हो सकता है, बल्कि वह सारे काम अंजाम दे सकता है जिसके लिए उसे बनाया गया है.

विक्रम तेज गति से टकराने का झटका सहने में सक्षम
इसरो के वैज्ञानिकों की मानें तो लैंडर विक्रम से जब संपर्क टूटा उस वक्त वह 50 से 60 मीटर प्रति सेकंड यानी 180 से 200 किमी की रफ्तार से चांद की सतह की तरफ बढ़ रहा था. उसकी गति कम हो रही थी, लेकिन उस अनुपात में नहीं, जैसी उससे अपेक्षा थी. विक्रम को उस वक्त 2 मीटर प्रति संकेड यानी 7.2 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से सतह पर लैंड करना था. संभवतः अत्यधिक तेज रफ्तार होने से ही लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो सकी. वैसे इसरो के वैज्ञानिकों ने लैंडर विक्रम को आपातकालीन स्थितियों के लिहाज से भी डिजाइन किया था. यानी वह 5 मीटर प्रति सेकंड (18 किमी प्रति घंटे) की रफ्तार से उतरने पर लगने वाले झटके को सहने में भी सक्षम है.

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सेंसर कमांड देकर विक्रम को खड़ा करेगा
अब अगर इसरो के वैज्ञानिक लैंडर विक्रम के दोबारा अपने पैरों पर खड़े होने की आशा संजोए हैं, तो वह बेबुनियाद नहीं है. इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि लैंडर विक्रम पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ है. सॉफ्ट लैंडिंग नहीं होने की वजह से वह 180 डिग्री के कोण पर चांद की सतह से टकराया है. यानी उसके दो पैर ऊपर उठे हुए हैं. अगर ऑर्बिटर दोबारा विक्रम से संपर्क स्थापित करने में सफल रहता है, तो विक्रम के अपने पैरों पर खड़ा होने की उम्मीदें फिर से जीवित हो उठेंगी. इसमें मददगार बनेंगे वह सेंसर, जो लैंडर विक्रम को कमांड देकर उसे अपने पैरों पर खड़ा होने को कह सकते हैं.

हद से हद 500 मीटर भटका है विक्रम
यहां यह कतई नहीं भूलना नहीं चाहिए कि लैंडर विक्रम का संपर्क जिस वक्त टूटा, उस वक्त वह चांद की सतह से महज 2.1 किमी ही दूर था. दूसरे शब्दों में कहें तो इसरो ने चांद पर जिस स्थान पर उसकी लैंडिंग तय की थी, वह उससे कुछ ही दूर पर है. एक अनुमान के मुताबिक लैंडर विक्रम सॉफ्ट लैंडिंग के लिए इसरो के तय स्थान से 500 मीटर के दायरे में ही गिरा है. उसकी थर्मल इमेज मिलने के बाद अब एक बड़ी चुनौती विक्रम से संपर्क बहाली की ही है.

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चंद्रमा पर रात होने से पहले करना है संपर्क
इसरो की मानें तो अगले दो हफ्तों से कम समय में ही लैंडर विक्रम से ऑर्बिटर को संपर्क स्थापित करना है. इसके बाद चंद्रमा पर रात हो जाएगी, जो पृथ्वी के 14 दिन-रात की अवधि के बराबर होती है. चंद्रमा पर रात होने के बाद उसका तापमान काफी गिर जाता है. ऐसे में वैज्ञानिक उपकरणों के सही काम करने पर संशय है. फिर भी वैज्ञानिकों को विश्वास है कि लैंडर विक्रम के कुछ उपकरण अभी भी काम कर रहे होंगे. इनकी बदौलत लैंडर विक्रम का ऑर्बिटर के जरिए इसरो के कंट्रोल रूम से संपर्क फिर से जुड़ जाएगा.

पीठ के बल चांद की सतह पर गिरा विक्रम
सॉफ्ट लैंडिंग के बजाय चंद्रमा की सतह से टकराने के बाद विक्रम अपने दो पैरों यानी बीठ के बल ही गिरा हुआ है. इसके चारों तरफ अलग-अलग कामों को अंजाम देने के लिए उपकरण भेजे गए हैं, जो सॉफ्ट लैंडिंग के बाद ही अपना काम शुरू करने वाले थे. चूंकि विक्रम अपने चारों पैरों पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर सका है, तो उसके उपकरणों को सिग्नल भेजना और वापस उन्हें संकेत देना ही चुनौतीपूर्ण है. इनमें से एक उपकरण है नासा का दिया हुआ 'लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर आरे', जो शीशों की मदद से चंद्रमा की सतह का अध्ययन करने वाला था.

