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Navratri ऐसे करें कलश स्थापना, जानें सही पूजन विधि; फिर मंत्रों से पाएं इच्छित फल

Navratri पूजा से पहले इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आराधना के लिए श्रद्धा-विश्वास और समर्पण का होना अतिआवश्यक है. आप के पास जो भी यथा संभव सामग्री हो उसी से आराधना करें.

Updated on: 28 Sep 2019, 11:57 PM

highlights

  • शारदीय नवरात्रि अधर्म पर धर्म और असत्‍य पर सत्‍य की विजय का प्रतीक है.
  • जो जीवात्मा, भूताकाश, चित्ताकाश और चिदाकाश में सर्वव्यापी है, वही मां ब्रह्मशक्ति है.
  • विधि-विधान से की गई पूजा और मंत्रों के उच्चारण से सिद्ध होते हैं अभिष्ट.

नई दिल्ली:

शारदीय नवरात्रि को मुख्‍य नवरात्रि माना जाता है. नवरात्रि में नव का अर्थ है नया और रात्रि का अर्थ है यज्ञ-अनुष्ठान अर्थात नया अनुष्ठान. शक्ति के नौ रूपों की आराधना नौ अलग-अलग दिनों में करने के क्रम को ही नवरात्रि कहते है. शास्त्रों के मुताबिक जो जीवात्मा, भूताकाश, चित्ताकाश और चिदाकाश में सर्वव्यापी है, वही मां ब्रह्मशक्ति है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह नवरात्रि शरद ऋतु में अश्विन शुक्‍ल पक्ष से शुरू होती हैं और पूरे नौ दिनों तक चलती है.

नवरात्रि का महत्‍व
हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्‍व है. साल में दो बार नवरात्र‍ि पड़ती हैं, जिन्‍हें चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है. जहां चैत्र नवरात्र से हिंदू वर्ष की शुरुआत होती है, वहीं शारदीय नवरात्रि अधर्म पर धर्म और असत्‍य पर सत्‍य की विजय का प्रतीक है. यह त्‍योहार इस बात का घोतक है कि मां दुर्गा की ममता जहां सृजन करती है. वहीं, मां का विकराल रूप दुष्‍टों का संहार भी कर सकता है.

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अलग-अलग मान्यताएं
नवरात्रि और दुर्गा पूजा मनाए जाने के अलग-अलग कारण हैं. मान्‍यता है कि देवी दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था. बुराई पर अच्‍छाई के प्रतीक के रूप में नवरात्र में नवदुर्गा की पूजा की जाती है. वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि साल के इन्‍हीं नौ दिनों में देवी मां अपने मायके आती हैं. ऐसे में इन नौ दिनों को दुर्गा उत्‍सव के रूप में मनाया जाता है.

पहले दिन कलश स्थापना
पहले दिन कलश स्‍थापना की जाती है और फिर अष्‍टमी या नवमी के दिन कुंवारी कन्‍याओं को भोजन कराया जाता है. पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के आखिरी चार दिनों यानी कि षष्‍ठी से लेकर नवमी तक दुर्गा उत्‍सव मनाया जाता है. नवरात्रि में गुजरात और महाराष्‍ट्र में डांडिया रास और गरबा डांस की धूम रहती है. राजस्‍थान में नवरात्रि के दौरान राजपूत अपनी कुल देवी को प्रसन्‍न करने के लिए पशु बलि भी देते हैं. तमिलनाडु में देवी के पैरों के निशान और प्रतिमा को झांकी के तौर पर घर में स्‍थापित किया जाता है, जिसे गोलू या कोलू कहते हैं. सभी पड़ोसी और रिश्‍तेदार इस झांकी को देखने आते हैं. कर्नाटक में नवमी के दिन आयुध पूजा होती है. यहां के मैसूर का दशहरा तो विश्‍वप्रसिद्ध है.

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कलश स्‍थापना की तिथि और शुभ मुहूर्त
कलश स्‍थापना की तिथि: 29 सितंबर 2019
कलश स्‍थापना का शुभ मुहूर्त: सुबह 06 बजकर 16 मिनट से 7 बजकर 40 मिनट तक.
कुल अवधि: 1 घंटा 24 मिनट.

कलश स्‍थापना कैसे करें?

  • नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्‍नान कर लें.
  • मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेशजी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्‍योत जलाएं.
  • कलश स्‍थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं.
  • अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्‍वास्तिक बनाएं. लोटे के ऊपरी हिस्‍से में कलावा बांधें.
  • अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं. फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें.
  • इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं.
  • अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें. फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें.
  • अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं हैं.
  • कलश स्‍थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्‍प लिया जाता है.
  • आप चाहें तो कलश स्‍थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्‍योति भी जला सकते हैं.

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कलश स्थापना की विधि
इस दिन भक्तगण मां की पूजा के लिए सुबह स्नान आदि कर कलश, नारियल-चुन्नी, श्रृंगार का सामान, अक्षत, हल्दी, फल-फूल पुष्प आदि यथा संभव सामग्री साथ रख लें. कलश सोना, चांदी, तामा, पीतल या मिट्टी का होना चाहिए. लोहे अथवा स्टील के कलश का पूजा में प्रयोग नहीं करना चाहिए. कलश के ऊपर रोली से और स्वास्तिक बनाएं. पूजा आरम्भ के समय ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः कहते हुए कुशा से अपने ऊपर जल छिडकें. अपने पूजा स्थल से दक्षिण और पूर्व के कोने में घी का दीपक जलाते हुए ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते मंत्र पढते हुए दीप प्रज्ज्वलित करें.

मूर्ति किस दिशा में रखें
मां दुर्गा की मूर्ति के बाईं तरफ श्री गणेश की मूर्ति रखें. पूजा स्थल के उत्तर-पूर्व भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज नदी की रेत रखते हुए ॐ भूम्यै नमः कहते हुए डालें. इसके उपरांत कलश में जल-गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें. अब कलश में थोड़ा और जल-गंगाजल डालते हुए ॐ वरुणाय नमः मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें. इसके बाद आम की टहनी डालें, यदि आम की टहनी न हो तो पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर का पल्लव भी कलश के ऊपर रखने का विधान है. जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर रखें उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखकर कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें.

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मंत्रोच्चार सिद्ध करते हैं अभिष्ट
पूजा से पहले इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आराधना के लिए श्रद्धा-विश्वास और समर्पण का होना अतिआवश्यक है. पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्रि की प्रतिपदा से आप की आराधना कर रहा हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके सभी कार्यों को सिद्ध करो. पूजा के समय यदि आप को कोई भी मंत्र नही आता हो तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे से सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं. मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है. आप के पास जो भी यथा संभव सामग्री हो उसी से आराधना करें जितना भी संभव हो श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरुर चढ़ाएं. सर्व प्रथम मां का ध्यान, आह्वान, आसन, अर्घ्य, स्नान, उपवस्त्र, वस्त्र, श्रृंगार का सामान, सिंदूर, हल्दी, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, मिष्ठान, ऋतुफल, नारियल आदि जो भी सुलभ हो उसे अर्पित करें. पूजन के बाद आरती और क्षमा प्रार्थना अवश्य करें. भक्ति में शक्ति हो तो शक्ति हमेशा प्रसन्न रहती हैं.

हर वर्ग के लिए अलग अलग मंत्रोच्चार
विद्यार्थी वर्ग ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः मंत्र पढ़ते हुए माता शक्ति कि पूजा करें. जिन आराधकों के घर में अशांति हो उन्हें या देवि सर्वभूतेषु शान्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः मंत्र का जाप करना चाहिए. इस मंत्र को जपने से सुख-शान्ति मिलती है. जो लोग कर्ज में डूबे हुए हैं वे या देवि सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः मंत्र से मां की पूजा करें. इन सबके अतिरिक्त अगर संभव हो तो कुंजिका स्तोत्र और देव्य अथर्वशीर्ष का पाठ करें.

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विवाह के लिए मंत्रोच्चार
अविवाहित पुरुष विवाह हेतु पत्नी मनोरमां देहि मनो वृत्तानु सारिणीम तारिणीम दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम मंत्र का जप और पूजन करके मनोनुकूल जीवन साथी पा सकते हैं. कुंवारी कन्याओं जिनके विवाह में बाधा आ रही हों वे ॐ कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी नन्द गोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः का जाप करें. इस सिद्ध मंत्र से विवाह दोष से मुक्ति मिल जाती है. अधिक धन प्राप्ति के लिए प्रतिदिन दशांग, गूगल और शहद मिश्रित हवन सामग्री से हवन करें.