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जानें, रावण की सोने की लंका जलाने वाले अंजनी पुत्र हनुमान के बारे में

सीता के अपहरण के बाद हनुमानजी ने राम के साथ सुग्रीव की मित्रता कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का वध किया।

Updated on: 28 Sep 2017, 08:25 AM

नई दिल्ली:

रामायण में अंजनी पुत्र हनुमान से तो आप सभी परिचित होंगे। बजरंगबली रामायण के वह पात्र हैं, जो जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। वैसे तो वेदों और पुराणों में हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं आपको मिल जाएंगी।

सीता के अपहरण के बाद हनुमानजी ने राम के साथ सुग्रीव की मित्रता कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का वध किया। आइए आपको बताते हैं रामायण के मुख्य किरदार हनुमान के बारें में।

रामायण में हनुमान ने निभाई थी ये भूमिका

रावण द्वारा सीता का अपहरण करने के बाद राम उनकी खोज में वन वन भटकने लगते हैं। वहां उनकी मुलाकात सुग्रीव, सम्पाती से होती है। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को लंका की अशोक वाटिका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र लांघने के लिये उत्साहित किया।

हनुमान ने लंका की ओर प्रस्थान किया, इस बीच सागर में सुरसा ने हनुमान की परीक्षा ली। परीक्षा में पास होने के बाद उन्हें योग्य आशीर्वाद दिया। मार्ग में हनुमान ने छाया पकड़ने वाली राक्षसी का वध किया और लंकिनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश किया।

उनकी विभीषण से भेंट हुई। जब हनुमान अशोकवाटिका में पहुंचे तो रावण राक्षसों के साथ सीता को धमका रहा था।

रावण के जाने पर त्रिजटा ने सीता को सांत्वना दी। एकान्त होने पर हनुमान ने सीता से भेंट करके उन्हें राम की मुद्रिका दी। हनुमान ने अशोक वाटिका का विध्वंस करके रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया।

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इसके बाद मेघनाथ हनुमान को नागपाश में बांध कर रावण की सभा में ले गया। रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना परिचय राम के दूत के रूप में दिया। रावण ने हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। इसके बाद हनुमान ने लंका का दहन कर दिया।

लंका का दहन करने के बाद हनुमान सीता के पास पहुंचे। सीता ने अपनी चूड़ामणि दे कर उन्हें विदा किया। वे वापस समुद्र पार आकर सभी वानरों से मिले और सभी वापस सुग्रीव के पास चले गये।

हनुमान के कार्य से राम अत्यन्त प्रसन्न हुये। राम वानरों की सेना के साथ समुद्रतट पर पहुंचे। उधर विभीषण ने रावण को समझाया कि राम से बैर न लें इस पर रावण ने विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम के शरण में आ गया और राम ने उसे लंका का राजा घोषित कर दिया।

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