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भारत के लिए बड़ी खबर, लैंडर विक्रम का पता चला, आर्बिटर ने खींची तस्‍वीर, अभी नहीं हो पाया संपर्क

मिशन मून को लेकर भारत की उम्‍मीदें अभी बरकरार हैं. 'चंद्रयान 2' के लैंडर 'विक्रम' के ऐन मौके इसरो से संपर्क टूट जाने के बाद भी इसरो के वैज्ञानिकों ने उम्‍मीद नहीं छोड़ी है.

नई दिल्‍ली:

मिशन मून को लेकर भारत की उम्‍मीदें अभी बरकरार हैं. 'चंद्रयान 2' के लैंडर 'विक्रम' के ऐन मौके इसरो से संपर्क टूट जाने के बाद भी इसरो के वैज्ञानिकों ने उम्‍मीद नहीं छोड़ी है. मंजिल से केवल 2.1 किलोमीटर पहले भटक जाने वाले लैंडर विक्रम को वैज्ञानिक जहां ढूंढने में जुटे हैं वहीं इसरो चीफ ने एक बड़ा दावा किया है, जिसको लेकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा. लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर 180 डिग्री तक गिर गया है, इसका मतलब है कि सतह पर केवल दो पैर छू रहे हैं, ऑर्बिटर ने लैंडर विक्रम की तस्वीरें क्लिक की हैं, जिनका विश्लेषण किया जा रहा है लेकिन कोई संचार स्थापित नहीं किया गया है.

इसरो चीफ के सिवन ने न्‍यूज एजेंसी (ANI) काे बताया कि  VikramLander का पता चल गया है, वह चांद की सतह पर है और आर्बिटर ने लैंडर की एक थर्मल तस्‍वीर भेजी है. लेकिन अभी तक कोई कम्‍यूनिकेशन नहीं हो सका है. हम संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. जल्द ही इसका संचार किया जाएगा. 

के सिवन ने न्‍यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए बताया कि अभी कुछ भी कहना जल्‍दबाजी होगी. हम विक्रम से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. 

क्या होती है 'थर्मल' इमेज 

के सिवन ने लैंडर की 'थर्मल' इमेज लेने की बात कही है. ऑर्बिटर में जो कैमरे लगे हुए हैं वो 'थर्मल' तस्वीरें लेता है. हर चीज, जो शून्य डिग्री तापमान में नहीं होती हैं, उससे रेडिएशन होता रहता है. ये रेडिएशन तब तक आंख से नहीं दिखाई देते हैं, जब तक वो चीज़ इतनी गर्म न हो जाए, जिससे आंखों से दिखाई देने वाली रोशनी न निकलने लगे.

जैसे लोहा गर्म करते हैं तो एक सीमा के बाद इससे रोशनी निकलने लगती है, लेकिन इससे साधारण तापमान में रेडिएशन होता रहता है. इस थर्मल रेडिएशन को ऑर्बिटर में लगे हुए कैमरे कैप्चर करते हैं और एक तस्वीर बनाते हैं और इसी तस्वीर को थर्मल इमेज कहते हैं. ये तस्वीर थोड़ी धुंधली होती हैं, जिनकी व्याख्या करनी पड़ती है. ये वैसी तस्वीर नहीं होती हैं, जैसी हम आम कैमरे से लेते हैं.

बता दें संपर्क टूटने के वक्त लैंडर चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर दूर था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 3 दिन बाद वैज्ञानिक लैंडर 'विक्रम' को ढूंढ निकालेंगे. हालांकि इससे पहले ही लैंडर का पता चल गया. इसकी वजह यह है कि जहां से लैंडर 'विक्रम' का संपर्क टूटा था, उसी जगह से ऑर्बिटर को पहुंचने में तीन दिन का समय लगेगा. वैज्ञानिकों के मुताबिक टीम को लैंडिंग साइट की पूरी जानकारी है. आखिरी समय में लैंडर 'विक्रम' रास्ते से भटक गया था. 

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ये लागाए जा रहे थे कयास

गौरतलब है कि ऑर्बिटर में सिंथेटिक अपर्चर रेडार (एसएआर), आईआर स्पेक्ट्रोमीटर और कैमरे की मदद से 10 x 10 किलोमीटर के इलाके को छाना जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक लैंडर 'विक्रम' का पता लगाने के लिए उन्हें उस इलाके की हाईरिजॉल्यूशन तस्वीरें लेनी होंगी. इनकी मदद से इसरो के वैज्ञानिक अब तीन दिनों में लैंडर 'विक्रम' के मिलने का विश्वास जरा रहे हैं. इसकी वजह यह है कि लैंडर से जिस जगह पर संपर्क टूटा था, उसी जगह पर ऑर्बिटर को पहुंचने में तीन दिन लगेंगे.ISRO के चेयरमैन के सिवन ने कहा है कि हमारे पास चंद्रमा की इतनी अच्छी रिजोल्यूशन वाली तस्वीरें होंगीं, जितनी आज तक किसी के पास नहीं रहीं. इस खबर से पहले ही रविवार को विक्रम लैंडर के पता चलने की खबर आ गई.