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नागा साध्वी के बारे में जानकर हैरान हो जाएंगे आप, तस्वीरों में देखें इनकी रहस्यमयी जिंदगी

इस मेले का सबसे रहस्यमयी रंग होता है महिला नागा साधुओं का, जी हां महिला नागा साधुओं की दुनिया भी रहस्यों से पूरी भरी हुई है.

Updated on: 27 Dec 2018, 03:00 PM

नई दिल्ली:

कुंभ

भारत में लगने वाले सबसे बड़े धार्मिक मेले, कुंभ की छटा बहुत समय पहले ही दिखने लगती है. इस मेले में देश-विदेश से आने वाले असंख्य लोग भाग लेते हैं, जिसकी वजह से यह मेला भी रंग-बिरंगा हो जाता है. लेकिन इस मेले का सबसे रहस्यमयी रंग होता है महिला नागा साधुओं का, जी हां महिला नागा साधुओं की दुनिया भी रहस्यों से पूरी भरी हुई है. आइए जानते हैं नागा सन्यासन बनने में इनकों किन चुनोतियां से गुजरना होता है. तो चालिए बातते हैं महिला नागा साधुओं से जुड़ी कुछ ऐसी बाते जो आज से पहले आप ने नहीं सुनी होंगी.

दृढ़ इच्छाशक्ति की होती है परख

आपको बता दें की नागा संन्यासिन बनने से पहले यहां महिलाओं को दस से पंद्रह साल तक कठिन ब्रह्मचार्य का पालन करना पड़ता है. इसके बाद यदि इन महिलाओं के गुरु इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं की महिला ब्रह्मचार्य का पालन कर सकती है. तब ही उसे दीक्षा प्रदान की जाती है. नागा साधु बनने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संन्यासी जीवन जीने की प्रबल इच्छा होनी चाहिए. महिला नागा संन्यासिन बनने से पहले अखाड़े के साधु-संत उस महिला के घर परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच पड़ताल करते हैं.

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करना होता है खुद का ही पिंड दान

बता दें कि महिला को भी नागा संन्यासिन बनने से पहले खुद का ही पिंड दान करना आवश्यक है साथ ही जिस जगह से महिला को सन्यास की दीक्षा लेनी होती है वहां उसके आचार्य महा मण्डलय ही उन्हें दीक्षा प्रदान करते हैं. साथ ही महिलाओं को नागा सन्यासन बनाने से पहले खुद का ही मुंडन करना पड़ता है और फिर उस महिला को नदी में स्नान के लिए भेजा जाता है. महिला नागा सन्यासन पूरा दिन भगवान का जाप करती है और सुबह-सुबह जल्दी उठ कर शिवजी का जाप करती है.

इसके बाद दोपहर में भोजन करने के बाद फिर से शिवजी का जाप करती हैं और शाम को शयन. अखाड़े में महिला संन्यासिन को पूरा सम्मान दिया जाता है. जब महिला नागा संन्यासिन पूरी तरह से बन जाती है तो अखाड़े के सभी साधु-संत उस महिला को माता कह कर बुलाते हैं. साथ ही संन्यासिन बनने से पहले महिला को यह साबित करना होता है कि उसका अपने परिवार और समाज से अब कोई मोह नहीं है. इस बात की संतुष्टि करने के बाद ही आचार्य महिला को दीक्षा देते हैं.