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Kumbh Mela 2019: कब-कब हैं स्नान के प्रमुख दिन जानें यहां

कुंभ में अनेक कर्मकाण्ड सम्मिलित हैं जिसमें स्नान कर्म कुंभ के कर्मकाण्डों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है.

Updated on: 19 Dec 2018, 12:15 PM

नई दिल्ली:

हिन्दू समाज में कुंभ मेले को बहुत ही पावन पर्व माना गया है. मान्यताओं के अनुसार यह पर्व किसी तीर्थ से कम नहीं है. कुंभ में अनेक कर्मकाण्ड सम्मिलित हैं जिसमें स्नान कर्म कुंभ के कर्मकाण्डों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. करोड़ों तीर्थयात्री पर्यटक और दर्शकगण कुंभ मेला में स्नान कर्म में हिस्सा लेते हैं. त्रिवेणी संगम पर पवित्र डुबकी लगायी जाती है. पवित्र कुंभ स्नानकर्म इस विश्वास के अनुसरण में किया जाता है कि त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाकर एक व्यक्ति अपने समस्त पापों को धो डालता है, स्वयं को और अपने पूर्वजों को पुनर्जन्म के चक्र से अवमुक्त कर देता है और मोक्ष को प्राप्त हो जाता है. स्नान - कर्मकाण्ड के साथ-साथ तीर्थयात्री पवित्र नदी के तटों पर पूजा भी करते हैं और विभिन्न साधुगण के साथ सत्संग में भी हिस्सा लेते हैं.

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मकर संक्रांति (माघ मास का प्रथम दिन, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है) से आरंभ होकर प्रयागराज कुंभ के प्रत्येक दिन इस कर्मकाण्ड का सम्पादन एक पवित्र स्नान माना जाता है. लेकिन मांगलिक पवित्र स्नान की तिथियां और भी हैं तो आइए एक-एक कर जानते हैं कुंभ स्नान की अन्य सभी पावन तिथियों को.

मकर संक्रान्ति
एक राशि से दूसरी राशि में सूर्य के संक्रमण को ही संक्रान्ति कहते हैं . भारतीय ज्योतिष के अनुसार बारह राशियां मानी गयी हैं- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन, जनवरी महीने में प्रायः 14 तारीख को जब सूर्य धनु राशि से (दक्षिणायन) मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायण होता है तो मकरसंक्रांति मनायी जाती है . लोग व्रत स्नान के बाद अपनी क्षमता के अनुसार कुछ न कुछ दान अवश्य करते हैं.

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पौष पूर्णिमा
भारतीय पंचांग के पौष मास के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को पौष पूर्णिमा कहते हैं. पूर्णिमा को ही पूर्ण चन्द्र निकलता है. कुंभ मेला की अनौपचारिक शुरूआत इसी दिवस से चिन्हित की जाती है. इसी दिवस से कल्पवास का आरम्भ भी इंगित होता है.

मौनी अमावस्या
यह व्यापक मान्यता है कि इस दिन ग्रहों की स्थिति पवित्र नदी में स्नान के लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है. इसी दिन प्रथम तीर्थांकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और यहीं संगम के पवित्र जल में स्नान किया था. इस दिवस पर मेला क्षेत्र में सबसे अधिक भीड़ होती है.

बसंत पंचमी
हिन्दू मिथक के अनुसार विद्या की देवी सरस्वती के अवतरण का यह दिवस ऋतु परिवर्तन का संकेत भी है. कल्पवासी बसंत पंचमी के महत्व को चिन्हित करने के लिए पीत वस्त्र धारण करते हैं.

माघी पूर्णिमा
यह दिवस गुरू बृहस्पति की पूजा और इस विश्वास कि हिन्दू देवता गंधर्व स्वर्ग से पधारे हैं, से जुड़ा है. इस दिन पवित्र घाटो पर तीर्थयात्रियों की बाढ़ इस विश्वास के साथ आ जाती है कि वे सशरीर स्वर्ग की यात्रा कर सकेगें.

महाशिवरात्रि
यह दिवस कल्पवासियों का अन्तिम स्नान पर्व है और सीधे भगवान शंकर से जुड़ा है. और माता पार्वती से इस पर्व के सीधे जुड़ाव के नाते कोई भी श्रद्धालु शिवरात्रि के व्रत ओर संगम स्नान से वंचित नहीं होना चाहता. कहते हैं कि देवलोक भी इस दिवस का इंतजार करता हैं.

गौरतलब है कि कुंभ मेले का आयोजन चार जगहों हरिद्वार, प्रयागराज(प्रयाग), नासिक और उज्जैन में किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार इन चार विशेष स्थानो पर जिन पर कुंभ मेले का आयोजन होता है. नासिक में गोदावरी नदी के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर, हरिद्वार और प्रयाग में गंगा नदी के तट पर. सबसे बड़ा मेला कुंभ 12 वर्षो के अन्तराल में लगता है और 6 वर्षो के अन्तराल में अर्द्ध कुंभ के नाम से मेले का आयोजन होता है. वर्ष 2019 में आयोजित होने वाले प्रयाग में अर्द्ध कुंभ मेले का आयोजन होने वाला है.

इसके बाद साल 2022 में हरिद्वार में कुंभ मेला होगा और साल 2025 में फिर से प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होगा और साल 2027 में नासिक में कुंभ मेला लगेगा.