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Navratri 2018: नवरात्रि के चौथे दिन होती है मां कूष्मांडा की पूजा, मिलते है ये लाभ

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और व्रत त्योहारों में नवरात्र को सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और हमारे देश में हिन्दू समुदाय के लोग इसे लगभग पूरे देश बड़े धूमधाम से मनाते हैं.

Updated on: 13 Oct 2018, 05:08 PM

नई दिल्ली:

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और व्रत त्योहारों में नवरात्र को सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और हमारे देश में हिन्दू समुदाय के लोग इसे लगभग पूरे देश बड़े धूमधाम से मनाते हैं.

देवी मां के चतुर्थ रूप का नाम है देवी कूष्मांडा

कूष्माण्डा का संस्कृत में अर्थ होता है लौकी, कद्दू. अब अगर आप किसी को मज़ाक में लौकी, कद्दू पुकारेंगे तो वह बुरा मान जाएंगे और आपके प्रति क्रोधित होंगे.

कूष्मांडा का अर्थ क्या है?

लौकी, कद्दू गोलाकार है. अतः यहां इसका अर्थ प्राणशक्ति से है - वह प्राणशक्ति जो पूर्ण, एक गोलाकार, वृत्त की भांति.

भारतीय परंपरा के अनुसार लौकी, कद्दू का सेवन मात्र ब्राह्मण, महा ज्ञानी ही करते थे. अन्य कोई भी वर्ग इसका सेवन नहीं करता था. लौकी, कद्दू आपकी प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता और शक्ति को बढ़ाती है. लौकी, कद्दू के गुण के बारे में ऐसा कहा गया है कि यह प्राणों को अपने अंदर सोखती है और साथ ही प्राणों का प्रसार भी करती है. यह इस धरती पर सबसे अधिक प्राणवान और ऊर्जा प्रदान करने वाली शाक, सब्ज़ी है. जिस प्रकार अश्वथ का वृक्ष 24 घंटे ऑक्सीजन देता है उसी प्रकार लौकी, कद्दू ऊर्जा को सोखती और उसका प्रसार करती है.

सम्पूर्ण सृष्टि - प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष , अभिव्यक्त व अनभिव्यक्‍त - एक बड़ी गेंद , गोलाकार कद्दू के समान है. इसमें हर प्रकार की विविधता पाई जाता है - छोटे से बड़े तक.

'कू' का अर्थ है छोटा, 'ष्' का अर्थ है ऊर्जा और 'अंडा' का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है. यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है. इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है; जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं देवी माँ को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है. इसका अर्थ यह भी है कि देवी माँ हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं.

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कुछ क्षणों के लिए बैठकर अपने आप को एक कद्दू के समान अनुभव करें. इसका यहां पर यह तात्पर्य है कि अपने आप को उन्नत करें और अपनी प्रज्ञा, बुद्धि को सर्वोच्च बुद्धिमत्ता जो देवी माँ का रूप है, उसमें समा जाएँ. एक कद्दू के समान आप भी अपने जीवन में प्रचुरता बहुतायत और पूर्णता अनुभव करें. साथ ही सम्पूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करें. इस सर्वव्यापी, जागृत, प्रत्यक्ष बुद्धिमत्ता का सृष्टि में अनुभव करना ही कूष्माण्डा है.