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चंद्रयान-2: आइए जानें इस मिशन से जुड़ी वो बातें जिससे अब तक आप रूबरू नहीं हुए होंगे

भारत एकबार फिर इतिहास रचने को तैयार है. आज यानी 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया जाएगा.

Updated on: 22 Jul 2019, 02:34 PM

नई दिल्‍ली:

भारत एकबार फिर इतिहास रचने को तैयार है. आज यानी 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया जाएगा. भारत का चंद्रयान-2 चांद को छूने के लिए तैयार है. चंद्रयान-2 का काउंटडाउन चल रहा है. अभी तक लीक्विड ऑक्सीजन की फिलिंग पूरी हो गई है, लीक्विड हाइड्रोजन की फिलिंग जारी है. आज से ठीक 31 साल पहले इसी तारीख को हुई लॉन्चिंग पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई थी.

बता दें 15 जुलाई की रात मिशन की शुरुआत से करीब 56 मिनट पहले लॉन्चिंग व्हीकल सिस्टम में खराबी आ गई थी. इस कारण चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग टाल दी गई. अब खामियों को दूर कर लिया गया है. खास बात यह है कि लॉन्चिंग की तारीख आगे बढ़ाने के बावजूद चंद्रयान-2 चांद पर तय तारीख 7 सितंबर को ही पहुंचेगा, लेकिन चंद्रयान पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाएगा. पहले 5 चक्कर लगाने थे, पर अब 4 चक्कर लगाएगा. इसकी लैंडिंग ऐसी जगह तय है, जहां सूरज की रोशनी ज्यादा है.

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चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो

भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से चंद्रयान-2 को लॉन्च किया जाएगा. इस रॉकेट में तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) होंगे. इस मिशन के तहत इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर को उतारेगा. इस बार चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो होगा. यह चंद्रयान-1 मिशन (1380 किलो) से करीब तीन गुना ज्यादा है.

पहली बार अक्टूबर 2018 में टली चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग

इसरो चंद्रयान-2 को पहले अक्टूबर 2018 में लॉन्च करने वाला था. बाद में 3 जनवरी और फिर 31 जनवरी को लॉन्‍च करने की बात कही गई और अन्य कारणों से इसे 15 जुलाई तक टाल दिया गया. इस दौरान बदलावों की वजह से चंद्रयान-2 का भार भी पहले से बढ़ गया.

आइए जानें इस मिशन से जुड़ी वो बातें जिससे अब तक आप रूबरू नहीं हुए होंगे....

  • चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं, जिनके नाम ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) हैं.
  • इस प्रोजेक्ट की लागत 800 करोड़ रुपए है.
  • अगर मिशन सफल हुआ तो अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत चांद पर रोवर उतारने वाला चौथा देश होगा.
  • चंद्रयान-2 इसरो के सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 से पृथ्वी की कक्षा के बाहर छोड़ा जाएगा. फिर उसे चांद की कक्षा में पहुंचाया जाएगा.
  • करीब 55 दिन बाद चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा. फिर लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा. इसके बाद रोवर उसमें से निकलकर विभिन्न प्रयोग करेगा.
  • चांद की सतह, वातावरण और मिट्टी की जांच करेगा. वहीं, ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर पर नजर रखेगा. साथ ही, रोवर से मिली जानकारी को इसरो सेंटर भेजेगा.

इसरो के इस महत्वाकांक्षी मिशन की चुनौतियां

  • एक्युरेसी की मुश्किल, पृथ्वी से चांद की दूरी 3,84,403 किलोमीटर है.
  • ट्राजेक्टरी एक्युरेसी मुख्य चीज है. यह चांद की ग्रेवेटी से प्रभावित है.
  • चांद पर अन्य खगोलविद संस्थाओं की मौजूदगी और सोलर रैडिएशन का भी इस पर प्रभाव पड़ने वाला है.

डीप-स्पेस कॉम्युनिकेशन

  • कॉम्युनिकेशन में देरी भी एक बड़ी समस्या होगी.
  • कोई भी संदेश भेजने पर उसके पहुंचने में कुछ मिनट लगेंगे.
  • सिंग्ल्स वीक हो सकते हैं.
  • बैकग्राउंड का शोर भी संवाद को प्रभावित करेगा.

चंद्रयान-2 के बारे में

इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-2 दूसरा चंद्र अभियान है और इसमें तीन मॉडयूल हैं ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान).

ऑर्बिटर- 1 साल, लैंडर (विक्रम)- 15 दिन, रोवर (प्रज्ञान)- 15 दिन

चंद्रयान-2  का कुल वजनः 3877 किलो

ऑर्बिटर- 2379 किलो, लैंडर (विक्रम)- 1471 किलो, रोवर (प्रज्ञान)- 27 किलो

ऑर्बिटरः चांद से 100 किमी ऊपर इसरो का मोबाइल कमांड सेंटर

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चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर से प्राप्त जानकारी को इसरो सेंटर पर भेजेगा. इसरो से भेजे गए कमांड को लैंडर और रोवर तक पहुंचाएगा. इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाकर 2015 में ही इसरो को सौंप दिया था.