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एंटीना पहुंचाएगा विक्रम तक कमांड
इन उपकरणों में से कुछ ऐसी ही आपात स्थिति के लिए भी लगाए गए हैं. यानी विक्रम लैंडर में वह टेक्नोलॉजी है जिसकी बदौलत वह गिरने के बाद भी खुद को खड़ा कर सकता है, लेकिन उसके लिए जरूरी है कि उससे संपर्क हो जाए और उसे कमांड रिसीव हो सके. इसरो के वैज्ञानिकों के मुताबिक विक्रम लैंडर में ऑनबोर्ड कम्प्यूटर है. यह खुद ही कई काम कर सकता है. विक्रम लैंडर के गिरने से वह एंटीना दब गया है, जिसके जरिए संचार रूम को कमांड भेजा जा सकता था. अभी इसरो वैज्ञानिक यह प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह उस एंटीना के जरिए विक्रम लैंडर को वापस अपने पैरों पर खड़ा होने का कमांड दिया जा सके.

विक्रम पहले की तरह कर सकेगा काम
इसरो के सूत्रों ने बताया कि विक्रम लैंडर के नीचे पांच थ्रस्टर्स लगे हैं, जिसके जरिए इसे चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी. इसके अलावा, विक्रम लैंडर के चारों तरफ भी थ्रस्टर्स हैं, जो अंतरिक्ष में यात्रा के दौरान उसकी दिशा तय करने के लिए ऑन किए जाते थे. ये थ्रस्टर्स अब भी सुरक्षित हैं. लैंडर के जिस हिस्से में कम्युनिकेशन एंटीना दबा है, उसी हिस्से में भी थ्रस्टर्स हैं. अगर पृथ्वी पर स्थित ग्राउंड स्टेशन से भेजे गए कमांड को सीधे या ऑर्बिटर के जरिए दबे हुए एंटीना ने रिसीव कर लिया, तो उसके थ्रस्टर्स को ऑन किया जा सकता है. थ्रस्टर्स ऑन होने पर लैंडर विक्रम एक तरफ से वापस उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इस मिशन से जुड़े वे सारे प्रयोग हो पाएंगे जो पहले से इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 को लेकर तय किए थे.

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ऑर्बिटर चांद की कक्षा में और आएगा नीचे
लैंडर विक्रम को उसके पैरों पर खड़ा करने के साथ ही इसरो के वैज्ञानिक ऑर्बिटर को अगले कुछ महीनों में चंद्रमा की कक्षा में और ज्‍यादा नीचे ले जाने का प्रयास करेंगे. एक साल बाद जब 100 किमी ऊपर से सभी तरह के डाटा को संग्रह करने का काम पूरा हो जाएगा तब ऑर्बिटर को 50 किमी की ऊंचाई तक लाने का प्रयास किया जाएगा. इससे चंद्रमा की सतह की और ज्‍यादा साफ तस्‍वीरें खींची जा सकती हैं. हालांकि अभी इसका फैसला नहीं हुआ है. ऐसा पहली बार है जब हमारे पास पूरे चंद्रमा का नक्‍शा बनाने का अवसर है. अभी तक केवल नासा ने ही चंद्रमा की मैपिंग की है.

95 फीसदी सफल है चंद्रयान 2 अभियान
संभवतः इसरो के वैज्ञानिक इन्हीं कारणों से चंद्रयान 2 अभियान को 95 फीसदी सफल बता रहे हैं. सबसे बड़ी वजह तो यही है कि चंद्रयान 2 का ऑर्बिटर 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित अपनी कक्षा में चांद की परिक्रमा कर रहा है. वह साढ़े 7 साल तक सक्रिय रहेगा और धरती तक चांद की हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें और अहम डाटा भेजता रहेगा. उस पर कैमरे समेत 8 उपकरण लगे हुए हैं जो अत्याधुनिक है.

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विक्रम के लिए 12 दिन खासे अहम
ऑर्बिटर का कैमरा तो अब तक के लूनर मिशन में इस्तेमाल हुए कैमरों में सबसे ज्यादा रिजॉल्यूशन वाला है. ऑर्बिटर अगले 2 दिनों में उसी लोकेशन से गुजरेगा, जहां लैंडर विक्रम से संपर्क टूटा था. अब तो लैंडर की लोकेशन की जानकारी भी मिल गई है. ऐसे में ऑर्बिटर जब उस लोकेशन से गुजरेगा तो लैंडर की हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें ले सकता है. ऑर्बिटर द्वारा भेजे गए डाटा के विश्लेषण से किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है. इस लिहाज से अगले 12 दिनों में विक्रम लैंडर की स्थिति से लेकर उससे जुड़े सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे.