logo-image

Success Story: इस भारतीय वैज्ञानिक ने नासा के 'सूर्ययान' को बनाया सफल, जानें कौन हैं ये भारतीय वैज्ञानिक

नासा के जिस सूर्य मिशन (Solar Mission) की शुरूआत की थी उसको करीब 1 साल पूरा हो चुका है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि उसके पीछे भी एक भारतीय वैज्ञानिक (Indian Scientist) का बड़ा योगदान रहा है.

Updated on: 24 Aug 2019, 08:05 AM

highlights

  • नासा के सोलर मिशन को हो गए 1 साल. 
  • भारतीय वैज्ञानिक की वजह से हो पाया मिशन सफल. 
  • इसी वैज्ञानिक ने सूर्य तक पहुंचने का रास्ता बनाया.

नई दिल्ली:

NASA's Solar Mission and Indian Scientist Behind its Success: इधर ISRO चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2) सफलता हासिल कर रहा है वहीं दूसरी ओर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी, नासा भी पीछे नहीं है. नासा के जिस सूर्य मिशन (Solar Mission) की शुरूआत की थी उसको करीब 1 साल पूरा हो चुका है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि उसके पीछे भी एक भारतीय वैज्ञानिक (Indian Scientist) का बड़ा योगदान रहा है. हालांकि विज्ञान मानवता के लिए होता है, इसे देश या जातीय सीमाओं में नहीं देखा जाना चाहिए. बहरहाल, जानिए कि कौन थे ये भारतीय वैज्ञानिक और कैसे उन्होंने एक तरह से इस मिशन की बुनियाद रखी.
इन भारतीय वैज्ञानिक की बात करने से भी पहले हमें बात करनी चाहिए गैलिलियो (Galileo Galilei) की जिन्होंने सबसे पहले ये बताया था कि पृथ्वी, सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती है या सूर्य के चक्कर लगाती है. लेकिन उस वक्त गैलिलियो की बात किसी ने नहीं मानी और चर्च ने तो गैलिलियो को मरने तक एक कैदखाने में बंद कर दिया था.'

यह भी पढ़ें: Asteroid Alert! पृथ्वी को तबाह करने आ रहा है Asteroid 2000 QW7, भारी पड़ेगा 14 सितंबर का दिन

हालांकि इस बात को सत्य साबित होने और चर्च को इस बात को समझने में करीब 300 साल लग गए. लेकिन अगर नासा, चर्च की बात को मान लेती तो आज तक कभी भी हम सूर्य के बारे में या उसके पास तक जाने की हिम्मत भी न जुटा पाते.
1950 का समय था जब एक वैज्ञानिक ने सोलर विंड्स (Solar Winds) की थ्योरी दी लेकिन उस वक्त उसकी इस थ्योरी को सिरे से खारिज कर दिया गया. इसके बाद इसी वैज्ञानिक ने सूर्य तक जाने का रास्ता खोजा.

साल 1958 की बात है कि एक उभरते हुए 31 वर्षीय युवा अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. यूजीन पार्कर (Eugene Parker) 'सूर्य से लगातार अंतरिक्ष में चार्ज्ड पार्टिकल्स प्रवाहित होते हैं' विषय पर एक पेपर लिखा था. पार्कर चाहते थे कि उनका ये पेपर एस्ट्रोफिज़िकल जर्नल में छपे, जो उस वक्त का सबसे प्रतिष्ठित अंतरिक्ष विज्ञान आधारित पत्र था. लेकिन, उस वक्त इस थ्योरी को वैज्ञानिकों ने नकार दिया था. कोलकाता स्थित आईआईएसईआर के असोसिएट प्रोफेसर ​डॉ. दिब्येंदु नंदी के हवाले से पीटीआई ने एक रिपोर्ट में लिखा था-

यह भी पढ़ें: कुत्तों का Space Mission, अंतरिक्ष पहुंच Hero बन गए ये जानवर

'जब डॉ. पार्कर ने ये पेपर प्रस्तुत किया तो इस पेपर की दो बार अलग अलग समीक्षा करवाई गई ताकि इसे एस्ट्रोफिज़िकल जर्नल में छापा जा सके लेकिन दोनों बार समीक्षा करने वाले वैज्ञानिकों ने इस पेपर में प्रतिपादित थ्योरी को खारिज कर दिया.'
इसके बाद, 1953 में इसी जर्नल के वरिष्ठ संपादक, जो कि एक भारतीय थे, ने पार्कर के इस पेपर को हरी झंड़ी दे दी थी और यहीं से नासा के सूर्य मिशन की शुरूआत हुई. जर्नल के इस संपादक का नाम था- डॉ. सुब्रमण्यन चंद्रशेखर उर्फ चंद्रा, जो कि एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक भी थे. इसी के साथ 1953 में उन्होंने अमेरिका की नागरिकता भी ले ली थी.