विक्रम लैंडरः रूस के मना करने पर इसरो ने बनाया स्वदेशी लैंडर

लैंडर का नाम इसरो के संस्थापक और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. यह 15 दिनों तक वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. इसकी शुरुआती डिजाइन इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर अहमदाबाद ने बनाया था. बाद में इसे बेंगलुरु के यूआरएससी ने विकसित किया.

प्रज्ञान रोवरः इस रोबोट के कंधे पर पूरा मिशन, 15 मिनट में मिलेगा डाटा

  • 27 किलो के इस रोबोट पर ही पूरे मिशन की जिम्मदारी है.
  • चांद की सतह पर यह करीब 400 मीटर की दूरी तय करेगा.
  • इस दौरान यह विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. फिर चांद से प्राप्त जानकारी को विक्रम लैंडर पर भेजेगा.
  • लैंडर वहां से ऑर्बिटर को डाटा भेजेगा. फिर ऑर्बिटर उसे इसरो सेंटर पर भेजेगा.
  • इस पूरी प्रक्रिया में करीब 15 मिनट लगेंगे. यानी प्रज्ञान से भेजी गई जानकारी धरती तक आने में 15 मिनट लगेंगे.

कुल 11 साल लगे चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में

  •  नवंबर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि वह इस प्रोजेक्ट में साथ काम करेगा. वह इसरो को लैंडर देगा.
  •  2008 में इस मिशन को सरकार से अनुमति मिली.
  •  2009 में चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार कर लिया गया.
  • जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी, लेकिन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई. फिर इसकी लॉन्चिंग 2016 में तय की गई. हालांकि, 2015 में ही रॉसकॉसमॉस ने प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए.

इसरो ने खुद बनाया स्वदेशी लैंडर, रोवर

  • इसरो ने चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग मार्च 2018 तय की. लेकिन कुछ टेस्ट के लिए लॉन्चिंग को अप्रैल 2018 और फिर अक्टूबर 2018 तक टाला गया.
  • इस बीच, जून 2018 में इसरो ने फैसला लिया कि कुछ जरूरी बदलाव करके चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग जनवरी 2019 तय हुई. फिर इसे फरवरी 2019 किया गया. अप्रैल 2019 में भी लॉन्चिंग की खबर आई थी, पर हुई नहीं.

चंद्रयान-2 की खासियत

  • इसमें 13 भारतीय पेलोड में 8 ऑर्बिटर, 3 लैंडर और 2 रोवर होंगे.
  • NASA का एक पैसिव एक्सपेरिमेंट होगा.
  • इन सभी पेलोड के काम को लेकर विस्तार से जानकारियां नहीं दी हैं.
  • यह पूरा स्पेसक्राफ्ट कुल मिलाकर 3.8 टन वजनी होगा.

चांद पर इस तरह काम करेगा चंद्रयान-2 मिशन

इसरो के चेयरमैन के सिवान के मुताबिक, हम चांद पर एक ऐसी जगह जा रहे हैं, जो अभी तक दुनिया से अछूती रही है. यह है चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव.अंतरिक्ष विभाग की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, इस मिशन के दौरान ऑर्बिटर और लैंडर आपस में जुड़े हुए होंगे. इन्हें इसी तरह से GSLV MK III लॉन्च व्हीकल के अंदर लगाया जाएगा. रोवर को लैंडर के अंदर रखा जाएगा.लॉन्च के बाद पृथ्वी की कक्षा से निकलकर यह रॉकेट चांद की कक्षा में पहुंचेगा. इसके बाद धीरे-धीरे लैंडर, ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा. इसके बाद यह चांद के दक्षिणी ध्रुव के आस-पास एक पूर्वनिर्धारित जगह पर उतरेगा. बाद में रोवर वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चंद्रमा की सतह पर निकल जाएगा.

चंद्रयान-1, पहली बार इसरो ने चांद को छुआ

  • भारत ने 22 अक्टूबर 2008 में चांद पर अपना पहला मिशन चंद्रयान-1 लॉन्च किया था.
  • 392 दिन काम करने के बाद ईंधन की कमी से मिशन 29 अगस्त 2009 को खत्म हो गया.
  • इस दौरान चंद्रयान-1 ने चांद के 3400 चक्कर लगाए थे.
  • अभी तक चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाले देश अमेरिका, रूस और चीन ही हैं.
  • चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी के सबूत भी जुटाए थे.

चंद्रयान-1 की खासियत

  • चंद्रयान-1, 11 पेलोड लेकर गया था. इसमें से 5 पेलोड भारत के थे. तीन पेलोड यूरोप के और 2 अमेरिका के थे.
  • एक पेलोड बुल्गारिया का भी था.
  • 2008 में, हमने अपना पहला सैटेलाइट सफलतापूर्वक चांद पर भेजा था.
  • इसने चंद्रमा के बारे में बहुत सारी जानकारियां इकट्ठा की थीं.
  • इसने भी वहां होने वाले खनिजों आदि के बारे में पता किया था.
  • दौरान भारतीय झंडा भी चांद की सतह पर फहराया था."
  • चंद्रयान-1 को चंद्रमा की सतह पर पानी खोजने का श्रेय दिया जाता है.
  • 1.4 टन के इस स्पेसक्राफ्ट को PSLV के जरिये लॉन्च किया गया था.
  • उस वक्त इसका ऑर्बिटर चंद्रमा के 100 किमी ऊपर कक्षा में चक्कर लगा रहा था.