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ISRO ने लॉन्च किया GSAT-29, साल का 5वां सफल प्रोजेक्ट, जानें क्या है खास

यह लॉन्च भारत की ओर से किया गया अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट है जिसका वजन 3423 किग्रा है, जिसे भू स्थिर कक्षा में स्थापित किया जाएगा.

Updated on: 14 Nov 2018, 06:47 PM

नई दिल्ली:

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने बुधवार को जीएसएलवी माक-3 (GSLV MAK-III) रॉकेट की मदद से इस साल का पांचवां सैटेलाइट जीसैट-29 (GSAT-29) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया. ISRO ने यह प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा (Sri Harikota Satish Dhawan Space Center) के सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया. इस सैटेलाइट के लॉन्च में जिस रॉकेट का इस्तेमाल किया गया वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बूस्टर S200 है.

यह लॉन्च भारत की ओर से किया गया अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट है जिसका वजन 3423 किग्रा है, जिसे भू स्थिर कक्षा में स्थापित किया जाएगा. यह एक हाईथ्रोपुट कम्युनिकेशन सैटलाइट है. इसमें लगे ऑपरेशनल पेलोड्स डिजिटल इंडिया मिशन के तहत जम्मू और कश्मीर के साथ उत्तर-पूर्वी राज्यों को बेहतर सेवा मुहैया कराएंगे. इससे इन क्षेत्रों में हाईस्पीड इंटरनेट में काफी मदद मिलेगी.

इतनी ही नहीं जीसैट-29 सैटलाईट नई स्पेस तकनीक को टेस्ट करने में एक प्लैटफॉर्म की तरह काम करेगा.

इसरो चीफ ने बताया कि ऑपरेशनल पेलॉड्स के अलावा यह सैटलाइट तीन प्रदर्शन प्रौद्योगिकियों, क्यू ऐंड वी बैंड्स, ऑप्टिकल कम्युनिकेशन और एक हाई रेजॉल्यूशन कैमरा भी अपने साथ ले गया है. भविष्य के स्पेस मिशन के लिए पहली बार इन तकनीकों का परीक्षण किया गया.

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इसरो के अनुसार, जीएसएलवी-एमके III रॉकेट की दूसरी उड़ान है, जो लॉन्च होने के बाद 10 साल तक काम करेगा. लॉन्च होने के बाद पृथ्वी से 36,000 किमी दूर जियो स्टेशनरी ऑर्बिट (जीएसओ) में स्थापित किया गया है. यह भारत के दूरदराज के क्षेत्रों में हाई स्पीड डेटा को ट्रांसफर करने में मदद करेगा.

GSAT-29 को लॉन्च करने के लिए जीएसएलवी-एमके 2 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया है. इसे भारत का सबसे वजनी रॉकेट माना जाता है, जिसका वजन 640 टन है. इस रॉकेट की सबसे खास बात यह है कि यह पूरी तरह भारत में बना है. इस पूरे प्रॉजेक्ट में 15 साल लगे हैं.

इस रॉकेट की ऊंचाई 13 मंजिल की बिल्डिंग के बराबर है और यह चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है. अपनी पहली उड़ान में इस रॉकेट ने 3423 किलोग्राम के सैटलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाया था.

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इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सिजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है.