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27 पत्नियों वाले चांद को क्यों और किसने दिया श्राप, दाग लगने का क्या है रहस्य?

चांद के रहस्यों में सबसे बड़ा रहस्य यही है कि आखिर चांद का जन्म कैसे हुआ. इसके पीछे विज्ञान के अपने तर्क हैं और धर्मग्रंथों की अपनी मान्यताएं.

Updated on: 14 Jul 2019, 06:13 AM

नई दिल्ली:

जल के देवता...चंद्रमा...मन के कारक...चंद्रमा... सभी 27 नक्षत्रों के स्वामी चंद्रमा...आदिकाल से ही चांद को लेकर कई धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं चली आ रही हैं. चांद के वजूद और अहमियत को लेकर कई तरह तक दावे किए जाते रहे हैं. युगों-युगों तक चांद इंसानों के लिए रहस्य और रोमांच का सबसे बड़ा केंद्र बना रहा और आज भी इसके कई ऐसे अनसुलझे रहस्य है जों दुनिया को हैरान करते हैं.

चांद के रहस्यों में सबसे बड़ा रहस्य यही है कि आखिर चांद का जन्म कैसे हुआ. इसके पीछे विज्ञान के अपने तर्क हैं और धर्मग्रंथों की अपनी मान्यताएं. बताते हैं आपको आपको अलग अलग पुराणों में चांद के जन्म के बारे में क्या कहा गया है.

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चांद के जन्म का रहस्य

मत्स्य और अग्नि पुराण के मुताबिक चांद की उत्पत्ति ब्रह्मा की कृपा से हुई. कहते हैं जब बह्माजी ने सृष्टि की कल्पना की तो सबसे पहले अपने मानस पुत्रों की रचना की. उनमें से एक मानस पुत्र थे ऋषि अत्रि. ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की पुत्री अनुसुइया से हुआ. ऋषि कर्दम और अनुसुइया के तीन पुत्र हुए. दुर्वासा, दत्तात्रेय और सोम यानी चंद्रमा जिन्हें ब्रह्मा ने तमाम नक्षत्रों, वनस्पतियों, ब्राह्मण और तप का स्वामी नियुक्त किया.

चांद के जन्म से जुड़ी दूसरी कहानी

पद्म पुराण में चंद्र के जन्म की एक अलग ही कहानी है. उसके मुताबिक जब ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने को कहा तो महर्षि अत्रि ने कठोर तप शुरू किया. तपस्या के दौरान महर्षि अत्रि की आंखों से जल की कुछ बूंदें टपकी. प्रकाशमयी बूंदों को दिशाओं ने स्त्री रुप में प्रकट होकर ग्रहण कर लिया, लेकिन प्रकाशमान गर्भ को दिशाएं अधिक देर धारण न कर सकीं. दिशाओं ने गर्भ त्याग दिया जिसे ब्रह्मा ने पुरुष रुप में चंद्रमा बना दिया. कहते हैं चंद्रमा की तब तमाम देवताओं, ऋषियों और गंधर्वों ने स्तुति की और चंद्रमा के तेज से ही धरती पर दिव्य औषधियां पैदा हुईं.

चंद्रमा के जन्म की तीसरी मान्यता
चंद्रमा के जन्म से जुड़ी एक तीसरी मान्यता भी है जिसका जिक्र स्कंद पुराण में किया गया है. इसके मुताबिक जब देवों और असुरों ने क्षीर सागर का मंथन किया तो समुद्र से 14 रत्न निकले थे. उन 14 रत्नों में से चंद्रमा भी एक थे. जिसे शिव ने अपने मस्तक पर धारण किया था. दरअसल समद्र से निकले विष को लेकर जब हाहाकार मचा तो शिव ने पूरा विष स्वयं पी लिया. जिससे उनका गला नीला पड़ गया. शिव को शीतल करने के लिए चंद्रमा उनके मस्तक पर निवास करने लगे.

चंद्रमा की मौजूदगी का धार्मिक प्रमाण

ग्रह के रूप में चंद्रमा की मौजूदगी का धार्मिक प्रमाण मंथन से पहले का है. स्कंद पुराण में ही कहा गया है कि समुद्र मंथन का मुहूर्त निकालते वक्त चंद्रमा और गुरु का शुभ योग बताया गया था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चन्द्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था. ये सभी कन्याएं 27 नक्षत्रों की प्रतीक मानी जाती हैं. इन्ही 27 नक्षत्रों के योग से एक चंद्रमास पूरा होता है.

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चंद्रमा की 27 पत्नियों का सच

चंद्रमा की 27 पत्नियों में सबसे चर्चित नाम रोहिणी का है. सभी नक्षत्रों में भी रोहिणी नक्षत्र को उत्तम माना जाता है. चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिणी से सबसे ज्यादा प्रेम करते थे. बुध ग्रह को चंद्रमा और रोहिणी की ही संतान माना जाता है. चंद्रमा, रोहिणी और बुध को लेकर कई कहानियां बेहद मशहूर रही हैं. दरअसल रोहिणी से चंद्रमा का अत्यधिक प्रेम ही उनके लिए सबसे बड़ी मुश्किल बन गया. जिसके बाद चंद्रमा को भीषण श्राप का सामना करना पड़ा.

