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जितिया व्रत 2018: जानें व्रत का शुभ समय, पूजा विधि और महत्व

जितिया व्रत इस बार 1 अक्टूबर से 3 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. जितिया व्रत अश्विन माह कृष्‍ण पक्ष की सप्‍तमी से नवमी तक मनाया जाता है. पंडितों के अनुसार दूसरा दिन अष्टमी यानी 2 अक्टूबर शुभ है.

Updated on: 01 Oct 2018, 08:59 PM

नई दिल्ली:

हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत पुत्र की मंगलकामने के लिए किया जाता है. हिंदु धर्म में इसका विशेष महत्व है. कल मंगलवार को यह त्यौहार शुरु होगा और फिर तीन दिन तक चलेगा. यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है. महिलाएं अपने बच्‍चों की लंबी उम्र और उसकी रक्षा के लिए इस निर्जला व्रत को रखती हैं. यह व्रत पूरे तीन दिन तक चलता है और व्रत के दूसरे दिन व्रत रखने वाली महिला पूरे दिन और पूरी रात जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती है. यह व्रत विशेषतौर पर उत्तर भारत में मनाया जाता है. बिहार की महिलाएं इस त्योहार को अधिक धूमधाम से मनाती हैं. वहीं पड़ोसी देश नेपाल में भी महिलाएं इस व्रत में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं.

जितिया व्रत इस बार 1 अक्टूबर से 3 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. जितिया व्रत अश्विन माह कृष्‍ण पक्ष की सप्‍तमी से नवमी तक मनाया जाता है. पंडितों के अनुसार दूसरा दिन अष्टमी यानी 2 अक्टूबर शुभ है.

जितिया व्रत की पूजा विधि- 

जितिया व्रत की पूजा विधि की बात की जाए तो इसमें तीन दिन तक उपवास किया जाता है. पहले दिन व्रत को नहाय-खायकहा जाता है. इस दिन महिलाएं नहाने के बाद एक बार भोजन करती हैं और फिर दिन भर कुछ नहीं खाती हैं. दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है. यही व्रत का विशेष व मुख्‍य दिन है जो कि अष्‍टमी को पड़ता है. इस दिन महिलाएं निर्जला रहती हैं. यहां तक कि रात को भी पानी नहीं पिया जाता है. वहीं तीसरे दिन व्रत को पारण किया जाता है. इस दिन व्रत का पारण करने के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.

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जितिया व्रत की कथा

जितिया व्रत की कथा की कहानी महाभारत काल से संबंधित है. ऐसी मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था. उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी. इसके बाद वह पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्‍हें पांडव समझकर उन्‍हें मार डाला. वे पांचों द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अुर्जन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्‍य मणि छीन ली. अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्‍यु की पत्‍नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्‍चे को मारने की साजिश रची. उसने ब्रह्मास्‍त्र का इस्‍तेमाल कर उत्तरा के गर्भ को नष्‍ट कर दिया. ऐसे में भगवान श्रीकृष्‍ण ने अपने सभी पुण्‍यों का फल उत्तरा की अजन्‍मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्‍चे का नाम जीवित्‍पुत्रिका पड़ा. आगे चलकर यही बच्‍चा राजा परीक्षित बना. इसके बाद से ही मां अपने संतानों की लंभी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखने लगी. 

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