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डोंगरगढ़ में 2 हजार फीट की ऊंचाई पर विराजती हैं मां बम्लेश्वरी, सालभर यहां लगा रहता है भक्तों का तांता

छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित है मां बम्लेश्वरी का भव्य मंदिर. राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है.

Updated on: 10 May 2019, 10:28 AM

नई दिल्ली:

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) राज्य के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित है मां बम्लेश्वरी का भव्य मंदिर. राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है. वैसे तो साल भर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन लगभग दो हजार साल पहले माधवानल और कामकंदला की प्रेम कहानी से महकने वाली इस कामाख्या नगरी में नवरात्रि के दौरान अलग ही दृश्य होता है.

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डोंगरगढ़ में जमीन से करीब 2 हजार फीट की ऊंचाई पर विराजती है मां बम्लेश्वरी. मां की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से भक्तों का जत्था माता के इस धाम में पहुंचता है. कोई रोप वे का सहारा लेकर तो कोई पैदल ही चलकर माता के इस धाम में अपने आस्था के फूल चढ़ाने पहुंचता है. मंदिर में प्रवेश करते ही सिंदूरी रंग में सजी मां बमलेश्वरी का भव्य रूप बार बार ही भक्तों को अपनी ओर खींच लेता है. साल के दो नवरात्रों चैत्र और शारदीय नवरात्रों में तो यहां की छटा देखते ही बनती है. लंबी-लंबी कतारों में खड़े भक्त घंटों यहां मां की एक झलक भर पाने का इंतजार करते हैं.

मां बम्लेश्वरी का मंदिर का इतिहास

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के इतिहास में कामकंदला और माधवानल की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है। लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था. वे नि:संतान थे. संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की. इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा. मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया. बाद में मदनसेन के पुत्र कामसेन ने राजगद्दी संभाली. कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे. कला, नृत्य और संगीत के लिए विख्यात् कामाख्या नगरी में कामकंदला नाम की राज नर्तकी थी.राचीन काल में यह स्थान कामावती नगर के नाम से विख्यात था.

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कहते हैं यहां के राजा कामसेन बड़े प्रतापी और संगीत-कला के प्रेमी थे. राजा कामसेन के ऊपर बमलेश्वरी माता की विशेष कृपा थी. उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुंदर राज नर्तकी और माधवानल जैसे संगीतकार थे. एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने माधवानल को अपने गले का हार दे दिया. माधवानल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए वह हार उसको पहना दिया. इससे राजा ने अपने को अपमानित महसूस किया और गुस्से में आकर माधवानल को राज्य से बाहर निकाल दिया. इसके बावजूद कामकंदला और माधवानल छिप-छिपकर मिलते रहे. एक बार माधवानल उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में गए और उनका मन जीतकर उनसे पुरस्कार स्वरूप कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही.

राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रेम की परीक्षा ली और दोनों को खरा पाकर कामकंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया. राजा के इनकार करने पर दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया. दोनों वीर योद्धा थे और एक महाकाल का भक्त था तो दूसरा विमला माता का. दोनों ने अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान किया तो एक ओर से महाकाल और दूसरी ओर भगवती विमला मां अपने-अपने भक्तों की सहायता करने पहुंचे. युद्ध के दुष्परिणाम को देखते हुए महाकाल ने विमला माता से राजा विक्रमादित्य को क्षमा करने की प्रार्थना की और कामकंदला और माधवानल को मिलाकर वे दोनों अंतर्ध्यान हो गए.

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वहीं विमला मां आज बम्लेश्वरी देवी के रूप में छत्तीसगढ़ वासियों की अधिष्ठात्री देवी हैं. अतीत के अनेक तथ्यों को अपने गर्भ में समेटे ये पहाड़ी अनादिकाल से जगत जननी मां बमलेश्वरी देवी की सर्वोच्च शाश्वत शक्ति का साक्षी है. मां बम्लेश्वरी के आशीर्वाद से भक्तों को शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति मिलती है साथ ही विजय का वरदान मिलता है. मुश्किलों को हर कर मां अपने भक्तों को मुश्किलों से लड़ने की रास्ता दिखाती हैं.

मां बम्लेश्वरी के दरबार में दो पहर आरती का काफी महत्व

मां बम्लेश्वरी के दरबार में दो पहर होने वाली आरती का महत्व भी कुछ कम नहीं है. घंटी-घडियालों के बीच आरती की लौ के साथ श्रद्धालुओं की भीड़, माता के गीतों को गाते-गुनगुनाते हैं. मां बमलेश्वरी के मंदिर में भक्ति का अलौकिक नजारा देखने वालों को बांध लेता है, भक्ति के रस में डुबो देता है. मां बमलेश्वरी बगलामुखी का रूप हैं तो वहीं हिमाचल के कांगड़ा में सुंदर पहाड़ियों के बीच साक्षात विजारती हैं मां बगलामुखी. 10 महाविद्याओं में से एक मां बगलामुखी के इस दरबार में भगवान राम ने तपस्या कर रावण पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद पाया था.

मां बगलामुखी के दरबार में हवन करने की विधि बेहद अनूठी

मां बगलामुखी के दरबार में हवन करने की विधि बेहद अनूठी है क्योंकि यहां हवन सामग्री में लाल मिर्च का इस्‍तेमाल किया जाता है. कहते हैं लाल मिर्च को शत्रु नाशक माना जाता है, जिसका पूजा में इस्तेमाल करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है. प्राचीन काल में यह स्थान कामावती नगर के नाम से विख्यात था. कहते हैं यहां के राजा कामसेन बड़े प्रतापी और संगीत-कला के प्रेमी थे. राजा कामसेन के ऊपर बमलेश्वरी माता की विशेष कृपा थी. उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुंदर राज नर्तकी और माधवानल जैसे संगीतकार थे. एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने माधवानल को अपने गले का हार दे दिया.

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