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जीते जी अगर नहीं छपती अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) की मौत की खबर तो...

आज जिस रसायनशात्री अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) के नाम पर सबसे प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्‍कार (Nobel Prize) दिया जाता है, कभी उन्‍हें मौत का सौदागर कहा जाता था.

नई दिल्‍ली:

आज जिस रसायनशात्री अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) के नाम पर सबसे प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्‍कार (Nobel Prize) दिया जाता है, कभी उन्‍हें मौत का सौदागर कहा जाता था. दुनिया के चुनिंदा अमीरों में से एक अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) के जीते जी अगर उनकी मौत की खबर नहीं छपती तो शायद आज नोबेल पुरस्‍कार (Nobel Prize) का अस्‍तित्‍व भी नहीं होता. 13 अप्रैल, 1888 को अखबार में वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) की मौत की खबर सुर्खियां बनी. हालांकि वो जिवित थे. उनके हाथ में वह अखबार था और वो अपनी ही मौत की खबर पढ़ रहे थे. खबर का शीर्षक था, ‘मौत के सौदागर की मौत.' खबर का मजमून कुछ ऐसा था कि मानो पूरी दुनिया उनके मौत के इंतजार में बैठी थी. अल्फ्रेड नोबेल का जन्म स्वीडन में 21 अक्टूबर 1833 को हुआ था. 10 दिसंबर 1896 को इटली के सौन रेमो में अल्फ्रेड नोबेल का देहांत हो गया.  

दरअसल मौत अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) की नहीं, बल्कि उनके बड़े भाई लडविग नोबेल की हुई थी. अपनी मौत की खबर पढ़कर अल्फ्रेड को हिल गए. वो सोचने लगे कि क्या दुनिया उसके बारे में इतना खराब सोचती है? एमिल नोबेल प्रयोगों में बड़े भाई अल्फ्रेड की मदद करते थे. अल्‍फ्रेडनोबेल एक विस्फोटक बनाने में लगे थे. वह एक ऐसे तरल विस्फोटक को मुकम्मल रूप दे रहे थे, जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना ज्यादा आसान हो.

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3 सितंबर, 1864 को उनकी प्रयोगशाला में विस्‍फोट हो गया. इसमें उनके छोटे भाई की मौत हो गई. हादसे के वक्‍त अल्फ्रेड वहां मौजूद नहीं थे. उस वक्‍त भी अखबारों ने इस खोज के खिलाफ बहुत छापा पर अल्फ्रेड पर तो जुनून सवार था. वह हादसे भुलाकर आगे बढ़े और लगभग तीन साल की मेहनत से एक मुकम्मल विस्फोटक डायनामाइट ईजाद करने में कामयाब हो गए.

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अल्फ्रेड को विस्फोटक और हथियार बनाने का ऐसा चस्का था . डायनामाइट का प्रयोग खदानों और पत्थर तोड़ने में विस्फोटक के रूप में काम आने लगा. इसके अलावा उसका उपयोग युद्ध में भी होने लगा. उनके इस डायनामाइट ने उन्‍हें और अमीर बना दिया, लेकिन अपनी मौत की खबर पढ़कर पहली बार उन्‍हें लगा कि दुनिया उससे नफरत करती है. जब भी दुनिया में उसके बनाए विस्फोटकों से कोई मारा जाता है, लोग उसे कोसते हैं.

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उस दिन से अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) अपनी छवि सुधार की कोशिशों में लग गए. आखिरकार अपनी मौत से एक साल पहले उन्होंने देशों की सीमाओं से परे दुनिया के योग्यतम लोगों को नोबेल सम्मान देने का फैसला किया. अल्फ्रेड नोबेल का जन्म स्वीडन में 21 अक्टूबर 1833 को हुआ था. 10 दिसंबर 1896 को इटली के सौन रेमो में अल्फ्रेड नोबेल का देहांत हो गया.  नोबेल पुरस्‍कार (Nobel Prize) की स्थापना अल्फ्रेड नोबेल (Alfred Nobel) के वसीयतनामे के अनुसार 1895 में हुई. अल्फ्रेड ने अपनी वसीयत में लिखा कि उनका सारा पैसा नोबेल फाउंडेशन (Nobel Foundation) के नाम कर दिया जाए और इन पैसों से नोबेल पुरस्‍कार (Nobel Prize) दिया जाए.