Vishwakarma Puja 2018: भगवान विश्वकर्मा की ऐसे करें पूजा, करें इन मंत्रों का उच्चारण
विश्वकर्मा की चर्चा रामायण में आती है, जब हनुमान के आग लगाने देने के बाद रावन की सोने की लंका का निर्माण किया था।
नई दिल्ली:
आज देश भर में विश्वकर्मा पूजा मनाई जा रही है. विश्वकर्मा पूजा को विश्वकर्मा जयंती, बिश्वकर्मा पूजा और बिस्वा कर्मा के नाम से जाना जाता है. यह बंगाली महीने भद्रा के आखिरी दिन पड़ती है, भद्रा को को कन्या संक्रांति भी कहते है. इस दिन हिन्दुत्व के सबसे पहले इंजीनियर और वास्तुकार विश्वकर्मा के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. बता दें कि हर साल 17 सितंबर के दिन ही विश्वकर्मा जयंती मनाया जाता है.
विश्वकर्मा की चर्चा रामायण में आती है, जब हनुमान के आग लगाने देने के बाद रावन की सोने की लंका का निर्माण किया था. ऋगवेद में विश्वकर्मा को बढ़ई(लकड़ी का काम करने वाला) बताया गया है. जिन्होंने स्थापत्य वेद की रचना की। इस वेद में विविध प्रकार की कलाओं, हस्तशिल्पों की डिजाइन और सिद्धान्त का विवेचन किया गया है.
इस दिन देश के विभिन्न राज्यों में, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में भगवान विश्वकर्मा की पूजा होती है.
विश्वकर्मा पूजा सबसे ज्यादा कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, बिहार, त्रिपुरा और ओडिशा जैसे राज्यों में मनाया जाता है. इन राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी आराधना की जाती है.
पूजा करने की विधि
- स्नान करके अपने कार्यस्थल पर जाकर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें.
- दाहिने हाथ में फूल, अक्षत लेकर मंत्र पढ़े और अक्षत को चारों ओर छिड़के दें और फूल को जल में छोड़ दें.
- ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम:, ॐ पृथिव्यै नम: मंत्र पढ़ें.
- पूजा के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि को जल, रोली, अक्षत, फूल और मिठाई से पूजें.
- इस दिन वातावरण में शुद्धि के लिए हवन भी जरूर करना चाहिए.
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मान्यता के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए अनेकों भव्य महलों, आलीशान भवनों, हथियारों और सिंघासनों का निर्माण किया इसलिए उन्हें निर्माण का देवता माना जाता है.
विश्वकर्मा आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
टिप्पणियां श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥
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