Muharram 2018: हुसैन की शहादत की याद में देश भर में मनाया जा रहा मुहर्रम, जानें क्यों मनाते हैं
इस बार 11 सितंबर से 9 अक्टूबर तक मुहर्रम का महीना है. वैसे तो मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का महीना है लेकिन आमतौर पर लोग 10वें मुहर्रम को सबसे ज्यादा तरीजह देते हैं.
नई दिल्ली:
देश भर में मुस्लिम समुदाय के बड़े त्योहारों में से एक माने जाना वाला मुहर्रम आज (शुक्रवार) मनाया जाएगा. मुहर्रम (Muharram) इस्लामी महीना है और इससे इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है. बेशक से मुहर्रम पर इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है लेकिन इसके 10वें दिन हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम मातम मनाते हैं. कुछ स्थानों पर 10वें मुहर्रम पर रोज़ा रखने की भी परंपरा है.
इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है.
कब है मुहर्रम?
इस बार 11 सितंबर से 9 अक्टूबर तक मुहर्रम का महीना है. वैसे तो मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का महीना है लेकिन आमतौर पर लोग 10वें मुहर्रम को सबसे ज्यादा तरीजह देते हैं. इस बार 10वां मुहर्रम 21 सितंबर को है.
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क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इराक में यदीज नाम का एक क्रूर शख्स हुआ करता था, जो इंसानियत का दुश्मन था. कहा जाता है कि यदीज खुद को शहंशाह मानता था और खुदा पर विश्वास नहीं करता था. उसकी मंशा थी कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं, लेकिन उन्हें यह कदापि मंजूर नहीं था. इसके बाद यदीज के फैलते प्रकोप को रोकने के लिए हजरत साहब ने उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और तमाम अजीज दोस्तों के साथ शहीद कर दिया.
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कैसे मनाया जाता है मुहर्रम?
मुहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि मातम और आंसू बहाने का महीना है. शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं. हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है.
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मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है. वहीं सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में 10 दिन तक रोजे रखते हैं. कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है.
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