logo-image

Karva Chauth 2019: 76 साल बाद बन रहा है खास संयोग, सभी मनोकामना होंगी पूरी

करवाचौथ (Karva Chauth 2019) का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र की कामना और निरोग स्वास्थ्य के लिए रखती हैं. यह व्रत निर्जला रखा जाता है और रात में चांद को देखने के बाद ही तोड़ा जाता है

Updated on: 16 Oct 2019, 06:12 PM

नई दिल्ली:

पति-पत्नी के प्यारा का प्रतीक करवा चौथ का त्योहार इस साल 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस साल करवाचौथ के मौके पर विशेष संयोग बन रहा है जो करीब 76 साल बाद आया है. बताया जा रहा है कि इस साल कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर करवा चौथ के व्रत का शुभ मुहूर्त रहेगा. दोपहर 3:56 के बाद रोहिणी नक्षत्र का शुभारंभ होगा. ऐसा योग साल 1943 के बाद अब बन रहा है. वहीं कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि संक्रांति और रोहिणी नक्षत्र का शुभ योग 1943 के बाद इस साल भी बन रहा है. इस शुभ योग के कारण इस साल का करवा चौथ फलदायी होगा.

बता दें, करवाचौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र की कामना और निरोग स्वास्थ्य के लिए रखती हैं. यह व्रत निर्जला रखा जाता है और रात में चांद को देखने के बाद ही तोड़ा जाता है. मान्यता के अनुसार छलनी से चन्द्रमा को देखते हुए पति को देखना शुभ माना जाता है.इस व्रत में शिव पार्वती, कार्तिक और करवाचौथ माता का पूजन किया जाता है.

यह भी पढ़ें- Diwali 2019: रावण के सौतेले भाई कुबेर कभी करते थे चोरी, इस वजह से बन गए धन के देवता

पूजा विधि

सबसे पहले संपूर्ण शिव परिवार और श्रीकृष्ण की स्थापना करें। गणेश जी को पीले फूलों की माला, लड्डू और केले चढ़ाएं. भगवान शिव और पार्वती को बेलपत्र और श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें। मिटटी के कर्वे पर रोली से स्वस्तिक बनाएं.

कर्वे में दूध, जल और गुलाबजल मिलाकर रखें और रात को छलनी के प्रयोग से चांद को देखें और चांद को अर्घ्य दें. इस दिन करवा चौथ की कथा कहनी या फिर सुननी आवश्यक होता है, जिसके बिना यह व्रत अधूरा होता है.

यह भी पढ़ें: इस दिवाली घर लाएं ये 5 चीजें, फिर देखें चमत्‍कार, दूर हो जाएगी पैसों की किल्‍लत

करवा चौथ का शुभ मुहूर्त

करवा चौथ के दिन उपवास का समय- 13 घंटे 56 मिनट

चांद के निकलने का समय- रात 8.18

करवाचौथ की कथा

एक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी. सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती सभी भाइयों की लाडली थी और उसे सभी भाई जान से बढ़कर प्रेम करते थे. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह किसी ब्राह्मण युवक से हो गया. विवाह के बाद वीरावती मायके आई और फिर उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी.

सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है. लेकिन चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है.

वीरावती की ये हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई और फिर एक भाई ने पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है. दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है. फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो. बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ गई.

उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई. दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया. इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया.

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं. एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की. देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा. इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा. उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया. इसके बाद से महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास होने लगा.

करवा चौथ विशेष रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है लेकिन अब पूरे देश में इस पर्व को सुहागिन स्त्रियां बड़े हर्षोलास के साथ मनाती हैं, लेकिन समय के साथ इस त्यौहार को मनाने के तरीके में भी परिवतर्न आया है अब पत्नियों के साथ पति भी करवा चौथ का व्रत रखते हैं.