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पाकिस्‍तान में है मातारानी की शक्‍तिपीठ, मुसलमान मानते हैं नानी का हज

पाकिस्‍तान (Pakistan) के बलूचिस्‍तान (Baloochistan) में भी मां दुर्गा की एक शक्‍तिपीठ (Shaktipeeth) है. मां हिंगलाज (Maa Hinglaj) के नाम से विख्‍यात यह मंदिर हिंदू और मुसलमान (Hindu and Muslims) दोनों की ही आस्‍था का प्रतीक है. हिंदू इसे शक्‍तिपीठ तो मुसलमान नानी का हज (Nani Ka Haj) मानते हैं.

Updated on: 05 Oct 2019, 12:36 PM

नई दिल्‍ली:

पाकिस्‍तान (Pakistan) के बलूचिस्‍तान (Baloochistan) में भी मां दुर्गा की एक शक्‍तिपीठ (Shaktipeeth) है. मां हिंगलाज (Maa Hinglaj) के नाम से विख्‍यात यह मंदिर हिंदू और मुसलमान दोनों की ही आस्‍था का प्रतीक है. हिंदू इसे शक्‍तिपीठ तो मुसलमान नानी का हज (Nani Ka Haj) मानते हैं. बलूचिस्‍तान में 3 अप्रैल को मां हिंगलाज की जयंती मनाई जाती है. पाकिस्‍तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगोल नदी (Hingol River) के तट पर स्थित यह मंदिर मकरान रेगिस्तान के खेरथार पहाड़ियों की एक शृंखला के अंत में है. एक छोटी प्राकृतिक गुफा में मंदिर बना है, जहां मिट्टी की वेदी बनी है. एक छोटे आकार के शिला की हिंगलाज माता के प्रतिरूप के रूप में पूजा की जाती है.

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मान्‍यता है कि देवी सती ने जब आत्मदाह किया था तो भगवान शिव उनके शव को लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे थे. शिव के मोह को भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के देह के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे. जहां-जहां सती के अंग गिरे, वो स्थान शक्तिपीठ कहलाए. माना जाता है कि हिंगलाज शक्तिपीठ में देवी सती का सिर गिरा था.

दुर्गम रास्‍ता होने से कराची के उत्तर-पश्चिम में मौजूद इस मंदिर तक पहुंचने में काफी मुश्किलें पेश आती हैं. खत्री समुदाय (हिंदू) हिंगलाज देवी को अपना कुलदेवी मानता है, जिनकी आबादी भारत में करीब 1.5 लाख है. हिंदू और स्‍थानीय मुस्लिम समुदाय के हजारों लोग हर साल हिंगलाज माता के मंदिर पहुंचते हैं, लेकिन इस साल पाकिस्‍तान ने थार एक्‍सप्रेस के आवागमन को रोक दिया है, लिहाजा भारतीय श्रद्धालु पाकिस्‍तान नहीं जा पा रहे हैं.

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जिस इलाके में हिंगलाज गुफा है, वहां तीन ज्‍वालामुखी हैं जिन्‍हें गणेश, शिव और पार्वती के नाम से जाना जाता है. हिंगलाज माता मंदिर को लेकर स्‍थानीय बलोच और सिंधियों की अटूट आस्‍था है. ये लोग इस स्‍थान को 'नानी का मंदिर' कहते हैं. माता हिंगलाज को बीवी नानी के नाम से भी जाना जाता है. स्थानीय मुस्लिम जनजाति और श्रद्धालुओं में इस तीर्थयात्रा को 'नानी का हज' कहा जाता है.