1953 में अमेरिका की नागरिकता पा चुके सुब्रमण्यन चंद्रशेखर उर्फ चंद्रा प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थे और उस वक्त जर्नल के वरिष्ठ संपादक थे, जब पार्कर ने ये पेपर तैयार किया था. चंद्रा ने समीक्षकों की राय को नकारते हुए पार्कर की थ्योरी को हरी झंडी दी और जर्नल में इस पेपर को छापे जाने का रास्ता बनाया. डॉ. नंदी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया था 'कैसे दूसरों के आइडियाज़ को लेकर उदार हुआ जाता है, चंद्रा से सीखा जाना चाहिए था. अगर किसी थ्योरी में कुछ भी तार्किक संभावना है तो फिर आपके व्यक्तिगत विचार के खिलाफ भी हो, तब भी उसका स्वागत किया जाना उन्हें आता था'.

यह भी पढ़ें: पृथ्वी पर मचने वाली है बड़ी तबाही, आ रहा है सबसे खतरनाक Asteroid 'God of Chaos'

जब डॉ. पार्कर का पेपर जर्नल में छपा उसी के बाद उनकी इस बात पर लोगों ने गौर किया और इस पर अध्ययन होना शुरू हुआ. इसके बाद भी पार्कर रुके नहीं बल्कि कई और थ्योरी भी देते रहे. नासा (NASA's Mission to reach near Sun) ने सूर्य के बेहद नज़दीक यान भेजकर अध्ययन करने का मिशन पिछले साल 2018 में शुरू हुआ क्योंकि सालों का समय उस तकनीक को विकसित करने में लगा, जिसके ज़रिए ऐसा यान बनाया जा सके जो सूर्य के भयंकर तापमान को सहन कर सके. इस यान और मिशन का नाम थ्योरी देने वाले वैज्ञानिक के सम्मान में पार्कर सोलर प्रोब रखा गया, जो एक साल में अपने दो चरण पूरे कर चुका है और 2025 तक सूरज के बहुत पास पहुंचकर सोलर विंड्स व मैग्नेटिक फील्ड संबंधी अध्ययन करने वाला है.
कौन थे डॉ. चंद्रशेखर

यह भी पढ़ें: खतरा! धरती पर हमला कर सकते हैं Aliens, NASA ने ली UFO की तस्वीर

डॉ. चंद्रशेखर का पूरा नाम था डॉ. चंद्रशेखर. 1910 में लाहौर में जन्में चंद्रशेखर एक भारतीय अमेरिकी खगोलशास्त्री थे. भौतिक शास्त्र पर उनके अध्ययन के लिए उन्हें विलियम ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से सन् 1983 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था.
अगर न होते तो नासा का सूर्य मिशन भी न होता
नासा के पार्कर सोलर प्रोब के पीछे डॉ. पार्कर की थ्योरीज़ रहीं लेकिन चंद्रा अगर उस वक्त उन थ्योरीज़ को विरोध के बावजूद प्रकाशित करने का फैसला नहीं करते, तो शायद इन थ्योरीज़ की ओर कोई भी ध्यान नहीं देता और ऐसा कोई मिशन कभी वजूद में ही नहीं आता. ऐसी आशंका इसलिए जताई जाती है क्योंकि गैलिलियो के मामले में ऐसा हुआ था. चर्च की मान्यता थी कि सूर्य समेत ब्रह्मांड के सभी ग्रह पृथ्वी के चक्कर लगाते हैं. एक स्थापित मान्यता को चुनौती देने का साहस गैलिलियो ने किया तो उसे मौत तक कैद में रखा गया था. गैलिलियो की बात को स्वीकार करने में चर्च को करीब 300 साल लगे. हालांकि इस मामले में पार्कर थोड़े लकी रहे कि उन्हें डॉ. चंद्रशेखर का साथ मिला.