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खुलासा! धरती पर जीवन तालाबों से शुरू हुआ, महासागरों से नहीं: रिपोर्ट

नए अध्ययन के अनुसार, धरती पर जीवन की उत्पत्ति के लिए महासागरों की तुलना में प्राचीन तालाबों ने अधिक अनुकूल वातावरण मुहैया कराया होगा.

Updated on: 15 Apr 2019, 06:39 AM

नई दिल्ली:

धरती पर जीवन की शुरुआत को लेकर एक नए अध्ययन में आम धारणा को चुनौती दी गई है. नए अध्ययन के अनुसार, धरती पर जीवन की उत्पत्ति के लिए महासागरों की तुलना में प्राचीन तालाबों ने अधिक अनुकूल वातावरण मुहैया कराया होगा. जियोकेमिस्ट्री, जियोफिजिक्स, जियोसिस्टम्स पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षो में कहा गया है कि कई वैज्ञानिकों ने धरती पर जीवन के लिए जिस एक प्रमुख तत्व को जरूरी माना है, उस नाइट्रोजन की उच्च सांद्रता छिछली जल संरचनाओं में रहा होगा.

मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से अध्ययन के प्रमुख लेखक सुकृति रंजन ने कहा, 'कुल मिलाकर हमारा संदेश यह है कि यदि आप सोचते हैं कि जीवन की उत्पत्ति के लिए नाइट्रोजन जरूरी है, जैसा कि कई लोग मानते हैं, तो फिर इस बात की संभावना नहीं है कि जीवन की उत्पत्ति महासागर में हुई होगी. किसी तालाबा में जीवन की उत्पत्ति काफी आसान है.'

पृथ्वी के वातावरण में नाइट्रोजन के टूटे अवशेष के रूप में नाइट्रोजन ऑक्साइड्स महासागरों और तालाबों सहित जल संरचनाओं में जमा हुए होंगे.

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वातावरणीय नाइट्रोजन में नाइट्रोजन के दो अणु होते हैं, जो एक मजबूत तिहरे बांड से बंधे होते हैं, जो एक अत्यंत ऊर्जावान घटना की स्थिति में टूट सकते हैं, जिसे आकाशीय बिजली कहते हैं.

वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि प्रारंभिक वातावरण में पर्याप्त मात्रा में आकाशीय बिजली तड़कने की घटनाएं घटी होंगी, जिससे ढेर सारे नाइट्रोजन ऑक्साइड्स पैदा हुए होंगे और महासागर मे जीवन की उत्पत्ति को ईंधन मिला होगा.

लेकिन नए अध्ययन में पाया गया है कि सूर्य से निकले पराबैगनी प्रकाश और प्राचीन महासागरीय चट्टानों से निकले घुलित लौहे ने महासागर में नाइट्रोजन ऑक्साइड्स के एक पर्याप्त हिस्से को नष्ट कर दिया होगा, और वातावरण में नाइट्रोजन के रूप में वापस यौगिक भेजे होंगे.

महासागर में पराबैगनी प्रकाश और घुलित लौहे ने सूक्ष्म जीवों के संश्लेषण के लिए काफी कम नाइट्रोजीनस ऑक्साइड्स उपलब्ध कराए होंगे.
अध्ययन में कहा गया है कि जबकि छिछले तालाबों में जीवन के विकास का एक बेहतर मौका रहा होगा, क्योंकि तालाबों का आयतन छोटा होने के कारण यौगिक तनु नहीं हो पाए होंगे. इसके परिणामस्वरूप नाइट्रोजीनस ऑक्साइड्स काफी उच्च सांद्रता में निर्मित हुए होंगे.