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Karva Chauth 2019: करवाचौथ पर यहां महिलाओं को सता रहा है इस श्राप का डर, जानें पूरा मामला

करवाचौथ की धूम जहां पूरे देश में वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव है जहां चांद निकलने पर मायूसी छाई रहेगी. यूपी के जनपद मथुरा के कस्बा सुरीर में महिलाएं करवाचौथ के व्रत से परहेज करती है.

Updated on: 17 Oct 2019, 01:25 PM

नई दिल्ली:

प्यार का त्यौहार करवाचौथ आज को देश भर में मनाया जा रहा है. आज के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और रात में चांद देखने के बाद ही अपना व्रत तोड़ती है. मान्यता के अनुसार छलनी से चन्द्रमा को देखते हुए पति को देखना शुभ माना जाता है. इस व्रत में शिव पार्वती, कार्तिक और करवाचौथ माता का पूजन किया जाता है. हिंदू धर्म में करवाचौथ का अत्याधिक महत्व है क्योंकि मान्यता है कि सुहागिन महिलाएं अगर ये व्रत रखती है तो उनके पति उम्र लंबी होती है और दांपत्य जीवन सुखी रहता है. 

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करवाचौथ की धूम जहां पूरे देश में वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव है जहां चांद निकलने पर मायूसी छाई रहेगी. यूपी के जनपद मथुरा के कस्बा सुरीर में महिलाएं करवाचौथ के व्रत से परहेज करती है.  दरअसल, बताया जाताहै कि यहां सती का श्राप लगा हुआ है, जिसके डर की वजह से महिलाएं करवाचौथ का त्यौहार नहीं मनाती है.

सुरीर के मोहल्ला वघा में ठाकुर समाज के सैकड़ों परिवारों में करवाचौथ और अहोई अष्ठमी का त्योहार मनाने पर सती के श्राप की बंदिश लगी हुई है. करवाचौथ का व्रत नहीं रख पाने की कसक इस समाज की नवविवाहितों को अक्सर खलती रहती है. 

यहां करवाचौथ नहीं मनाने पर स्थानीय नागरिक पूजा का कहना है कि मन में तमन्ना थी कि शादी के बाद पहलेकरवाचौथ पर वह निर्जला व्रत एवं सोलह श्रृंगार कर अपने चांद का दीदार करेंगी लेकिन ससुराल में आकर पता चला कि सती के श्राप की की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाएंगी.

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वहीं दूसरी विवाहिता रेखा का कहना है कि शादी के बाद उसने ससुराल में आकर करवाचौथ से परहेज की बात सुनी तो वह मन मसोस कर रह गई.  वहीं पूनम कहती है कि  कि करवाचौथ पर सुहाग सलामती को निर्जला व्रत रखने को मन में बड़ी उमंग थी, लेकिन बंदिश की वजह से इस त्योहार को नहीं मना सकी. जिसकी कसक उसे हमेशा कचोटती रहती

है. इसी गांव में रहने वाली प्रीति का कहना भी है कि सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा का पीढ़ी दर पीढ़ी निर्वहन कर रहे हैं. इस बंदिश को तोड़ने की किसी में हिम्मत नहीं है.

बुजर्गो की मानें तो सैकड़ों वर्ष पहले गांव रामनगला (नौहझील) का ब्राह्मण युवक अपनी पत्नी को विदा कराकर घर लौट रहा था. सुरीर में होकर निकलने के दौरान वघा मोहल्ले में ठाकुर समाज के लोगों का ब्राह्मण युवक की बग्घी के भैंसा को लेकर विवाद हो गया. जिसमें इन लोगों के हाथों ब्राह्मण युवक की मौत हो गई थी, अपने सामने पति की मौत से कुपित मृतक ब्राह्मण युवक की पत्नी इन लोगों को श्राप देते हुए सती हो गई थी.

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इसे सती का श्राप कहें या बिलखती पत्नी के कोप का कहर, संयोगवश इस घटना के बाद मोहल्ले में मानो कहर आ गया. कई जवान लोगों की मौत हो गई, महिलाएं विधवा होने लगीं.  शोक, डर और दहशत से इन लोगों के परिवार में कोहराम मचने लगा, जिसे देख कुछ बुजर्ग लोगों ने इसे कहर को सती का श्राप मानते हुए क्षमा याचना की और मोहल्ले में मंदिर बना कर सती की पूजा-अर्चना शुरू कर दी.

पति और पुत्रों की दीर्घायु को मनाए जाने वाले करवाचौथ एवं अहोई अष्टमी के त्यौहार पर सती बंदिश लगा गई थी, तभी से त्योहार मनाना तो दूर इनकी महिलाएं पूरा साज-श्रृंगार भी नहीं करती हैं, उन्हें ऐसा करने पर सती के नाराज होने का भय बना रहता है.

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कस्बा सुरीर में सती की पूजा अब एक देवी की तरह हो रही है. यहां विवाह-शादी एवं तीज त्योहार पर सती की मंदिर में आकर पूजा अर्चना की जाती है. मोहल्ले के ही नहीं बल्कि सुरीर में सभी जाति के लोग सती मंदिर पर मत्था टेकने के लिए आते है. नौहझील के गांव रामनगला के ब्राह्मण लोग आज भी सुरीर में पानी पीने से परहेज रखते हैं.