अमरनाथ यात्रा पर जाने की रखते हैं इच्छा तो ये खबर आपके लिए ही है
अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra) की शुरुआत 1 जुलाई से दोनों मार्गों पर एक साथ होगी. बाबा बर्फानी (Baba Barfani) के दर्शन के लिए यात्रियों के रजिस्ट्रेशन की शुरुआत 1 अप्रैल से हो चुकी है.
नई दिल्ली:
अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra) की शुरुआत 1 जुलाई से दोनों मार्गों पर एक साथ होगी. बाबा बर्फानी (Baba Barfani) के दर्शन के लिए यात्रियों के रजिस्ट्रेशन की शुरुआत 1 अप्रैल से हो चुकी है. इसमें यात्रा के दोनों मार्ग बालटाल और पहलगाम से यात्रा करने वाले श्रद्धालु आवेदन कर सकते हैं. आधार शिविर भगवती नगर जम्मू से 30 जून को पहला जत्था रवाना होगा, जो अगले दिन आधिकारिक तौर पर एक जुलाई को पारंपरिक बालटाल और पहलगाम ट्रैक से पवित्र गुफा की ओर बढ़ेगा. आइए जानें इस यात्रा से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को...
जम्मू - पहलगाम रूट : 315 किलोमीटर
जम्मू से पहलगाम : टैक्सी या बस से पहुंचा जा सकता है , या फिर श्रीनगर तक हवाई सफर के बाद, श्रीनगर से पहलगाम तक सड़क मार्ग से जाया जा सकता है , श्रीनगर से पहलगाम की दूरी 96 किलोमीटर है , पहलगाम में यात्री कैम्प में रात्रि विश्राम करते हैं
पहलगाम से चंदनवारी : 16 किलोमीटर की ये दूरी मिनी बस या टैक्सी से तय की जा सकती है , यहां रास्ते में श्रद्धालुओं की सेवा के लिए कई लंगर होते हैं , इन लंगरों में श्रद्धालुओं के लिए मुफ्त भोजन की सुविधा होती है
चंदनवारी से पिस्सू घाटी : चंदनबाड़ी से आगे का रास्ता बर्फीला है. यहीं से पिस्सू घाटी की चढ़ाई शुरू होती है. कहा जाता है कि पिस्सू घाटी में देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई, जिसमें राक्षसों की हार हुई. यात्रा में पिस्सू घाटी जोख़िम भरा स्थल है. यह समुद्रतल से 11120फ़ीट ऊंचाई पर है
पिस्सू घाटी से शेषनाग :पिस्सू घाटी के बाद अगला पड़ाव 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में पड़ता है. लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यात्रा बहुत कठिन होती है. यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और ख़तरनाक है. यात्री शेषनाग पहुंचने पर भयानक ठंड का सामना करता है. यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है. इसमें झांकने पर भ्रम होता है कि आसमान झील में उतर आया है. झील करीब डेढ़ किलोमीटर व्यास में फैली है. कहा जाता है कि शेषनाग झील में शेषनाग का वास है. तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं.
शेषनाग से पंचतरणी : शेषनाग से पंचतरणी 12 किलोमीटर दूर है. बीच में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे पार करने पड़ते हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई क्रमश: 13500 फ़ीट व 14500 फ़ीट है. महागुणास चोटी से पंचतरणी का सारा रास्ता उतराई का है. यहां पांच छोटी-छोटी नदियों बहने के कारण ही इसका नाम पंचतरणी पड़ा. यह जगह चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है. ऊंचाई की वजह से ठंड भी बहुत ज़्यादा होती है. ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहां सुरक्षा के इंतज़ाम करने पड़ते हैं.
पंचतरणी से अमरनाथ गुफा : अमरनाथ की गुफा यहां से केवल 8 किलोमीटर दूर रह जाती है. रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है. इसी दिन गुफा के नज़दीक पहुंचकर लोग रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा-अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है. कुछ यात्री शाम तक शेषनाग वापस पहुंच जाते हैं. रास्ता काफी कठिन है, लेकिन पवित्र गुफा में पहुंचते ही सफ़र की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है.
बालटाल से अमरनाथ
बालटाल से पवित्र गुफा की दूरी हालांकि केवल 14 किलोमीटर है, परंतु यह सीधी चढ़ाई वाला बहुत दुर्गम रास्ता है, इसलिए सुरक्षा की नज़रिए से ठीक नहीं है, इसलिए इसे सेफ नहीं माना जाता. लिहाज़ा, ज़्यादातर यात्रियों को पहलगाम से जाने के लिए कहा जाता है. हालांकि रोमांच और ख़तरे से खेलने के शौकीन इस मार्ग से जाना पसंद करते हैं. इस रास्ते से जाने वाले लोग अपने रिस्क पर यात्रा करते हैं. किसी अनहोनी की ज़िम्मेदारी सरकार नहीं लेती है.
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चंदनवाड़ी या बालटाल से श्रद्धालु निकलते हैं, तो रास्ते भर उन्हें प्रतिकूल मौसम का सामना करना पड़ता है. पूरा बेल्ट यानी चंदनवाड़ी, पिस्सू टॉप,ज़ोली बाल, नागा कोटि, शेषनाग, वारबाल, महागुणास टॉप, पबिबाल, पंचतरिणी, संगम टॉप, अमरनाथ, बराड़ी, डोमेल, बालटाल, सोनमर्ग और आसपास का इलाक़ा साल के अधिकांश समय बर्फ़ से ढंका रहता है. इससे इंसानी गतिविधियां महज कुछ महीने रहती हैं. बाक़ी समय यहां का मौसम इंसान के रहने लायक नहीं होता. गर्मी शुरू होने पर यहां बर्फ पिघलती है और अप्रैल से यात्रा की तैयारी शुरू की जाती है.
अमरनाथ यात्रा कब कब हुए हमले
- 10 जुलाई 2017 को गुजरात नंबर की बस पर अमरनाथ यात्रियों पर आतंकियों ने हमला किया , जिसमें 7 श्रद्धालु मारे गए , 32 घायल हुए
- इस हमले से पहले 2 अगस्त, 2000 को चरमपंथियों ने पहलगाम के बेस कैंप में पर हमला किया था. बेस कैंप में 32 लोग मारे गए थे, जिसमें 21 अमरनाथ यात्री थे.
- इसके बाद अगले साल 20 जुलाई, 2001 को अमरनाथ गुफा के रास्ते की सबसे ऊंचाई पर स्थित पड़ाव शेषनाग पर हमला हुआ, जिसमें 13 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें तीन महिलाएं और दो पुलिस अधिकारी शामिल थे.
- इन हमलों को देखते हुए 2002 में अमरनाथ यात्रियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा बल के 15 हज़ार जवानों को तैनात किया गया. बावजूद इसके, 6 अगस्त, 2002 को चरमपंथियों ने पहलगाम में हमला किया जिसमें नौ लोगों की मौत हुई थी और 30 अन्य लोग घायल हो गए थे.
- 2006 में आतंकियों ने अमरनाथ यात्रियों पर हमला किया था जिसमें एक श्रद्धालु की मौत हो गई थी.
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