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कांग्रेस का महाझूठ इन 5 बातों से होता है बेनकाब, नाथूराम गोडसे का नहीं रहा RSS से संबंध

150th Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का आरएसएस से कहीं कोई संबंध नहीं रहा. इस बात की पुष्टि गांधी की हत्या के समय गृह मंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल से लेकर बापू की हत्या पर बने आयोग ने भी अपनी-अपनी रिपोर्ट में की है.

Updated on: 04 Oct 2019, 09:36 AM

highlights

  • 1948 में ही सरदार पटेल ने पं. नेहरू को पत्र लिख गांधी हत्या के जुड़ाव से मुक्त किया था आरएसएस को.
  • 1966 में बने जस्टिस जेएल कपूर आयोग ने भी गांधी हत्या से आरएसएस का नाम नहीं जुड़ने की बात की.
  • तबसे लेकर आज तक कांग्रेसी नेता गोडसे का नाम लेकर आरएसएस के खिलाफ कर रहे हैं दुष्प्रचार.

नई दिल्ली:

कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से लेकर फिलवक्त के तमाम दिग्गज कांग्रेसी नेता समय-समय पर बीजेपी (BJP) को नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ाव के नाम पर घेरते आए हैं. बुधवार को 150वीं गांधी जयंती (150th Gandhi Jayanti) पर भी कुछ बयान इस तरह के आए कि बीजेपी को स्पष्ट करना चाहिए कि वह गांधी को मानती है या आरएसएस को. वजह बना फिर वही पुराना 'दुष्प्रचार' (Propaganda) कि गोडसे संघ का कार्यकर्ता था. यह अलग बात है कि इतिहास के पन्ने खंगालने पर बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि 150th Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का आरएसएस से कहीं कोई संबंध नहीं रहा. इस बात की पुष्टि गांधी की हत्या के समय गृह मंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल से लेकर बापू की हत्या पर बने आयोग ने भी अपनी-अपनी रिपोर्ट में की है.

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डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी से कांग्रेस की चिढ़ ने डाली झूठ की बुनियाद
अगर बात विभाजन (Partition) के कालखंड से शुरू की जाए, तो महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की मुस्लिम परस्ती से एक बड़ा वर्ग खुद को ठगा महसूस कर रहा था. उस वक्त हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) इसको लेकर कुछ अधिक मुखर थी. यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि तब भारतीय जन संघ भी पाकिस्तान से आने वाले हिंदू शरणार्थियों (Hindu Refugee) के लिए राहत कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा था. कालांतर में जन संघ ही भारतीय जनता पार्टी के रूप में सामने आया. हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि आरएसएस का जनसंघ (Bhartiya Jan sangh) को खुला समर्थन प्राप्त था. उस वक्त जनसंघ के एक बड़े नेता के तौर पर प्रतिष्ठित हो चुके थे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जो अक्सर हिंदू-मुसलमान भेदभाव पर अपने विचार सार्वजनिक करते रहते थे. महज दो सांसदों के साथ पहली लोकसभा में पहुंचे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Dr Shyama Prasad Mukherjee) कांग्रेस खासकर नेहरूवादी नेताओं की आंखों में खटकते रहते थे. उस वक्त भी कांग्रेस जनसंघ और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी. जनसंघ और डॉ मुखर्जी की छवि ध्वस्त करने के लिए कांग्रेस ने सभी हथकंडे अपनाए. हालांकि कांग्रेस के हाथ सबसे बड़ा हथियार लगा महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे, जिसे उन्होंने आरएसएस का कार्यकर्ता बताकर झूठ का एक ऐसा किला खड़ा किया, जो आज तक कायम है.

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सरदार पटेल ने खुद पं. नेहरू को पत्र लिख आरएसएस को बेदाग बताया
गोडसे और आरएसएस का जुड़ाव कितना सच है, इसके लिए सबसे पहले हम तत्कालीन गृह मंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) के बयानों और पत्रों को ही आधार बनाते हैं. इनमें से एक पत्र है 27 फरवरी 1948 का लिखा हुआ, जिसे सरदार पटेल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) को लिखा था. इस पत्र में सरदार पटेल ने साफतौर पर लिखा था कि जहां तक महात्मा गांधी की हत्या की जांच का सवाल है, एक भी ऐसा सूत्र या बयान सामने नहीं आया है, जो इस पूरे मामले (गांधी हत्या प्रकरण) में आरएसएस की संलिप्तता साबित करता हो. सिर्फ सरदार पटेल ही नहीं, तत्कालीन एडवोकेट जनरल सीके दफ्तरी (CK Daphtary) की राय भी कुछ ऐसी ही थी. सीके दफ्तरी, जिनकी देखरेख में पूरा अभियोजन चला, ने भी गांधी हत्या के प्रकरण में या कहें विवाद में आरएसएस को शामिल नहीं किया. सिद्ध करना तो दूर की बात है, अभियोजन पक्ष ने महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ी चार्जशीट में आरएसएस के नाम का संकेत भी कहीं दूर-दूर तक नहीं किया था. और तो और, इस मामले में आए अदालती निर्णय में भी आरएसएस का कहीं कोई नामलेवा नहीं था. यह अलग बात कि गोडसे से संबंधों का 'भार' आज भी आरएसएस ढो रही है.

