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'विक्रम' की मौत की पुष्टि, सदमे को जज्ब कर इसरो ने 'गगनयान' पर लगाया ध्यान

'चंद्रयान 2' के साथ गया ऑर्बिटर बेहतरीन काम कर रहा है और इसरो ने 'विक्रम' की आकस्मिक मौत को स्वीकार कर अपने अगले मिशन 'गगनयान' पर ध्यान केंद्रित कर लिया है.

Updated on: 21 Sep 2019, 01:13 PM

highlights

  • इसरो ने 'विक्रम' की मौत को स्वीकार कर मिशन 'गगनयान' पर ध्यान केंद्रित कर लिया है.
  • 'विक्रम' 14 दिन तक काम करने में ही सक्षम था. लूनर नाइट के साथ ही वह खुद निष्क्रिय हो जाता.
  • 'गगनयान' मिशन के तहत साल 2022 तक चंद्रमा पर एक मानव मिशन भेजने की तैयारी की जा रही है.

बेंगलुरु:

जैसी आशंका जताई जा रही थी शनिवार को इसरो प्रमुख के. सिवन ने भी स्वीकार कर लिया कि चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान क्रैश हुए लैंडर 'विक्रम' से संपर्क स्थापित होने की संभावना अब न के ही बराबर है. इसकी वजह चांद पर शुरू हुई लूनर नाइट है. इस कारण शनिवार तड़के से चांद के दक्षिणी ध्रुव को न सिर्फ अंधेरे ने अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है, बल्कि इसके साथ ही इस हिस्से का तापमान भी तेजी से नीचे गिरने लगा है. इन दोनों ही स्थितियों के लिए 'विक्रम' तैयार नहीं था. हालांकि अच्छी बात यह है कि 'चंद्रयान 2' के साथ गया ऑर्बिटर बेहतरीन काम कर रहा है और इसरो ने 'विक्रम' की आकस्मिक मौत को स्वीकार कर अपने अगले मिशन 'गगनयान' पर ध्यान केंद्रित कर लिया है.

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अब टूट गईं सारी उम्मीदें
7 सितंबर को 'चंद्रयान 2' मिशन के तहत भेजे गए लैंडर 'विक्रम' से संपर्क टूटने के बावजूद इसरो समेत नासा को भी उम्मीद है कि समय रहते उससे सिग्नल मिल जाएंगे. समय रहते से आशय यह है कि इसरो ने 'विक्रम' को चांद के लूनर डे के हिसाब से डिजाइन किया था. एक लूनर डे पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. ऐसे में 'विक्रम' के उपकरण 14 दिन तक काम करने में ही सक्षम थे. लूनर नाइट की शुरुआत के साथ ही 'विक्रम' खुद-ब-खुद निष्क्रिय हो जाता. अब 21 सितंबर तड़के सुबह से लूनर नाइट शुरू होते ही इसरो ने भी 'विक्रम' के जी उठने की संभावना से मुंह मोड़ लिया.

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ऑर्बिटर कर रहा बेहतरीन काम
हालांकि ऑर्बिटर अपना काम बखूबी कर रहा है. ऑर्बिटर में लगे 8 उपकरण अपना-अपना काम कर रहे हैं. उसने ही घायल 'विक्रम' की एक तस्वीर प्रेषित की थी. अब वह लगातार तस्वीरें भेज रहा है. वैज्ञानिकों की निगाहबीनी में ऑर्बिटर अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहा है. उसके 8 अत्याधुनिक पे-लोड्स चांद की न सिर्फ 3-डी मैपिंग कर रहे हैं, बल्कि दक्षिणी ध्रुव पर पानी, बर्फ और मिनरल्स होने की संभावनाओं की भी तलाश कर रहे हैं. ऑर्बिटर का जीवनकाल एक साल तय किया गया है. हालांकि उसमें भरा गया अतिरिक्त ईंधन ऑर्बिटर को सात साल तक काम करने में मदद करेगा.

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इसरो का अब ध्यान 'गगनयान' मिशन पर
यह जानकारी देने के साथ ही इसरो प्रमुख के. सिवन ने अगले लक्ष्य गगनयान पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है. उनका कहना है कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का ध्यान अब भारत के स्पेस मिशन 'गगनयान' पर है. यही नहीं, सिवन ने 'गगनयान' को प्राथमिकता बताते हुए यह संकेत दे दिए हैं कि 'विक्रम' से संपर्क की उम्मीदें टूट चुकी हैं. 'गगनयान' मिशन के तहत साल 2022 तक चंद्रमा पर एक मानव मिशन भेजने की तैयारी की जा रही है. देश के महत्वाकांक्षी 'गगनयान' कार्यक्रम के तहत दो मानवरहित और एक मानवयुक्त फ्लाइट अंतरिक्ष में भेजने की योजना है.