चांद को कैसे मिला श्राप ?

कहते हैं चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिनी से इतना प्रेम करने लगे कि अन्य 26 पत्नियां चंद्रमा के बर्ताव से दुखी हो गईं. जिसके बाद सभी 26 पत्नियों ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चांद की शिकायत की. बेटियों के दुख से क्रोधित दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे डाला. दक्ष के श्राप के बाद चंद्रमा क्षयरोग के शिकार हो गए. श्राप से ग्रसित होकर चंद्रमा का तेज क्षीण पड़ने लगा. इससे पृथ्वी की वनस्पतियों पर भी बुरा असर पड़ने लगा.

कैसे मिली श्राप से मुक्ति ?

कहते हैं कि संकट की इस स्थिति में भगवान विष्णु ने मध्यस्थता की. विष्णु के हस्तक्षेप से ही दक्ष का गुस्सा कम हुआ जिसके बाद उन्होंने चंद्रमा को इस शर्त पर फिर से चमकने का वरदान दिया कि चांद का प्रकाश कृष्ण पक्ष में क्षीण होता जाएगा. अमावस्या पर चांद का प्रकाश पूरी तरह गायब हो जाएगा लेकिन शुक्ल पक्ष में चंद्रमा का उद्धार होगा और पूर्णमासी को चंद्रमा का तेज पूर्ण रूप में दिखेगा.

आसमान पर चमकता चांद सनातन काल से ही इंसानों को आकर्षित करता रहा है. कहते हैं सभी 16 कलाओं में निपुण चांद का रंग कभी दूध की तरह झक सफेद और दागमुक्त था. फिर उस पर लगे दाग का रहस्य क्या है. कभी पूरी तरह श्वेत दिखने वाला चांद रूप सृष्टि के सबसे अनुपम सौंदर्य का प्रतीक था पर फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने जिसने सफेद चांद के दामन पर दाग लगा दिया. आखिर चमकते चांद पर कैसे लगा कलंक का दाग.

चांद पर कलंक कैसे लगा ?

चांद पर लगे दाग से जुड़ी भी कई पौराणिक मान्यताएं है. कहते हैं भगवान शिव के तिरस्कार से अपमानित होकर सती ने जब यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी तो शिव इतने क्रोधित हो गए कि तांडव करने लगे. भगवान शिव ने इसके लिए दक्ष प्रजापति को जिम्मेदार माना और उनका वध करने निकल पड़े. पौराणिक कथाओं के मुताबिक शिव ने दक्ष को लक्ष्य कर अचूक बाण से प्रहार किया. बचने के लिए दक्ष ने मृग का रूप धारण कर लिया. मृग बनकर दक्ष ने खुद चंद्रमा में छिपा लिया. वही मृग रूप चंद्रमा में धब्बे की तरह दिखता है. इसीलिए चंद्रमा का नाम मृगांक भी है. मृग यानी हिरण और अंक का मतलब कलंक या दाग.

चांद को गणेश ने श्राप क्यों दिया ?

चांद पर दाग लगने की एक और कहानी भी काफी प्रचलित है. ये कहानी है गणपति बप्पा यानी भगवान गणेश से चंद्रमा को मिले श्राप की. कहते हैं चंद्रमा को अपने तेज और रूप रंग पर इतना अभिमान हो गया था कि उन्होंने एक बार भगवान गणेश का भी अपमान कर दिया. जिसका नतीजा उन्हें श्राप के रूप में भुगतना पड़ा.
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार ब्रह्माजी ने चतुर्थी के दिन गणेशजी का व्रत किया था. गणेशजी ने प्रकट होकर ब्रह्माजी को सृष्टि रचना के मोह से मुक्त होने का वरदान दिया. गणेश जी जाने लगे तो चंद्रमा ने उनके रंग रूप का मजाक उड़ाया. चंद्रमा ने गणेश के लंबोदर और गजमुख का उपहास किया. गणेश ने क्रोध में चंद्रमा को बदसूरत होने का श्राप देते हुए कहा जो भी चांद को देखेगा उस पर झूठा कलंक लगेगा.

चांद ने गणेश को कैसे मनाया ?

कहते हैं उसके बाद चंद्रमा ने नारद की सलाह पर गणेश जी का लड्डुओं और मालपुए से पूजा किया तब गणेश जी ने श्राप तो वापस ले लिया पर ये भी कहा कि जो भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चांद देखेगा उसे चांद का कलंक जरूर लगेगा. कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण पर भी समयंतक मणि की चोरी का कलंक इसीलिए लगा था क्योंकि उन्होंने गणेश चतुर्थी के दिन चांद के दर्शन कर लिए थे.