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गांधी हत्या की जांच पर बने जेएल कपूर आयोग ने भी आरएसएस का नहीं किया जिक्र
यह तो थी महात्मा गांधी की हत्या के तत्काल बाद की बात, अब बात करते हैं उसके कहीं बाद केंद्र सरकार द्वारा महात्मा गांधी हत्या के सिलसिले में गठित किए गए आयोग (Commission) की रिपोर्ट पर. 1966 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जेएल कपूर (JL Kapur) के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया था. उस आयोग का मकसद उन कारणों या कहें कि षड्यंत्र की नए सिरे से जांच करना था, जिसकी परिणति महात्मा गांधी की हत्या के रूप में हुई. अलग-अलग जगहों पर आयोग ने सुनवाई कर 101 गवाहों और 407 दस्तावेजों का गहराई से अध्ययन किया. जेएल कपूर आयोग ने 1969 में अपनी रिपोर्ट जारी की. उसमें भी कहीं पर भी आरएसएस को गांधी हत्या के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था. इसके साथ ही आयोग ने आरएसएस को गांधी हत्या से किसी भी तरह के जुड़ाव से आरोपमुक्त करार दिया था.

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गवाह आरएन बनर्जी ने भी दी आरएसएस को क्लीनचिट
जस्टिस जेएल कपूर आयोग के समक्ष पेश हुए एक महत्वपूर्ण गवाह थे आरएन बनर्जी (RN Banerjee) (गवाह नंबर 19), जो गांधीजी की हत्या के वक्त केंद्र सरकार में गृह सचिव (Home Secretary) हुआ करते थे. उन्होंने भी सबूतों के साथ कहा था, 'यह कहीं भी सिद्ध नहीं होता है कि आरोपियों (गोडसे-आप्टे और अन्य) आरएसएस के कार्यकर्ता या सदस्य थे.' गवाह ने इसके आगे अपने बयान में कहा था, यदि आरएसएस पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया होता, तो भी गांधी हत्या के षड्यंत्रकारियों पर अपने षड्यंत्र को अंजाम देने में कोई दिक्कत पेश नहीं आने वाली थी. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि कहीं भी सिद्ध नहीं होता है कि आरोपी आरएसएस के सदस्य थे या बतौर संगठन आरएसएस (RSS) का गांधी की हत्या से दूर-दूर तक कोई लेना-देना था. जस्टिस जेएल कपूर आयोग ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट कहा था कि आरएसएस किसी तरह की हिंसक गतिविधियों में लिप्त नहीं रही है.

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कांग्रेस ने तब से लिया आज तक झूठ का ही सहारा
इस आधार पर कह सकते हैं कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने गांधी हत्या (Gandhi Assassination) के बाद जिस तरह के आरोप आरएसएस पर लगाए थे, वह एक खास किस्म के प्रायोजन (Propaganda) को सिद्ध करते थे. खासकर आरएसएस को बदनाम करने के लिए. गोडसे को आरएसएस के बताने का सिलसिला जो तब से शुरू हुआ वह आज तक बदस्तूर जारी है. उस वक्त अगर तत्कालीन कांग्रेसी नेता शामिल थे, तो आज यह दुष्प्रचार फैलाने का जिम्मा दिग्विजय सिंह से लेकर सोनिया गांधी तक ने संभाला हुआ है. हालांकि एक सच्चाई और है, जो कांग्रेसी नेता कभी जुबान पर नहीं लाते हैं और वह यह है कि गांधीजी का हत्यारा नाथूराम गोडसे इंडियन मुस्लिम लीग (Indian Muslim League) का सदस्य जरूर हुआ करता था. हालांकि लीग के कट्टर विचारों और हिंदुओं के खिलाफ विषवमन करती मुस्लिमपरस्ती को देख गोडसे ने लीग से संबंध तोड़ लिया था. इसके बाद गोडसे आरएसएस के कुछ कार्यक्रमों में भी शामिल हुआ, लेकिन अंततः उसने अपना अलग रास्ता चुना और गांधी की हत्या कर दी.